कुछ यूं बढ़ जाएगी भारत की ताकत, अस्ताना में होने जा रही है महत्वपूर्ण बैठक
शंघाई सहयोग संगठन की बैठक से इतर दुनिया की निगाह इस बात पर टिकी है कि क्या पीएम मोदी और पाकिस्तान के पीएम नवाज शरीफ के बीच बातचीत होगी।
नई दिल्ली [स्पेशल डेस्क] । कजाकिस्तान के अस्ताना में द शंघाई कोऑपरेशन आर्गेनाइजेशन की बैठक कई मायनों में महत्वपूर्ण है। भारत को इस बैठक के दौरान पूर्णकालिक सदस्यता हासिल करने की उम्मीद है। इस क्षेत्रीय संगठन में शामिल होने के लिए भारत ने 2014 में ही आवेदन किया था। इसके इतर दुनिया भर की नजर इस बात पर भी टिकी है क्या पाक पीएम नवाज शरीफ और पीएम मोदी के बीच किसी तरह की मुलाकात होगी। हालांकि भारत की तरफ से साफ कर दिया गया है कि आतंकवाद और बातचीत दोनों एक साथ नहीं चल सकते हैं।
अस्ताना में एससीओ की बैठक
नरेंद्र मोदी गुरुवार को शंघाई कोऑपरेशन ऑर्गनाइजेशन (SCO) की मीटिंग में हिस्सा लेने कजाकिस्तान की राजधानी अस्ताना में हैं। ये बैठक 8-9 जून को दो दिनों तक चलेगी होगी। भारत का मकसद पूरी तरह से SCO की मेंबरशिप हासिल करना होगा। मोदी, अस्ताना में चीन के राष्ट्रपति शी चिनफिंग से भी मुलाकात करेंगे।
पाक पीएम नवाज शरीफ भी अस्ताना में मौजूद रहेंगे। लेकिन मोदी और नवाज की मीटिंग का कोई शेड्यूल फिक्स नहीं किया गया है। यूरेशिया डिवीजन के ज्वाइंट सेक्रेटरी जीवी श्रीनिवास के मुताबिक SCO के मौजूदा देशों के प्रमुखों से इस बात के संकेत मिले हैं कि भारत की मेंबरशिप पर इस समिट में मुहर लग सकती है।श्रीनिवास की मानें तो SCO समिट में मोदी की कई नेताओं के साथ चर्चा हो सकती है। कजाकिस्तान से भी अहम बातचीत हो सकती है। कजाकिस्तान, भारत का सबसे बड़ा यूरेनियम का सप्लायर है। अस्ताना में भारत की तरफ इकोनॉमी, कनेक्टिविटी, ट्रेड और टेररिज्म पर बात हो सकती है। पीएम मोदी अस्ताना में वर्ल्ड एक्सपो 2017 में भी शिरकत करेंगे।
विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता ने क्या कहा ?
गोपाल बागले के मुताबिक पीएम मोदी, चिनपिंग से मुलाकात कर सकते हैं। जहां तक पीएम मोदी और नवाज शरीफ के बीच बैठक की बात है, विदेश मंत्री सुषमा स्वराज पहले ही साफ कर चुकी हैं कि न तो पाकिस्तान की तरफ से किसी तरह का अनुरोध है और न ही भारत सरकार की तरफ से किसी तरह का प्रस्ताव है। भारत सरकार का नजरिया पहले की तरह ही साफ है कि पाकिस्तान के साथ बातचीत और आतंकवाद एक साथ नहीं चल सकते है। SCO में 2005 से भारत ऑब्जर्वर की हैसियत से शामिल होता रहा है और भारत की तरफ से 2014 में पूर्णकालिक सदस्यता के लिए आवेदन किया गया था।
आतंकवाद पर चोट
आतंकवाद से भारत की लड़ाई में SCO एक मजबूत आधार देगा। इस संगठन का मुख्य उद्देश्य मध्य एशिया में सुरक्षा चिंताओं के मद्देनज़र सहयोग बढ़ाना है। आतंकवाद से लड़ने के लिए एससीओ की अपनी कार्यपद्धति है। आतंकवाद से लड़ने के लिए सभी सदस्य देशों ने प्रस्ताव पास किया था, जिससे एससीओ के एंटी टेरर चार्टर को मजबूती मिली। ऐसे में भारत एससीओ के मंच पर पाकिस्तान की आतंकी नीतियों को संगठन के सामने प्रभावी ढंग से रख सकता है।
मध्य एशिया में भारत का बढ़ेगा दखल
शंघाई सहयोग संगठन की सदस्यता हासिल होने के बाद भारत का मध्य एशियाई देशों में दखल बढ़ जायेगा। मध्य एशिया के देश संसाधनों के मामले में काफी मजबूत हैं, जो भारत के लिये लाभदायक सिद्ध हो सकता है। इसके अलावा वहां के बाजारों में भारत की एंट्री आसान हो जायेगी।
वन बेल्ट वन रोड पर चीन बना सकता है प्रेशर
शंघाई सहयोग संगठन की सदस्यता मिलने पर भारत को कुछ नुकसान भी उठाने पड़ सकते हैं। चीन-पाकिस्तान आर्थिक गलियारे (CPEC) के मसले पर चीन और पाकिस्तान एक साथ मिलकर भारत का विरोध कर सकते हैं। इसके अलावा चीन 'वन बेल्ट वन रोड' परियोजना को पूरा करने के लिये भारत पर कूटनीतिक दबाव बना सकता है।
क्या है शंघाई सहयोग संगठन ?
