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पाकिस्‍तान के लिए दुश्‍मन बन सकते हैं उसके ही दोस्‍त, हो सकता है नुकसान

पाकिस्‍तान के कभी खास रहे कुछ देश अब उसकी तरफ से मुंह मोड़ने लगे हैं। इतना ही नहीं इनमें से कुछ ने तो पाकिस्‍तान पर हमला करने तक की चेतावनी दे डाली है।

By Kamal VermaEdited By: Published: Fri, 23 Jun 2017 12:16 PM (IST)Updated: Fri, 23 Jun 2017 05:32 PM (IST)
पाकिस्‍तान के लिए दुश्‍मन बन सकते हैं उसके ही दोस्‍त, हो सकता है नुकसान
पाकिस्‍तान के लिए दुश्‍मन बन सकते हैं उसके ही दोस्‍त, हो सकता है नुकसान

नई दिल्‍ली (स्‍पेशल डेस्‍क)। पाकिस्‍तान में इन दिनों न तो आंतरिक तौर पर शांति है और न ही बाहरी तौर पर माहौल ठीक-ठाक है। आंतरिक तौर पर पाकिस्‍तान को अपने यहां पर मौजूद दहशतगर्दों से निपटना पड़ रहा है। इसके अलावा पीओके, बलूचिस्‍तान में माहौल काफी अशांत है। यहां पर लोग सड़कों पर पाकिस्‍तान से खुलेआम आजादी की मांग कर रहे हैं। दूसरी तरफ ईरान और अफगानिस्‍तान से जुड़ी सीमा उसके लिए परेशानी का सबब बनी हुई है। लिहाजा जिन्‍हें वह अपना बताता आया है, अब वही देश उसके खिलाफ होते जा रहे हैं।

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इस लिस्ट में अमेरिका, चीन, सऊदी अरब और ईरान शामिल हैं। इनको भी अगर दो धड़ों में बांट दिया जाए जाए तो अमेरिका और चीन उसके पुराने सहयोगी देश रहे हैं। वहीं सऊदी अरब और ईरान के साथ उसका नाता खाड़ी के इस्‍लामी देश वाला है। यहां पर एक बात समझने की यह भी है कि सभी देशों के अपने हित होते हैं, जिसके चलते वह एक-दूसरे के सहयोगी बनते हैं। जब इन हितों पर किसी तरह का खतरा उत्‍पन्‍न होता है तो समस्‍याएं जन्‍म लेने लगती हैं। ऐसा ही अब पाकिस्‍तान के साथ हो रहा है।

एफ-16 सौदा रद होने से बनी दूरी

अमेरिका और पाकिस्‍तान का नाता काफी पुराना है। भारत को दरकिनार कर कई बार अमेरिका, पाकिस्‍तान को सीधेतौर पर मदद करता दिखाई दिया है। इसको लेकर कई बार भारत ने अमेरिका की तीखी आलोचना भी की है। ओबामा प्रशासन के दौरान भी पाकिस्‍तान के साथ अमेरिका के रिश्‍ते ठीक-ठाक रहे थे। लेकिन कुछ मुद्दों पर आेबामा प्रशासन के दौरान ही अमेरिका ने पाकिस्‍तान को संबंध सुधारने के लिए कुछ खास कदम उठाने के लिए इशारे किए थे। बावजूद इसके पाकिस्‍तान के रुख में कोई बदलाव नहीं आया। ओबामा प्रशासन के दौरान दो बड़े कदम या यूं कहें कि निर्णय लिए गए थे, जिनसे पाकिस्‍तान को सीधे तौर पर बड़ा नुकसान झेलना पड़ा था। इन दो कदमों में अमेरिका द्वारा पाकिस्‍तान के साथ एफ-16 लड़ाकू विमान सौदे को रद करना और पाकिस्‍तान को आर्थिक मदद के तौर पर दी जाने वाली अरबों डॉलर की राशि को रद करना था।

