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मोदी का जलवा कायम, लाल किला से दिखाया नए भारत का स्‍वप्‍न

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने आजादी के 75वें वर्ष यानी 2022 तक नव भारत के सपने को पूरा करने का लक्ष्य रखा है। इसमें अभी पांच वर्ष शेष हैं।

By Kamal VermaEdited By: Published: Thu, 17 Aug 2017 10:40 AM (IST)Updated: Thu, 17 Aug 2017 11:12 AM (IST)
मोदी का जलवा कायम, लाल किला से दिखाया नए भारत का स्‍वप्‍न
मोदी का जलवा कायम, लाल किला से दिखाया नए भारत का स्‍वप्‍न

अवधेश कुमार

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प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के आप समर्थक हों या विरोधी, यह मानना पड़ेगा कि स्वतंत्रता दिवस संबोधन के प्रति उन्होंने देश का आकर्षण फिर से कायम किया है। उनके पहले के कई प्रधानमंत्रियों का भाषण सरकार के महिमामंडन करने तक ही सीमित रहता था और उसमें भी नौकरशाही की भाषा के कारण वह नीरस हो जाता था। स्वतंत्रता दिवस का संबोधन देश में वैसी भावनात्मक चेतना नहीं जगा पाता था जो कि जगना चाहिए। मोदी ने इस स्थिति को बदला है। अपनी सरकार का कार्यवृत्त वह भी देते हैं, जिससे आप सहमत-असहमत हो सकते हैं, पर उसमें नीरसता का अंश नहीं होता। एक तो उनकी अपनी बोलने की शैली है और वह भाषण के लिए नौकरशाहों पर निर्भर नहीं रहते। वास्तव में उनके चारों भाषणों को याद कीजिए तो उसमें देश को स्वतंत्रता आंदोलन के अतीत में ले जाकर इस दिवस के प्रति संवेदनशील बनाने तथा भारत के पुनर्निर्माण के लिए प्रेरित करने का भाव प्रबल रहा है।

इस वर्ष भी उनके भाषण में ऐसे कई तत्व थे जिन पर अलग से विचार किया जा सकता है। मसलन, कश्मीर समस्या, तीन तलाक, कालाधन और भ्रष्टाचार आदि। मगर मूल स्वर वही था। वास्तव में प्रधानमंत्री मोदी ने अपने भाषण में सबसे पहले लोगों के अंदर आजादी के संघर्ष के पीछे क्या भावना थी, उस दौरान भारत के लिए क्या सपने थे, इन सबकी याद दिलाकर इस दिवस की भावना के साथ जोड़ने की कोशिश की। उसके बाद देश में जो कुछ निराशा का भाव है कि कुछ नहीं हो सकता इसे अपने द्वारा उठाए गए कुछ कदमों एवं उसके परिणामों को प्रस्तुत कर दूर करने की चेष्टा की तथा लोगों में उम्मीद पैदा किया कि हम जो चाहें वह हो सकता है, जो समस्याएं हैं उनका निदान होगा। इसके साथ उन्होंने लोगों का आह्वान किया कि आइए मिलकर देश को आगे बढ़ाएं एवं न्यू इंडिया यानी नव भारत का निर्माण करें।

ऐसा करने में उनका स्वर यही था कि हममें कोई छोटा और बड़ा नहीं है सबमें सामथ्र्य है और सब मिलकर संकल्पबद्ध होकर कार्य करें तो ऐसा हो सकता है। वास्तव में कश्मीर संबंधी उनके इस बयान की बहुत ज्यादा चर्चा हो रही है कि न गोली से न गाली से कश्मीर समस्या का समाधान लोगों को गले लगाने से होगा। इसका लोग अपने अनुसार प्रश्न उठा रहे हैं कि क्या सरकार की कश्मीर की आंतरिक नीति में कुछ बदलाव होगा? उन्होंने कहा कि जम्मू कश्मीर का विकास, उन्नति, सपनों को पूरा करने का प्रयास हो। कश्मीर को फिर से स्वर्ग बनाएं, इसको लेकर हम प्रतिबद्ध हैं। किंतु उन्होंने इसमें अलगाववादियों की तीखी आलोचना की और उनके प्रति किसी प्रकार की नरमी बरतने की बात नहीं की। हां, उन्होंने उनको मुख्य धारा में आने का आह्वान अवश्य किया।