1996 में शंघाई में हुई एक बैठक में चीन, रूस, कजाकिस्तान किर्गिस्तान और ताजिकिस्तान आपस में एक-दूसरे के नस्लीय और धार्मिक तनावों से निबटने के लिए सहयोग करने पर राजी हुए थे। इसे शंघाई फाइव कहा गया था। 2001 में चीन, रूस और चार मध्य एशियाई देशों कजाकिस्तान किर्गिस्तान, ताजिकिस्तान और उज्बेकिस्तान के नेताओं ने शंघाई सहयोग संगठन शुरू किया और नस्लीय और धार्मिक चरमपंथ से निबटने और व्यापार और निवेश को बढ़ाने के लिए समझौता किया।शंघाई फाइव के साथ उज्बेकिस्तान के आने के बाद इस समूह को शंघाई सहयोग संगठन कहा गया। शंघाई सहयोग संगठन के छह सदस्य देशों का भूभाग यूरेशिया का 60 प्रतिशत है। यहां दुनिया के एक चौथाई लोग रहते हैं।
2005 में कजाकस्तान के अस्ताना में हुए सम्मेलन में भारत, ईरान, मंगोलिया और पाकिस्तान के प्रतिनिधियों ने भी पहली बार हिस्सा लिया। इस सम्मेलन के स्वागत भाषण में कजाकिस्तान के तत्कालीन राष्ट्रपति नूरसुल्तान नजरबायेव ने कहा था।इस वार्ता में शामिल देशों के नेता मानवता की आधी जनसंख्या का प्रतिनिधित्व करते हैं।
एससीओ ने संयुक्त राष्ट्र से भी संबंध स्थापित किए हैं और यह महासभा में पर्यवेक्षक है। एससीओ ने यूरोपीय संघ, आसियान, कॉमनवेल्थ और इस्लामिक सहयोग संगठन से भी संबंध स्थापित किए हैं। इस संगठन का मुख्य उद्देश्य मध्य एशिया में सुरक्षा चिंताओं के मद्देनज़र सहयोग बढ़ाना है। पश्चिमी देशों के कई विश्लेषक मानते रहे हैं कि एससीओ का मुख्य उद्देश्य (NATO) के बराबर खड़ा होना है।
SCO में चीन, कजाकिस्तान, किर्गीस्तान, रूस, ताजिकिस्तान और उज्बेकिस्तान समेत 6 सदस्य हैं। इसका मुख्यालय बीजिंग में है। हाल ही में मोदी रूस समेत चार देशों के दौरे पर गए थे। प्रेसिडेंट व्लादिमीर पुतिन ने भारत की SCO में पूर्णकालिक सदस्यता का भरोसा दिया था।
भारत को पर्यवेक्षक का दर्जा है हासिल
एससीओ में भारत को पर्यवेक्षक देश का दर्जा हासिल है। रूस हमेशा से भारत को स्थायी सदस्य के तौर पर जुड़ने के लिए प्रेरित करता रहा है। चीन ने भी एससीओ में भारत का स्वागत किया है। भारत ने सितंबर 2014 में एससीओ की सदस्यता के लिए आवेदन किया था । भारत 2016 तक स्थायी सदस्यता हासिल करने की प्रक्रिया में है।
पाकिस्तान भी एससीओ का पर्यवेक्षक देश है। रूस और चीन ने पाकिस्तान की स्थायी सदस्यता का समर्थन किया है। पाकिस्तान भी स्थायी सदस्यता हासिल करने की प्रक्रिया में है।
ईरान को भी पर्यवेक्षक देश का दर्जा प्राप्त है। हालांकि संयुक्त राष्ट्र के प्रतिबंधों के कारण ईरान फिलहाल एससीओ में शामिल नहीं हो सकता है। अमरीका ने 2005 में संगठन में पर्यवेक्षक देश बनने के लिए आवेदन किया था जिसे नकार दिया गया था।
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