तिलमिलाया पाकिस्‍तान

इन दोनों ही कदमों से पाकिस्‍तान बुरी तरह से तिलमिला गया था। लड़ाकू विमान सौदे की बात करें तो पाकिस्‍तान को इसके लिए किसी तरह का कर्ज देने या फिर इसकी रकम में कमी करने से अमेरिका ने सीधेतौर पर इंकार कर दिया था, जिसके बाद पाकिस्‍तान ने इस सौदे को रद कर दूसरे देश से विमान सौदा करने की बात कही थी। हालांकि पाकिस्‍तान उन चुनिंदा देशों में शामिल है जहां की वायुसेना एफ-16 लड़ाकू विमानों का इस्‍तेमाल करती है। वहीं दूसरी ओर पाकिस्‍तान को दी जाने वाली अरबो डॉलर की मदद अमेरिका ने अपने सीनेटरों के दबाव के चलते रोकी थी।

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अमेरिका के रुख में बदलाव

गौरतलब है कि पाकिस्‍तान को लेकर अमेरिकी सीनेटर कई बार खुलेतौर पर अपने विरोध को दर्ज कराते रहे हैं। कई सीनेटर इस बात को लेकर भी मांग करते रहे हैं कि पाकिस्‍तान को आतंकवादी देश करार दिया जाए। सीनेटरों का यह भी कहना है कि पाकिस्‍तान को जो अरबों डॉलर की मदद आतंकवाद के खात्‍मे के नाम पर दी जा रही है, उसका इस्‍तेमाल वह दहशतगर्दी के लिए ही कर रहा है। लेकिन डोनाल्‍ड ट्रंप की मौजूदा सरकार ने इसपर अपना रुख बेहद स्‍पष्‍ट कर दिया है। ट्रंप ने यह साफ कर दिया है कि यदि पाकिस्‍तान ने आतंकवाद फैलाने के लिए अपनी जमीन का इस्‍तेमाल करना बंद नहीं किया तो इसके लिए अमेरिका आगे आएगा और पाकिस्‍तान में ड्रोन हमले के जरिए इसका खात्‍मा करेगा। ट्रंप के इस बयान के बाद पाकिस्‍तान के विदेश मंत्रालय ने अपना रुख स्‍पष्‍ट करते हुए कहा था कि वह इस तरह के हमलों को कभी बर्दाश्‍त नहीं करेगा।

ड्रोन हमले बर्दाश्‍त नहीं करेगा पाकिस्‍तान

अपनी साप्‍ताहिक ब्रीफिंग में पाकिस्‍तान के विदेश मंत्रालय के प्रवक्‍ता नफीस जकारिया ने कहा कि पाकिस्‍तान किसी भी दूसरे देश को अपने यहां पर आतंकियों को खत्‍म करने के नाम पर हमले करने की इजाजत नहीं देगा। गौरतलब है कि अमेरिका ने साल 2018 में पाकिस्तान को फॉरेन मिलिट्री फाइनेंसिंग (FMF) कार्यक्रम के तहत दिए जाने वाले करीब 100 मिलियन डॉलर के फंड पर रोक लगा दी है। वहीं ट्रंप ने यह भी यह भी साफ कर दिया था कि वह कहीं भी अपने खर्चे पर किसी भी देश की मदद नहीं करेगा। इतना ही नहीं ट्रंप ने पाकिस्‍तान को दिए जाने वाले फंड को कर्ज में तब्‍दील करने की बात कही थी। अमेरिका की नई सरकार के बनने के बाद पाकिस्‍तान से उसके संबंधों में जिस तरह की खटास दिखाई दे रही है उसकी बड़ी कीमत भविष्‍य में पाकिस्‍तान को चुकानी पड़ सकती है। यहां पर यह भी ध्‍यान रखना होगा कि ट्रंप कई मौकों पर भारत का पक्ष ले चुके हैं। सऊदी अरब में हुए एक सम्‍मेलन के दौरान भी उन्‍होंने खुलेतौर पर भारत को आतंकवाद का पीडि़त देश बताया था।

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पाकिस्‍तान के खजाने पर लगी आंख

