Move to Jagran APP

कानून का कुछ हिस्सा राष्ट्रगान बजाए जाते समय खड़े होने को अनिवार्य बनाता है

एक स्पष्ट निर्णय होना चाहिए कि राष्ट्रगान गाने अथवा बजाए जाने के समय सभी को खड़ा होना होगा क्योंकि प्रावधानों का कुछ हिस्सा राष्ट्रगान बजाए जाते समय खड़े होने को अनिवार्य बनाता है।

By Abhishek Pratap SinghEdited By: Published: Wed, 17 Jan 2018 10:25 AM (IST)Updated: Wed, 17 Jan 2018 12:02 PM (IST)
कानून का कुछ हिस्सा राष्ट्रगान बजाए जाते समय खड़े होने को अनिवार्य बनाता है
कानून का कुछ हिस्सा राष्ट्रगान बजाए जाते समय खड़े होने को अनिवार्य बनाता है

नई दिल्ली, [कुलदीप नैयर]। मैं जब सियालकोट, जो अब पाकिस्तान का हिस्सा है, में था तो छावनी के सिनेमाघरों में नियमित रूप से जाया करता था। उस समय यह बुरा लगता था कि मुझे ब्रिटिश राष्ट्रगान, गॉड सेव द किंग के लिए खड़ा होना पड़ता था। सिनेमा हॉल के दरवाजे बंद नहीं किए जाते थे और यह लोगों पर छोड़ दिया जाता था कि वह किस तरह का व्यवहार करते हैं। कोई बाध्यता नहीं थी, पर उम्मीद की जाती थी कि जब ब्रिटिश राष्ट्रीय गान बजे तो आप खड़े हों। ब्रिटिश शासक जनता के अधिकार के प्रति संवेदनशील थे और उन्होंने इसे अनिवार्य नहीं बनाया था या खड़े नहीं होने वाले के खिलाफ कोई दंडात्मक कार्रवाई भी नहीं थोपी थी।

loksabha election banner

महत्वपूर्ण बात यह थी कि धीरे-धीरे भारतीय फिल्मों के अंत में ब्रिटिश राष्ट्रीय गान को बजाने से परहेज किया जाने लगा था ताकि दर्शक महाराजा और बाद में महारानी का अनादर न करें। वैसे भी, वे तमाशा से बचना चाहते थे।

थियेटरों में राष्ट्रगान बजाने को लेकर अतीत में कानून हस्तक्षेप होते रहे हैं। 2003 में महाराष्ट्र की विधानसभा ने एक आदेश पारित कर फिल्म शुरू होने से पहले राष्ट्रगान बजाया जाना अनिवार्य कर दिया था। 1960 के दशक में इसे फिल्म के अंत में बजाया जाता था, पर लोग सिनेमा खत्म होने पर सीधे लाइन में बाहर निकल जाते थे, इसलिए इसे बंद कर दिया गया। मौजूदा कानून राष्ट्रगान के लिए खड़े होने या इसे गाने के उद्देश्य से किसी व्यक्ति को सजा नहीं देता या बाध्य नहीं करता।

राष्ट्रीय सम्मान अपमान निवारण कानून, 1971 कहता है, जो कोई भी जानबूझकर जनगण को गाने से रोकता है या इसके लिए जमा हुए लोगों के गाने में बाधा डालता है, उसे जेल की सजा, जिसकी मियाद तीन साल तक बढ़ाई जा सकती है, या आर्थिक दंड या दोनों के जरिये दंडित किया जाएगा।

आधिकारिक तौर पर राष्ट्रगान के बजाने की अवधि 52 सेकेंड है, लेकिन सिनेमाघरों में जो आमतौर पर बजाया जाता है वह इससे ज्यादा की अवधि का होता है। 2015 में गृह मंत्रलय का एक आदेश कहता है, जब भी राष्ट्रगान गाया या बजाया जाएगा, दर्शक सावधान की मुद्रा में खड़ा होगा, लेकिन किसी न्यूजरील या डॉक्यूमेट्री के दौरान अगर राष्ट्रगान फिल्म के हिस्से के रूप में बजाया जाता है तो दर्शक से खड़े होने की अपेक्षा नहीं की जाती है, क्योंकि यह फिल्म के प्रदर्शन में अवश्य बाधा डालेगा और राष्ट्रगान के सम्मान को बढ़ाने के बदले अशांति तथा गड़बड़ी पैदा करेगा। और अभी तक कानून विशेष तौर पर कहता है कि इसे लोगों के बेहतर विवेक पर छोड़ दिया गया है कि वे राष्ट्रगान के अविवेकपूर्ण ढंग से गाने या बजाने का काम नहीं करें। इसके भी विशेष नियम बनाए गए हैं कि किसके लिए राष्ट्रगान बजाया जा सकता है (राष्ट्रपति, प्रधानमंत्री नहीं) और कब लोग सामूहिक रूप से गान कर सकते हैं।

