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अखिलेश यादव ने संगठन पर दिया जोर लेकिन सपा-कांग्रेस की मजबूरी है गठबंधन

लोकसभा चुनाव के मद्देनजर सपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष अखिलेश यादव पहले ही कह चुके हैं कि फिलहाल वो संगठन पर ध्यान केंद्रित कर रहे हैं।

By Lalit RaiEdited By: Published: Sat, 13 Jan 2018 04:09 PM (IST)Updated: Sat, 13 Jan 2018 04:27 PM (IST)
अखिलेश यादव ने संगठन पर दिया जोर लेकिन सपा-कांग्रेस की मजबूरी है गठबंधन
अखिलेश यादव ने संगठन पर दिया जोर लेकिन सपा-कांग्रेस की मजबूरी है गठबंधन

नई दिल्ली [ स्पेशल डेस्क ] । लोकसभा चुनाव में अभी एक वर्ष से ज्यादा का वक्त है। लेकिन देश के सबसे बड़े सूबे उत्तर प्रदेश में सियासी संभावनों को तलाशा जा रहा है। राज्य की मुख्य विपक्षी दल समाजवादी पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष अखिलेश यादव ने कहा था कि लोकसभा चुनाव के मद्देनजर कांग्रेस के साथ गठबंधन के लिए अभी बहुत समय है। फिलहाल वो पार्टी के संगठन को मजबूत करने पर जोर दे रहे हैं। अखिलेश यादव ने ये भी कहा था कि समाजवादी लोगों ने बहुत धोखा खाया है लेकिन सच ये है कि बार बार धोखा खाने के बावजूद समाजवादी मजबूत हुए हैं। संगठन और गठबंधन के बीच सवाल यही है कि क्या समाजवादी पार्टी एक बार फिर 2019 के आम चुनाव के लिए कांग्रेस से गठबंधन करेगी, या वो अकेले नरेंद्र मोदी के विजय रथ को रोकने के लिए अपने बलबूते चुनाव में उतरेगी।

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गठबंधन के सवाल से बचती समाजवादी पार्टी
कांग्रेस और समाजवादी पार्टी भले ही अभी गठबंधन के सवालों से बचने की कोशिश कर रही हैं लेकिन, 2019 के लोकसभा चुनाव में एक-दूसरे का साथ दोनों की मजबूरी भी होगी। सूबे में दोनों दल तभी उभर पाएंगे जब एक-दूसरे का हाथ थामे हों। यही वजह है कि दोनों ही दल अभी अपनी-अपनी ताकत बढ़ाने की बात कह रहे हैं और इसके लिए जुटे भी हैं लेकिन, चुनाव तक यह एक-दूसरे के करीब फिर नजर आ सकते हैं। यही समीकरण उनकी ओर मुस्लिम मतों को खींचने में भी सफल हो सकता है।


भाजपा की आंधी में सपा और कांग्रेस की टूटी कमर

लोकसभा और विधानसभा चुनावों में भाजपा की आंधी ने कांग्रेस और समाजवादी दोनों ही पार्टियों की कमर तोड़ी है। लोकसभा में कांग्रेस जहां मात्र दो सीटें हासिल कर पाई थी, वहीं सपा के हिस्से भी सिर्फ पांच सीटें ही आई थीं। इसी तरह विधानसभा चुनाव में सपा 47 तो कांग्रेस सात सीटें ही हासिल कर सकी थी लेकिन, दोनों ही दल अब करारी हार के सदमे से उबरकर अपनी जड़ें मजबूत करने को आतुर नजर आते हैं। कांग्रेस का मनोबल गुजरात चुनाव परिणाम ने बढ़ाया है तो राहुल की अध्यक्ष पद पर ताजपोशी ने पार्टी में माहौल बदला है और कांग्रेस अपना संगठनात्मक ढांचा मजबूत करने के प्रति गंभीर हुई है। प्रदेश अध्यक्ष राज बब्बर ने कहा भी हम पार्टी की मजबूती के लिए काम करेंगे। हालांकि, उन्होंने भी चुनाव तक गठबंधन की संभावनाएं बनाए रखी हैं।

जानकार की राय

दैनिक जागरण से खास बातचीत में वरिष्ठ पत्रकार प्रदीप सिंह ने बताया कि 2017 यूपी विधानसभा चुनाव के नतीजों में सपा-कांग्रेस गठबंधन जो हश्र हुआ वो सबके सामने है। दरअसल कांग्रेस का चुनावी अभियान शुरुआत में सपा के विरोध में केंद्रित था। पार्टी के रणनीतिकारों ने देवरिया से लेकर गाजियाबाद तक खाट सभा का आयोजन कर अखिलेश सरकार की मुखालफत कर रहे थे। लेकिन जमीन पर उन्हें जो प्रतिक्रिया मिल रही थी वो निराशाजनक थी। ठीक उसी समय सपा में पारिवारिक कलह भी चरम पर था। आंतरिक चुनौतियों के साथ नरेंद्र मोदी के हमलों को झेलने में नाकाम रहने पर दोनों दलों के सामने एक ही रास्ता था जो गठबंधन के रूप में सामने आया। लेकिन जनता को ये दोनों दलों के बीच का गठजोड़ रास नहीं आया।  जहां तक 2019 के आम चुनाव की बात है तो विपक्षी दलों के लिए मुद्दों की कमी नहीं है। लेकिन सिर्फ बयानों के जरिए तीखी आलोचना कर कामयाबी हासिल नहीं कर सकते हैं। लिहाजा अखिलेश यादव सबसे पहले संगठन की बात कर रहे हैं। क्योंकि उन्हें पता है कि जब तक जमीनी स्तर पर कार्यकर्ताओं में जोश का संचार नहीं होगा, उत्तर प्रदेश में शानदार जीत का सपना सिर्फ सपना ही रह जाएगा। 

बसपा के कद्दावर नेता निकले, सपा को मिली ताकत !
दूसरी ओर सपा को बीएस-फोर के अध्यक्ष आरके चौधरी व बसपा के कई बड़े नेताओं के आ जाने से ताकत मिली है। समय से पहले ही दावेदारों की स्क्रीनिंग शुरू करके पार्टी अभी से ही अधिक से अधिक लोगों को जोड़े रखने की कोशिशों में जुट गई है। खुद अखिलेश साफगोई से स्वीकार भी करते हैं-‘बीते चुनावों की हार ने हमें कई सबक दिए हैं।’ यह सबक अपने पत्तों को न खोलने के रूप में भी है। ईवीएम मुद्दे पर उनकी पहल ने छोटे दलों को एक मंच पर लाकर सपा को अगुआ दल के रूप में उभार भी दिया है। इसके कई फैक्टर ऐसे हैं, जिनकी वजह से सपा और कांग्रेस दोनों ही आगे चलकर एक-दूसरे के पूरक रूप में खड़े नजर आ सकते हैं। विधानसभा चुनाव में कांग्रेस जिन सीटों पर चुनाव लड़ी है, वहां उसे 22 फीसद मत हासिल हुए थे, जबकि सपा को 28 प्रतिशत। लोकसभा चुनाव का कैनवस बड़ा होने के कारण दोनों का साथ यह प्रतिशत बढ़ा सकता है।

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