अमेरिका की तरह ही चीन भी पाकिस्‍तान बड़ा सहयोगी देश रहा है। पाकिस्‍तान में बनने वाला आर्थिक कॉरिडोर और ग्‍वादर पोर्ट इसका बड़ा उदाहरण है। यूं तो यह चीन की विस्‍तारवादी नीति का हिस्‍सा है। लेकिन पाकिस्‍तान में चीन की मौजूदगी का बड़ा उदाहरण सिर्फ ग्‍वादर और सीपैक ही नहीं है, बल्कि बलूचिस्‍तान भी है। पाकिस्‍तान का सबसे बड़ा प्रांत होने के साथ-साथ यह पूरा इलाका प्राकृतिक तौर पर काफी समृद्ध है। गैस से लेकर खनिजों तक यहां पर सब कुछ काफी प्रचुर मात्रा में उपलब्‍ध है। सीपैक के जरिए चीन की निगाह इस पूरे इलाके के खजाने पर लगी हुई है।

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अ‍ार्थिक कॉरिडोर से चीन की राह

यहां पर बनने वाला आर्थिक गलियारा चीन-पाक संबंधों में केंद्रीय महत्व रखता है। यह गलियारा ग्वादर से काशगर तक करीब 2442 किलोमीटर लंबा है। इस पर वह करीब 46 बिलियन डॉलर का खर्च कर रहा है। यह कॉरिडोर पीओके के गिलगिट-बाल्टिस्तान से बलूचिस्तान होते हुए ग्‍वादर पोर्ट तक जाएगा। इसके पूरी तरह से तैयार हो जाने के बाद चीन की पाकिस्‍तान के कच्चे तेल पर पकड़ और मजबूत हो जाएगी, जिसको वह आसानी से चीन भेजने में सक्षम होगा। इस गलियारे का उद्देश्य चीन के उत्तरी-पश्चिमी झिनजियांग प्रांत के काशगर से पाकिस्तान के बलूचिस्तान स्थित ग्वादर बंदरगाह के बीच सड़कों के 3000 किमी विस्तृत नेटवर्क और दूसरी ढांचागत परियोजनाओं के माध्यम से संपर्क स्थापित करना है। इस गलियारे के बनने के बाद चीन की हिन्द महासागर तक पहुंच काफी आसान हो जाएगी। वहीं इस आर्थिक कॉरिडोर के साथ-साथ चीन पाकिस्तान को आठ पनडुब्बियों की भी आपूर्ति करेगा।

चीन ने भी बदला नजरिया

लेकिन अब यही कॉरिडोर चीन के लिए परेशानी का सबब बन गया है। इसकी वजह यह भी है बलूचिस्‍तान जहां से कॉरिडोर गुजरना है, वहां के लोग इस अार्थिक कॉरिडोर के सख्‍त खिलाफ हैं। वहीं पाकिस्‍तान अधिकृत कश्‍मीर में भी इसको लेकर विरोध के स्‍वर लगातार उठ रहे हैं। इतना ही नहीं पाकिस्‍तान में मौजूद चीन के लोगों के लिए यह जगह भी अब खतरनाक बनती जा रही है। बीते कुछ माह में आर्थिक कॉरिडोर के काम में लगे चीनी नागरिकों को निशाना बनाने की घटनाओं में काफी इजाफा हुआ है। इसको लेकर चीन का थिंक टैंक और सरकारी मीडिया भी सरकार को खबरदार करता आया है। बीते दिनों चीन की तरफ से यह बात भी सामने आई थी कि वह अपने नागरिकों की रक्षा के लिए सीमा पार जाकर आपॅरेशन कर सकता है। चीन के लिए जहां आर्थिक कॉरिडोर जरूरी है, वहीं अपने नागरिकों की सुरक्षा भी उतना ही जरूरी बिंदु है। लेकिन यह मुद्दा अब ऐसा बन गया है, जहां चीन की निगाह पाकिस्‍तान को लेकर अब बदल रही है।

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ईरान से खराब होते रिश्‍ते

ईरान और पाकिस्तान के मध्य 900 किलोमीर की सीमा रेखा मिलती है। दोनों देशों के बीच धार्मिक, सांस्कृतिक व एतिहासिक समानता आपसी संबंधों में मजबूती का बड़ा कारण माना जाता है। लेकिन पिछले वर्ष पाकिस्‍तान के आतंकी गुटों द्वारा ईरान में किए गए हमले के बाद रिश्‍तों में काफी खटास आई है। इस हमले की जिम्‍मेदारी सुन्नी उग्रवादी संगठन जैश अल अद्ल ने ली थी। इस हमले में ईरान बॉर्डर गार्ड्स के दस जवान मारे गए थे। आतंकियों द्वारा यह हमला पाकिस्तान की सीमा से सटे जीरो प्वाइंट पर किया गया था। इसी आतंकी संगठन ने 2013 और 2015 में भी ईरान के बॉर्डर गार्ड्स पर हमला किया था। दरअसल, ईरान की सीमा से सटा पाकिस्तान का यह इलाका अफीम की तस्करी और सुन्नी चरमपंथियों का गढ़ माना जाता है। पाकिस्तान जहां सुन्नी बहुल देश है, वहीं ईरान शिया बहुल है।

