नोएडा में दिन दहाड़े कार लूट: ये है वो फॉर्मूला जिससे अपराध हो जाएंगे आधे
नोएडा में जीआईपी मॉल के सामने से दिनदहाड़े हथियार के दम पर कार लूट ली जाती है तो ऐसे में कानून व्यवस्था पर सवाल तो उठेंगे ही। लेकिन एक फॉर्मूला है, जिससे अपराध आधे हो जाएंगे...
नई दिल्ली, [स्पेशल डेस्क]। उत्तर प्रदेश में योगी राज में भी अपराधी बेखौफ नजर आ रहे हैं। बदमाश आए दिन लूट और चोरी की वारदातों को अंजाम दे रहें हैं। देश की राजधानी दिल्ली से सटे नोएडा में भी अपराध का ग्राफ तेजी से बढ़ रहा है। अब बेखौफ बदमाश आम आदमी तो दूर पत्रकारों को भी निशाना बनाने से नहीं चूक रहे हैं।
दैनिक जागरण, दिल्ली के मुख्य महाप्रबंधक, मुद्रक व प्रकाशक नीतेंद्र श्रीवास्तव की इनोवा कार को एक अन्य कार में सवार बदमाशों ने लूट लिया। लूट की इस वारदात को शुक्रवार शाम करीब चार बजे नोएडा के जीआइपी मॉल के पास अंजाम दिया गया। आपने यह खबर तो अखबार में पढ़ी ही होगी। बदमाश उनके ड्राइवर को भी अगवा करके ले गए और उसे बेहोश करके तीन घंटे तक नोएडा व गाजियाबाद में घुमाते रहे। शाम करीब सात बजे ड्राइवर को राजनगर एक्सटेंशन, गाजियाबाद में फेंककर वे फरार हो गए।
दिल्ली एनसीआर में कार लूट और चोरी की ऐसी वारदातें होती रहती हैं। मोबाइल चोरी और लूट की घटनाएं भी लगभग रोज ही सामने आती रहती हैं। इन सब मामलों पर Jagran.Com ने उत्तर प्रदेश के पूर्व डीजीपी विक्रम सिंह से बात की। उन्होंने इन मामलों पर अपनी बेबाक राय रखी। पहले जानते हैं कार चोरी होने के बाद पहले 6 घंटे में क्या होता है...?
कार चोरी होने के बाद के वो पहले 6 घंटे
दिल्ली-एनसीआर से कार चोरी होने के बाद उसका क्या होता होगा? यह सवाल आपके भी दिमाग में कई बार आया होगा। इस मामले में विक्रम सिंह ने बताया कि इस इलाके से चोरी होने के बाद कार को जल्द से जल्द मेरठ पहुंचाया जाता है। मेरठ में 6 कबाड़ी हैं जो 6 घंटे में आपकी कार के 200 टुकड़े कर देते हैं। बैटरी अलग, इंजन अलग, म्यूजिक सिस्टम अलग, सीट, गियर बॉक्स और टंकी को अलग कर दिया जाता है। दूसरा रास्ता वे बताते हैं कि कार को नेपाल ले जाकर रजिस्ट्रेशन बदला जाता है, लेकिन वह लंबा रास्ता है।
चोरी और लूट में बड़ा अंतर
पूर्व डीजीपी से हमने सबसे पहले यह जानने की कोशिश की कि चोरी और लूट में कितना अंतर है। आम तौर पर लोग इन दोनों तरह की वारदातों को लेकर असमंजस में रहते हैं। विक्रम सिंह ने बताया कि इन दोनों में बड़ा अंतर है। उन्होंने कहा, चोरी में जहां चोर हमारी लापरवाही या अनभिज्ञता का फायदा उठाकर वारदात को अंजाम देता है, वहीं लूट में हथियारों का इस्तेमाल होता है। लूटेरा डरा, धमकाकर, बंधक बनाकर ऐसी वारदातों को अंजाम देता है। पूर्व डीजीपी ने बताया कि चोरी जहां एक अहिंसक वारदात है, वहीं लूट में हिंसा होती है। जब लूट में 5 या इससे ज्यादा व्यक्ति शामिल होते हैं तो यह डकैती कहलाती है। उन्होंने बताया कि लूट की वारदात चोरी से कहीं ज्यादा संगीन मामला है।
कितना आसान है लूट की वारदात को रोकना
विक्रम सिंह ने बताया कि लूट की घटनाओं को रोकना आसान है। उन्होंने कहा कि चोरी की घटनाओं को पकड़ना थोड़ा कठिन है। पूर्व डीजीपी ने कहा, अगर 100 लोग चोरी करते हैं तो लूट की वारदात को सिर्फ 25 लोग ही अंजाम देते हैं, इसलिए उन्हें पकड़ना आसान है। पुलिस अगर ठान ले तो लूट ही नहीं चोरी की वारदातों पर भी लगाम लगायी जा सकती है। वे इसके लिए पुलिस के पूरे सिस्टम को दोषी मानते हैं। वे कहते हैं अगर पुलिस वाले प्रॉपर्टी डीलिंग करेंगे, स्टॉक मार्केट खेलेंगे और अन्य दुनियाभर के धंधे करेंगे तो वे पुलिस का काम नहीं कर सकते। पुलिस में काम करने वाले लोगों को समझना चाहिए कि उनका वर्दी से गठबंधन हो गया है और यह उनके साथ 24 घंटे रहती है। इसलिए पुलिस का काम 24 घंटे सचेत रहना है।
