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विज्ञान की कसौटी पर आस्था, रामसेतु के मानवनिर्मित होने के मिले प्रमाण

अमेरिकी भूविज्ञानियों ने दावा किया है कि रामसेतु पर पाए जाने वाले पत्थर बिल्कुल अलग और बेहद प्राचीन हैं। इससे स्पष्ट है कि यह पुलनुमा संरचना प्राकृतिक नहीं है।

By Lalit RaiEdited By: Published: Sat, 16 Dec 2017 01:48 PM (IST)Updated: Sun, 17 Dec 2017 10:35 AM (IST)
विज्ञान की कसौटी पर आस्था, रामसेतु के मानवनिर्मित होने के मिले प्रमाण
विज्ञान की कसौटी पर आस्था, रामसेतु के मानवनिर्मित होने के मिले प्रमाण

नई दिल्ली  [अभिषेक कुमार]। यह अनायास नहीं है कि आस्था के एक प्रश्न को विज्ञान की मदद से हल करने की कोशिश की जा रही है। हमारे देश में ऐसा अनेक बार हुआ है जब धार्मिक आस्था से जुड़े मसलों की वैज्ञानिकता को परखने का प्रयास किया गया। हालांकि ऐसे मुद्दों को लेकर धर्म समाज की तरफ से आपत्तियां भी पैदा की गईं, लेकिन वैज्ञानिकता साबित होने पर उस आस्था को और बल मिला, जैसे गंगाजल के चमत्कारी औषधीय गुणों का प्रभाव। इधर ऐसी ही एक आस्था विज्ञान की कसौटी पर कसी जा रही है। यह आस्था भारत-श्रीलंका के बीच समुद्र में मौजूद रामसेतु के मानव निर्मित होने की है, जिसे वर्ष 2007 में सुप्रीम कोर्ट में दिए गए एक हलफनामे के आधार पर प्राकृतिक बताया गया था। दावा है कि एक अमेरिकी साइंस चैनल पर प्रसारित होने जा रहे कार्यक्रम में रामसेतु को उपलब्ध वैज्ञानिक साक्ष्यों के आधार पर मानवनिर्मित साबित किया गया है।

अमेरिकी जानकारों की राय
असल में अमेरिका का एक साइंस टीवी चैनल इन दिनों टीवी पर ऐसे प्रोमो दिखा रहा है जिसमें अमेरिकी भूवैज्ञानिकों के हवाले से दावा किया गया है कि भारत के रामेश्वरम के पंबन आइलैंड से श्रीलंका के मन्नार आइलैंड के बीच समुद्र के भीतर पुल की तरह दिखने वाली 50 किलोमीटर लंबी श्रृंखला मानव निर्मित है। राम सेतु को एडम्स ब्रिज भी कहा जाता है। उल्लेखनीय है कि इस रामसेतु का जिक्र तुलसीकृत रामचरित मानस और वाल्मीकि की रचना रामायण, दोनों में है। हिंदू आस्था सदियों से इस सेतु (पुल) के अस्तित्व के बारे में और इसे भगवान राम की वानर सेना द्वारा निर्मित किए जाने की पक्षधर है, लेकिन एक राय ऐसी भी है, जिसके अनुसार यह सेतु सिर्फ एक मिथक है और इसे कल्पना के आधार पर खड़ा किया गया है, परंतु रामसेतु के मिथक होने की बात अमेरिकी स्पेस एजेंसी द्वारा लिए गए चित्रों से खंडित हो चुकी है।

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जेमिनी-11 और रामसेतु
गौरतलब है कि 14 दिसंबर, 1966 को नासा के उपग्रह जेमिनी-11 ने स्पेस से एक चित्र लिया था, जिसमें समुद्र के भीतर इस स्थान पर पुल जैसी संरचना दिख रही है। इस चित्र को लिए जाने के 22 साल बाद 1988 में अंतरराष्ट्रीय स्पेस स्टेशन ने भी समुद्र के अंदर मौजूद इस संरचना का पता लगाया था और इसका चित्र लिया था। भारतीय उपग्रहों से भी लिए गए चित्रों में पता चला है कि वहां एक पुल था। हालांकि इन चित्रों के विश्लेषण के बाद नासा ने यह कहा था कि उपग्रह और स्पेस स्टेशन से ली गई ये तस्वीरें यह साबित नहीं करतीं कि यह पुल मानव निर्मित है। हो सकता है कि यह एक प्राकृतिक संरचना हो। यह भी उल्लेखनीय है कि हमारे देश में इस तथ्य को साबित करने के कई प्रयास हुए कि यह पुल मानव निर्मित है, लेकिन ज्यादातर कोशिशें सिरे नहीं चढ़ीं और उनमें से ज्यादातर को कोई मान्यता नहीं मिली।