इसलिए भी आई कड़वाहट

पाकिस्तान के पूर्व सेनाध्यक्ष जनरल राहिल शरीफ के सऊदी अरब की अगुवाई वाली गंठबंधन सेना की कमान संभालने के बाद से दोनों के बीच और कड़वाहट घुली है। पाकिस्‍तान के आतंकी गुटों का निशाना बन रहे ईरान पाकिस्तान को चेतावनी दे चुका है कि यदि पाकिस्तान सरकार सीमा पार हमला करने वाले आतंकवादियों से नहीं निपटती है तो ईरान पाकिस्तान में घुसकर आतंकियों के सुरक्षित ठिकानों पर हमला करेगा। उस वक्‍त ईरानी सशस्त्र बलों के प्रमुख मेजर जनरल मोहम्मद बाकरी ने कहा था कि पाकिस्‍तान अपनी नाकामी छिपाने के लिए आतंकियों के जरिए ईरान सीमा और हितों को निशाना बना रहा है। उन्‍होंने आरोप लगाया था कि पाकिस्तान की तरफ का सीमांत इलाका सऊदी से लाए गए आतंकियों के लिए प्रशिक्षण स्थल और पनाहगाह बना हुआ है।

सऊदी अरब का पाक से नाता

सऊदी अरब उन देशों में शुमार किया जाता रहा है, जिनसे पाकिस्‍तान के बेहतर संबंध हैं। लेकिन हाल के कुछ समय में पाकिस्‍तान को लेकर सऊदी अरब के रुख में जो बदलाव आया है वह हैरान कर देने वाला है। हालांकि पाकिस्‍तान को लेकर सऊदी अरब ने सीधेतौर पर कभी हमला नहीं किया है लेकिन इसके बाद भी उसके रवैये में आने वाला बदलाव कुछ अलग जरूर बयां कर रहा है। आपको ध्‍यान हो कि पिछले दिनों सऊदी अरब में एक सम्‍मेलन आयोजित किया गया था। इसमें भाग लेने अमेरिका के राष्‍ट्रपति डोनाल्‍ड ट्रंप भी आए थे और पाकिस्‍तान से खुद प्रधानमंत्री नवाज शरीफ वहां गए थे। लेकिन इस सम्‍मेलन के दौरान नवाज की ट्रंप से शिष्‍टाचार के नाम पर भी मुलाकात नहीं हुई थी।

प्रिंस ने बताया था अरब का गुलाम

इतना ही नहीं सऊदी अरब ने इस सम्‍मेलन के मंच पर पाकिस्‍तान को बोलने तक से रोक दिया था। हालांकि बाद में इसके लिए सऊदी किंग ने माफी भी मांग ली थी। यहां पर यह भी बताना बेहद दिलचस्‍प होगा कि इस सम्‍मेलन को कराने की जिम्‍मेदारी मौजूदा समय में क्राउन प्रिंस बने मुहम्मद बिन सलमान पर थी। प्रिंस सलमान वही शख्‍स हैं जिन्‍होंने पिछले दिनों पाकिस्‍तान को अरब का गुलाम बताया था। इतना हीं नहीं उनका कहना था कि पाकिस्‍तान के लोग दोयम दर्जे के मुसलमान हैं। इस बात की जानकारी खुद पाकिस्‍तान के बड़े पत्रकार ने ट्विटर पर दी थी। इतना ही नहीं कतर के मुद्दे पर जब पाकिस्‍तान ने मध्‍यस्‍थता करनी चाही तो सऊदी किंग ने नवाज से यहां पर पूछ लिया कि आप किसकी तरफ हैं। इसके बाद सऊदी ने किसी भी तरह की मध्‍यस्‍थता को सिरे से खारिज कर दिया था।

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