वीआईपी हैं हम, स्टेटस किसी के कहने से कैसे हो जाए कम!
भले ही केंद्र सरकार ने देश में वीआईपी कल्चर खत्म करने के लिए लालबत्ती के इस्तेमाल पर रोक लगा दी हो, लेकिन जिन लोगों को इसकी आदत है, वे रुतबा किसी भी तरह से कम होने देना नहीं चाहते।
नई दिल्ली, [स्पेशल डेस्क]। लोकतंत्र में जनता को मालिक का दर्जा हासिल है, जबकि प्रधानमंत्री से लेकर मुख्यमंत्री और अन्य सभी मंत्री व नेतागण जनसेवक हैं। यही नहीं तमाम विभागों के अधिकारी और हर सरकारी कर्मचारी भी पब्लिक सर्वेंट हैं। लेकिन देश की लोकतांत्रिक व्यवस्था में न जाने कब नेता और अधिकारी खुद को जनता का मालिक और वीआईपी मानने लग गए। जनता ने जिन्हें अपने लिए व्यवस्था बनाने के वास्ते चुना और पदों पर बिठाया आगे चलकर वही राज करने लगे और खुद को मालिक समझने लगे।
ऐसे में जनता खुद को ठगा सा महसूस करने लगी और वीआईपी के कारण उसे परेशानियां भी झेलनी पड़ीं। इस तरह से वीआईपी और आम जनता के बीच खाई बढ़ती चली गई। अब एक तरफ जनसेवक या सर्वेंट से वीआईपी बन बैठे लोग हैं तो दूसरी तरफ अपना अधिकार भुला चुकी मालिक जनता। आखिर एक कोशिश हुई कि इस वीआईपी कल्चर को खत्म किया जाए। देश की सरकार ने निर्णय लिया कि प्रधानमंत्री से लेकर मंत्री, मुख्यमंत्री, जज आदि किसी को भी वीआईपी कल्चर की निशानी बन चुकी लालबत्ती अपनी गाड़ियों पर इस्तेमाल करने की इजाजत नहीं होगी। इस फैसले को 1 मई से लागू कर दिया गया, सिर्फ आपातकालीन वाहनों में ही नीली बत्ती के इस्तेमाल की अनुमति दी गई।
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वीआईपी कल्चर के आदी हो चुके कई लोगों ने इसका छोटे स्तर पर ही सही विरोध भी किया, लेकिन फिर केंद्र सरकार के इस फैसले को मानना भी पड़ा। अब न तो प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की गाड़ी पर लाल बत्ती लगी होती है, न किसी मंत्री या मुख्यमंत्री की गाड़ी पर। इस लिहाज से सभी लोग एक समान हो गए। वीआईपी कल्चर को खत्म करने के लिए केंद्र सरकार की यह पहल सराहनीय तो है, लेकिन सत्ता में बैठे लोग हर तरह के बंधन का कोई न कोई तोड़ जरूर निकाल लेते हैं।
पार्टी के झंडे से वीआईपी स्टेटस बुलंद
भले ही केंद्र सरकार ने देश में वीआईपी कल्चर खत्म करने के लिए लालबत्ती के इस्तेमाल पर रोक लगा दी हो, लेकिन जिन लोगों को इसकी आदत है, वे अपना रुतबा किसी भी तरह से कम होने देना नहीं चाहते। ऐसे में खुद के वीआईपी स्टेस को कायम रखने के लिए कभी अधिकारी अपनी गाड़ियों पर भारत सरकार, तो कभी राज्य सरकार और नेता पार्टी का झंडा लगा लेते हैं।
यहां हूटर है वीआईपी स्टेटस
लाल बत्ती के इस्तेमाल पर रोक के बाद हर किसी ने अपने-अपने वीआईपी स्टेटस को बनाए रखने के लिए अगल-अलग तरीके को चुना। मध्यप्रदेश में कुछ नेताओं ने बेमन से मुख्यमंत्री के कदम से कदम मिलाते हुए अपनी गाड़ी से लालबत्ती तो हटा दी, लेकिन वीआईपी स्टेटस खोने का डर सताने लगा। वीआईपी स्टेटस को बनाए रखने के लिए यहां उन्होंने अपनी गाड़ियों पर हूटर लगवा लिए, जबकि सेंट्रल मोटर वीइकल रूल्स किसी भी वाहन को ऐसा करने की इजाजत नहीं देते।
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...यहां पुलिस भी वीआईपी
जी हां, आपने भी सड़क पर कई गाड़ियों को दौड़ता देखा होगा, जिन पर या तो पुलिस लिखा होगा या पुलिस का लोगो बना होगा। हर बार उस गाड़ी में पुलिसकर्मी हों यह जरूरी नहीं, यही नहीं निजी वाहनों पर पुलिस लिखा भी आपने देखा होगा, जो वीआईपी स्टेटस की चाह से कम नहीं है। पुलिसकर्मी की निजी गाड़ी पर पुलिस लिखा आराम से दिख जाता है, जबकि उस वाहन का पुलिस के कामों के लिए इस्तेमाल नहीं होता है।
पश्चिम बंगाल में गाड़ियों पर लगेगी झंडी
पश्चिम बंगाल की सरकार तो इन सबसे एक कदम आगे ही बढ़ गई है। राज्य सरकार ने अपने अधिकारियों के लिए एक ऐसी व्यवस्था शुरू की है, जिसके मुताबिक वो अपनी गाड़ियों पर अलग-अलग तरह के झंडे लगा पाएंगे जो कि उनके रुतबे को दिखाएंगे। इस व्यवस्था में अफसर आयताकार, तिकोने और बीच से कटे झंडे गाड़ी पर लगा सकेंगे। हालांकि झंडे गाड़ी पर तभी लगाए जा सकेंगे, जब अफसर ड्यूटी पर होंगे। पश्चिम बंगाल के प्रशासनिक एवं कार्मिक विभाग ने एक नोटिफिकेशन जारी कर इस बात सूचना दी है।
मुसीबत लालबत्ती नहीं उसकी मानसिकता है
लालबत्ती के इस्तेमाल पर रोक के मोदी सरकार के फैसले का स्वागत तो किया गया, लेकिन खुद नेता या अधिकारी अपनी ठाठ छोड़ने को तैयार नहीं हैं। कई राज्यों में नेताओं ने नया जुगाड़ करते हुए इस नए नियम की काट निकाल ली है। ऐसे में सवाल है कि क्या सिर्फ लालबत्ती या नीली बत्ती हटाने से वीआइपी कल्चर समाप्त हो जाएगा? शायद नहीं... अगर वीआइपी कल्चर को समाप्त करना है तो पहले इसे लेकर मानसिकता में बदलाव लाना जरूरी होगा।
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