आतंकवाद के खिलाफ एक सर्वमान्य रणनीति पर भारी हथियारों की बिक्री
आतंक पर एक समेकित वैश्विक नियंत्रण नीति यदि अस्तित्व में नहीं आ पा रही तो इसके पीछे दुनिया के देशों के मध्य सच्चे सहयोग की कमी ही है।
आतंकवाद की समस्या दिनोंदिन खतरनाक तरीके से बढ़ती जा रही है। दुनिया के अधिकांश देश इस विकराल समस्या से प्रत्यक्ष-अप्रत्यक्ष रूप में प्रभावित हो रहे हैं। और जो देश सौभाग्यवश इस समस्या से बचे भी हुए हैं, वे भी आतंक के बोध से असुरक्षित बने हुए हैं। आज यदि किसी संवेदनशील और विचारवान व्यक्ति से पूछा जाए कि इस समय दुनिया में सबसे बड़ी व विकराल समस्या क्या है तो नि:संदेह वह आतंकवाद को ही सबसे बड़ी समस्या मानेगा। दस-पंद्रह दिनों के अंतराल पर दुनिया में कुछ न कुछ ऐसा घटित हो ही जा रहा है, जिसमें मनुष्यों को बेमौत व बुरी तरह मरना पड़ रहा है।
अभी अमेरिका, ब्रिटेन व स्पेन के आतंकवादी हमलों में मरनेवालों को श्रद्धांजलि देने के कार्यक्रम पूरे भी नहीं हुए थे कि अफ्रीकी देश सोमालिया की राजधानी मोगादिशू भयंकर बम धमाके से थर्रा उठी। सोमालिया की सरकार ने इस आतंकी हमले के लिए अलकायदा से जुड़े समूह अल-शबाब को जिम्मेदार ठहराया है। वैसे तो सोमालिया में आतंकी घटनाएं होना कोई आश्चर्य की बात नहीं है। वहां प्राय: आतंकी हमले होते ही रहते हैं, लेकिन वहां गत रविवार को हुआ हमला अब तक का सबसे बड़ा आतंकी हमला है।
दरअसल आतंक पर एक समेकित वैश्विक नियंत्रण नीति यदि अस्तित्व में नहीं आ पा रही तो इसके पीछे दुनिया के देशों के मध्य सच्चे सहयोग की कमी ही है। व्यापारिक और आर्थिक आवश्यकताओं के लिए तो राष्ट्र एक-दूसरे से जुड़े हुए हैं, पर आतंक पर नियंत्रण के संबंध में उनका जुड़ाव अपने-अपने राष्ट्रों के राजनीतिक तथा सामरिक विषयों के अंतर्गत सिमटा हुआ है। सामरिक विषय के अंतर्गत हथियार निर्माता देशों का व्यापारिक व आर्थिक हित ही सवरेपरि है। ऐसे देशों को भलीभांति ज्ञात है कि राजनीतिक व कानूनी रूप से पंगु अविकसित देशों में उनके हथियारों की खरीद कागज में तो सरकारी व आधिकारिक होती है, परंतु वास्तव में ऐसे हथियार अंतत: स्थानीय आतंकी समूहों के हाथों में ही पहुंचते हैं।
पाकिस्तान एक ऐसा ही देश है। वह अमेरिका, चीन या किसी और देश से हथियारों तथा प्रक्षेपास्त्रों को एक लोकतांत्रिक राष्ट्र के तौर पर खरीदता है, पर सच्चाई यही है कि उसके सैन्य तंत्र की सहायता से ऐसे अस्त्र-शस्त्र बड़ी मात्रा में आतंकी समूहों तक पहुंचते हैं। आतंकियों को हथियार हस्तांतरण की ऐसी प्रक्रिया धीरे-धीरे वहां पर संस्थागत रूप ले चुकी है। पाकिस्तान के अलावा अन्य कई देशों में भी आतंक को पोषने के लिए यही आत्मघाती प्रक्रिया चल रही है, जो पाकिस्तान की तरह ही एक राष्ट्र के रूप में कमजोर पड़ चुके हैं। सोमालिया की भी स्थिति पाकिस्तान से अलग नहीं है। विगत में वहां पर जो छोट-मोटे आतंकी हमले निरंतर होते रहे हैं, उन पर विश्व का ध्यान जाता ही नहीं था, लेकिन विगत रविवार की आतंकी घटना ने जिस तरह वहां पर मानवीय जीवन को बड़ी संख्या में लीला है, उससे विश्व के देशों में सोमालिया के प्रति हमदर्दी बड़ी है। अमेरिका ने भी वहां हुए इस आतंकी हमले की तीखी निंदा की है।
सवाल है कि आखिर आतंक के सर्वनाश के प्रति हर प्रकार की सुविधा व संसाधनों से लैस देशों में ठोस एकता कैसे होगी? क्योंकि यह सिद्ध बात है कि शक्तिशाली देशों की ऐसी एकता के बिना आतंकवाद पर नियंत्रण तथा उसके उन्मूलन का काम कभी नहीं हो सकता। विश्व के संवेदनशील लोगों के सम्मुख यह प्रश्न बारंबार उठ रहा है कि आतंक के उद्देश्य को पोषित करने वाले समुदाय द्वारा धर्म के नाम पर परिचालित विकृतियों पर पूर्ण रोक कब लगेगी। अनेक देशों में तो आतंक को परिभाषित करने तथा उसके उद्देश्यों को चिन्हित करने जैसे काम भी नहीं हो पा रहे।
विकेश कुमार वडोला