क्यों बढ़ी लूट की वारदातें
पूर्व डीजीपी ने बताया कि अंग्रेजों ने 150 साल तक आपराधिक सूचना संकलन की अच्छी व्यवस्था की थी। लेकिन पिछले कुछ सालों में सरकार ने उसे बर्बाद कर दिया। मामले दर्ज नहीं होने से अपराधियों के हौसले बुलंद हुए हैं। पिछले कुछ सालों में यह व्यवस्था की गई कि न मामले दर्ज हों, न हिस्ट्रीशीट खुले, न हिस्ट्रीशीटर की निगरानी हो और न गश्त हो, न गाड़ाबंदी। अपने निहित स्वार्थों के चलते सत्ता में बैठे लोगों ने अपराधियों को शह दे रखी थी। थानाध्यक्ष का मासिक, क्षेत्राधिकारी का क्वाटर्ली, कप्तान, डीआईजी और आईजी के अर्धवार्षिक और वार्षिक मुआयने होते थे। लेकिन पिछले कुछ सालों में ये सारे मुआयने खत्म कर दिए गए। ऐसे में सिपाही से लेकर डीजी तक सभी ने बाहर निकलना बंद कर दिया।
पुलिस मैनुअल की सीख
विक्रम सिंह ने Jagran.Com से बात करते हुए बताया कि पुलिस के अधिकारी चाहे वह सिपाही हो या डीजी उसे पुलिस मैनुअल के अनुसार साल में 180 दिन (6 महीने) नाइट आउट करना जरूरी है। इस दौरान उसे अपराधियों की खोज करनी है, इंटेलिजेंस डेवलप करनी है। हिस्ट्रीशीटर की निगरानी और क्राइम रिकॉर्ड को अपडेट करना उसकी जिम्मेदारी है। आज पुलिस की गाड़ियों और दफ्तरों में एसी लग गए हैं। पुलिसकर्मी एसी और वाइफाई के आदी हो गए हैं, तो ऐसे में उनके बस की बात नहीं कि वे अपराधों पर लगाम लगा सकें।
मोबाइल चोरी के मामले
मोबाइल चोरी के मामले पूर्व डीजीपी ने कहा कि 95 फीसद मामले दर्ज ही नहीं होते। उन्होंने बताया, यह आंकड़ा सिर्फ मोबाइल चोरी का ही नहीं, बल्कि हर तरह के अपराधों का है। सिर्फ 5 फीसद मामले दर्ज होते हैं और वह भी सिफारिश लगाने के बाद। उनका कहना है कि अगर पुलिस IMEI नंबर से मोबाइल को सर्विलांस पर लगाए तो आसानी से मोबाइल को ढूंढ सकती है, लेकिन पुलिस इतनी मेहनत करती ही नहीं। IMEI नंबर बदले जाने पर उन्होंने कहा कि अव्वल तो यह नाममुकिन सी बात है, फिर भी ऐसा करने के लिए गफ्फार मार्केट जैसी जगहों तक ज्यादातर मोबाइल नहीं पहुंचते। ज्यादातर चोरी के मोबाइल पुराना सामान बेचने वाले लोगों से आम लोग खरीद लेते हैं।
कैसे रुकें ऐसी वारदातें
पूर्व डीजीपी इस बारे में काफी सख्त नजर आते हैं। वे कहते हैं कि पुलिस के अंदर अपराधों को रोकने के लिए जज्बे की कमी है। वे बताते हैं कि पुलिस के पास अच्छे हथियार हैं, लेकिन उनके अंदर वो कार्यकौशल नहीं है। वे कहते हैं एक पुलिसकर्मी आधा कसाई और आधा हलवाई होता है, लेकिन आपने तो कसाई वाले हिस्से को निकाल ही दिया है। अब जो बचा वह हलवाई ही रह गया है। अपराधी को पकड़े जाने के बाद दो दिन तक उससे कठोर पूछताछ होती है। विक्रम सिंह कहते हैं कि बिना किसी खर्च के पूरे उत्तर प्रदेश से 50 फीसद अपराध कम हो जाएगा। इसके लिए हर थाना क्षेत्र से 5 टॉप अपराधियों को पकड़कर बंद कर दें। यूपी में 1580 थाने हैं, जिले के टॉप 50 अपराधियों को बंद कर देंगे तो अपराध आधे हो जाएंगे। पुलिसकर्मियों से कहना होगा कि दरोगा जी या तो अपराधों पर लगाम लगाइए और अपराधियों को जेल में डालिए, या फिर आप जेल जाइए। ऐसा करके देखिए कैसे अपराध कम नहीं होते।