इससे ऐसा लगता है कि अलगाववादियों के साथ तो वही नीति रहेगी जो पहले से है, आतंकवादियों के साथ कड़ाई जारी रखते हुए उनमें से जितना संभव हो उसे समर्पण कराने की कोशिश होगी। जो लोग भारत में विश्वास रखते हैं और उनकी कुछ वाजिब शिकायतें हैं उनका निदान करने का प्रयास किया जाएगा। इस तरह देखें तो प्रधानमंत्री ने जो कहा उसका अर्थ कश्मीर के प्रति किसी नई नीति की शुरुआत नहीं है। उनका दूसरा महत्वपूर्ण बयान तीन तलाक के संदर्भ में माना जा रहा है। मोदी ने पहले तो कहा कि पूरे देश में तीन तलाक के खिलाफ आंदोलन चलाने वाली बहनों का हृदय से अभिनंदन करता हूं। उसके बाद उन्होंने साफ कहा कि उनकी इस लड़ाई में हिंदुस्तान पूरी मदद करेगा, वे सफल होंगी, ऐसा मुङो भरोसा है।

इसका अर्थ हुआ कि सरकार ने उच्चतम न्यायालय में तीन तलाक के खिलाफ जो रुख अपनाया है वह कायम रहने वाला है। कट्टरपंथियों के दबाव में सरकार नहीं झुकेगी। यह मुस्लिम महिलाओं के अंदर सरकार का साथ होने का विश्वास दिलाकर उन्हें अपना समर्थक बनाने की राजनीतिक रणनीति हो सकती है, किंतु ऐसे विषय पर जहां किसी वर्ग के साथ न्याय की बात हो वहां सरकार से ऐसे ही रुख की उम्मीद की जानी चाहिए। इसी तरह उन्होंने आस्था के नाम पर हिंसा स्वीकार नहीं करने की जो बात कही उसने भी लोगों को आकर्षित किया है। हालांकि उनका संदेश व्यापक संदर्भो में हो सकता है, लेकिन इसे गोरक्षा के नाम पर हो रही हिंसा से जोड़ा गया है और यह पूरी तरह अस्वाभाविक भी नहीं है।

उन्होंने कहा कि आस्था के नाम पर कभी-कभी लोग ऐसा काम करते हैं कि देश का ताना-बाना उलझ जाता है। आस्था के नाम पर हिंसा को बल नहीं दिया जा सकता। ये देश स्वीकार नहीं कर सकता। यहीं पर उन्होंने शांति, एकता और सद्भावना से देश चलने की बात कही। वस्तुत: उनके यह कहने का भी समर्थन किया जाएगा कि जातिवाद और संप्रदायवाद के जहर से देश नहीं चल सकता। अगर हमें भारत को ऊंचाई पर ले जाने का लक्ष्य पाना है तो फिर हिंसा की संस्कृति का अंत करना होगा। उन्होंने भारत छोड़ो आंदोलन की 75वीं वार्षिकी को याद करते हुए आग्रह किया कि तब भारत छोड़ो नारा था, आज भारत जोड़ो नारा है। हर व्यक्ति, तबके और समाज के साथ आगे बढ़ना है।

इस तरह उनके करीब 56-57 मिनट के भाषण में ऐसी बहुत सारी बातें थीं जिनका अलग-अलग जिक्र करके उनका विश्लेषण किया जा सकता है। मगर उनके पूरे भाषण को समग्रता में देखने और उसे उसी अनुरूप विश्लेषित करने की आवश्यकता है। पूरा भाषण एक भावी भारत का सपना है, जिसके पहलुओं में उन्होंने इन बातों की चर्चा की। वस्तुत: प्रधानमंत्री न्यू इंडिया यानी नव भारत बनाने की बात पिछले काफी समय से कर रहे हैं। उन्होंने इसकी मोटा-मोटी कल्पना देश के सामने रख दिया। उन्होंने आजादी के 75वें वर्ष यानी 2022 तक नव भारत के सपने को पूरा करने का लक्ष्य रखा है। उन्‍होंने कहा कि अभी पांच वर्ष शेष हैं।

महान देशभक्तों को याद करते हुए, आजादी के दीवानों के संकल्प के अनुरूप न्यू इंडिया का संकल्प लेकर सामूहिक श्रम, सामूहिक प्रतिबद्धता के साथ परिश्रम की पराकाष्ठा करते हुए आगे बढ़ना है। सामूहिकता पर प्रधानमंत्री का जोर स्वाभाविक ही था। अकेले चना भाड़ नहीं फोड़ सकता। हमारे स्वतंत्रता सेनानियों के भारत के लक्ष्य को पाना है तो फिर हमें सामूहिक संकल्प और प्रतिबद्वता के साथ उसी तरह परिश्रम करना होगा जैसे स्वतंत्रता पाने के लिए उन्होंने किया था। तो न्यू इंडिया का सपना है क्या? प्रधानमंत्री के शब्दों में वह भारत, जो सुरिक्षत हो, समृद्ध हो शक्तिशाली हो, स्वस्थ हो, स्वच्छ हो, जहां हर किसी को समान अवसर उपलब्ध हो, आधुनिक विज्ञान और तकनीक में पूरे विश्व में दबदबा हो..।

(लेखक स्वतंत्र टिप्पणीकार हैं)


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