जबकि सुप्रीम कोर्ट के आदेश को लागू करने और इसके उल्लंघन के लिए दंड के बारे में कोई स्पष्टता नहीं है। अभी की जो स्थिति है, उसमें सुप्रीम कोर्ट का कोई आदेश या कानूनी प्रावधान या प्रशासनिक निर्देश नहीं है जो राष्ट्रगान के समय लोगों को खड़ा होना अनिवार्य बनाता है। लोग ऐसा करते हैं, यह निश्चित तौर पर उनके व्यक्तिगत आदर की अभिव्यक्ति है, लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने फैसला दिया था कि सिनेमाघरों में फिल्म के प्रदर्शन के पहले राष्ट्रगान बजाया जाना चाहिए और ‘‘सम्मान में सभी को खड़े होना’’ चाहिए। ‘‘लोगों को यह महसूस करना चाहिए कि वे एक राष्ट्र में रहते हैं और राष्ट्रगान तथा राष्ट्रीय झंडे का सम्मान करते हैं।’’ अक्टूबर, 2017 में सुप्रीम कोर्ट की सुनवाई के दौरान जस्टिस चंद्रचूड़ ने 2016 के आदेश में परिवर्तन के संकेत दिए थे, और कहा था, ‘‘क्यों लोगों को अपनी देशभक्ति बांह पर लगा कर चलना चाहिए? लोग विशुद्घ मनोरंजन के लिए थियेटर जाते हैं। समाज को इस मनोरंजन की जरूरत है।’’

तब सरकार ने कोर्ट से कहा था कि वह नवंबर, 2016 की स्थिति वापस लाने पर विचार कर सकती है जिसमें सिनेमाघरों के लिए राष्ट्रगान बजाना अनिवार्य नहीं था।1कुछ साल पहले सुप्रीम कोर्ट की दो सदस्यीय खंडपीठ ने केरल के एक स्कूल से निकाल दिए गए उन दो बच्चों को वापस लेने का आदेश दिया था जिन्होंने राष्ट्रगान में शामिल होने से इसलिए परहेज किया था कि यहोवा, उनके भगवान की प्रार्थना को छोड़कर उनका धर्म किसी रिवाज में शामिल होने की इजाजत नहीं देता है।

हालांकि बच्चे गान के समय खड़े हुए थे। सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि कोई भी कानूनी प्रावधान नहीं है जो किसी को राष्ट्रगान गाने के लिए बाध्य करता है और यह राष्ट्रगान के प्रति असम्मान नहीं है, अगर कोई इसे गाते समय खड़ा होता है, लेकिन इसे गाने में शामिल नहीं होता है। फैसले का अंत एक संदेश से किया गया, ‘‘हमारी परंपरा सहिष्णुता सिखाती है। हमारा दर्शन सहिष्णुता का उपदेश देता है। हमारा संविधान सहिष्णुता का पालन करता है। हमें इसे कमजोर नहीं करना चाहिए’’।

दुर्भाग्य से किसी स्पष्ट आदेश की अनुपस्थिति में विभिन्न उच्च न्यायालयों ने इस मामले पर अलग-अलग ढंग से विचार किया है। उदाहरण के तौर पर अगस्त 2014 में केरल की पुलिस ने दो औरत समेत सात लोगों पर भारतीय दंड संहिता की धारा (124 ए) राजद्रोह लगा दी थी, क्योंकि वे तिरुवनंतपुरम के एक थियेटर में राष्ट्रगान के समय खड़े होने में विफल रहे थे। उनमें से एक, एम सलमान (25) को कथित तौर पर ‘‘राष्ट्रगान बजते समय’’ बैठे रहने तथा तिरस्कार करने के आरोप में गिरफ्तार कर लिया गया था। फेसबुक पर कथित तौर पर राष्ट्रीय झंडे के खिलाफ एक अपमानजनक पोस्ट डालने के लिए उसके खिलाफ आइटी एक्ट की धारा 66 भी लगाई गई थी।

व्यक्तिगत तौर पर मेरी यही राय है कि एक स्पष्ट आदेश होना चाहिए कि राष्ट्रगान गाने या बजाए जाने के समय सभी को खड़ा होना होगा, क्योंकि प्रावधानों का कुछ हिस्सा राष्ट्रगान बजाए जाते समय खड़े होने को अनिवार्य बनाता है और कुछ हिस्सा इसे अपवाद रखता है, लेकिन नियम इसका पालन नहीं करने के लिए कोई दंड निर्धारित नहीं करता है।

(लेखक जाने-माने स्तंभकार हैं)

यह भी पढ़ें: डिजिटलीकरण से भ्रष्टाचार पर लगाम, नकदी लेनदेन और टैक्स चोरी में आई कमी


Jagran.com अब whatsapp चैनल पर भी उपलब्ध है। आज ही फॉलो करें और पाएं महत्वपूर्ण खबरेंWhatsApp चैनल से जुड़ें
This website uses cookies or similar technologies to enhance your browsing experience and provide personalized recommendations. By continuing to use our website, you agree to our Privacy Policy and Cookie Policy.