अब जिस तरह से अमेरिकी साइंस चैनल पर दावा किया जा रहा है, उससे प्रतीत होता है कि देरसबेर रामसेतु के बारे में यह धारणा व्यापक रूप से स्वीकार कर ली जाएगी कि यह मानव निर्मित है। साइंस चैनल के प्रोमो के मुताबिक इस बात के प्रमाण हैं कि भारत और श्रीलंका के बीच समुद्र के अंदर स्थित इस बलुई रेखा (संरचना) पर मौजूद पत्थर करीब 7000 साल पुराने हैं। भूविज्ञानियों और वैज्ञानिकों ने दावा किया है कि रामसेतु पर पाए जाने वाले पत्थर बिल्कुल अलग और बेहद प्राचीन हैं। इससे साबित होता है कि यह पुलनुमा संरचना प्राकृतिक तो नहीं है।1एक दावे के मुताबिक 15वीं सदी में इस पुल का उपयोग होता था और लोग इसके जरिये रामेश्वरम से मन्नार तक जाया करते थे, लेकिन उस बीच आए समुद्री तूफानों की वजह से यह पुल समुद्र के अंदर चला गया और बताते हैं कि वर्ष 1480 में यह चक्रवात के चलते टूट गया था। हालांकि इस पुल को आज समुद्र के ऊपर से सामान्य रूप से देखना मुमकिन नहीं है, लेकिन हिंदू धार्मिक आस्था में आज भी इसका एक महत्वपूर्ण स्थान है। हालांकि आस्था से बाहर देखें तो रामसेतु का एक व्यापारिक उद्देश्य भी संभव हो सकता है। वर्ष 2005 में भारत सरकार ने इसी मकसद से सेतु समुद्रम परियोजना का एलान किया था। इस परियोजना के तहत तमिलनाडु को श्रीलंका से जोड़ने की योजना बनाकर इससे व्यापारिक फायदा उठाने की बात कही जाती रही है।

आस्था के साथ हो विकास
परियोजना के तहत रामसेतु के कुछ इलाकों को गहरा करके समुद्री जहाजों के लायक बनाया जाएगा, पर इसके लिए सेतु के पत्थरों को तोड़ना जरूरी है, जिसका हिंदू संगठन विरोध करते रहे हैं। दावा है कि इस परियोजना को अमल में लाने से रामेश्वरम देश का सबसे बड़ा शिपिंग हार्बर बन जाएगा। साथ ही तूतिकोरन हार्बर एक नोडल पोर्ट में तब्दील हो जाएगा और तमिलनाडु के तटीय इलाकों में कम से कम 13 छोटे एयरपोर्ट बन जाएंगे। यह दावा भी है कि सेतु समुद्रम परियोजना पूरी होने के बाद सारे अंतरराष्ट्रीय जहाज कोलंबो बंदरगाह का लंबा मार्ग छोड़कर इसी नहर से गुजरेंगे। अनुमान लगाया गया कि ऐसी स्थिति में 2000 या इससे अधिक जलपोत प्रतिवर्ष इस नहर का उपयोग कर सकेंगे। चूंकि इससे रास्ता छोटा हो जाएगा, जिस कारण यात्र का समय और रास्ते की लंबाई तो छोटी होगी ही, संभावना है कि जलपोतों का 22 हजार करोड़ रुपये का तेल भी बचेगा। हालांकि इस परियोजना के निर्माण में 2000 करोड़ की राशि खर्च होने का अनुमान है, पर बताया जाता है कि 19वें वर्ष तक परियोजना 5000 करोड़ रुपये से अधिक का व्यवसाय करने लगेगी।

बेशक यह हर कोई चाहेगा कि रामसेतु के बारे में जो भी प्रमाणिक तथ्य हैं, वे स्पष्ट हों और उनसे हिंदू धार्मिक आस्था को बल मिले, पर अब वक्त आ गया है कि जब देश, समाज और जनता को विकास के सही मर्म को पहचानते हुए संसाधनों के सार्थक उपयोग के बारे में गंभीरता से विचार करना चाहिए। रामसेतु से अगर जहाजों को भी रास्ता मिल सकेगा तो इसकी सार्थकता रावण पर श्रीराम की सेना की विजय जितनी ही महत्वपूर्ण कहलाएगी।

(लेखक आइएफएस ग्लोबल से संबद्ध हैं)
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