आतंकी संगठनों को नए मुजाहिद्दीनों का टोटा, घाटी में लौट रहे पुराने आतंकी
भारतीय सेना के ऑपरेशन ऑल आउट की सफलता का अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि अब आतंकी संगठनों को नए मुजाहिद्दीन नहीं मिल रहे हैं। पुराने आतंकी घाटी में लौट रहे हैं।
श्रीनगर, [नवीन नवाज]। ऑपरेशन ऑल आउट में लगातार प्रमुख कमांडरों के मारे जाने से हताश आतंकी संगठन और पाकिस्तानी खुफिया एजेंसी ने कश्मीर में बचे-खुचे आतंकियों को जमा करने और नए आतंकियों का मनोबल बनाए रखने के लिए एक बार फिर पुराने आतंकियों और अपने परिजनों को कश्मीर भेजना शुरू कर दिया है। इस समय वादी के विभिन्न हिस्सों में लगभग एक दर्जन ऐसे आतंकी सक्रिय हैं जो पहले भी कश्मीर में सक्रिय रहे और फिर वापस लौट गए थे।
गौरतलब है कि इस साल कश्मीर में अब तक सुरक्षाबलों ने 190 आतंकियों को मार गिराया है। इनमें 110 के करीब विदेशी आतंकी थे। मारे गए आतंकियों में तीन दर्जन से ज्यादा नामी कमांडर थे। इनमें दुजाना, यासीन यत्तु, अबु इस्माईल, खालिद के नाम प्रमुख हैं।
मारा गया मक्की का बेटा ओसामा जंगी
हालांकि अधिकारिक तौर पर कोई भी वरिष्ठ पुलिस अधिकारी या खुफिया अधिकारी पुराने आतंकियों के वापस लौटने की पुष्टि नहीं करता। लेकिन सभी दबी जुबान मानते हैं कि लश्कर, जैश, हिजबुल मुजाहिदीन और तहरीक-उल-मुजाहिदीन ने अपने कुछ पुराने कमांडरों को कश्मीर में भेजा है। गत दिनों हाजिन में जहां लश्कर और जमात-उल-दावा के नंबर दो अब्दुल रहमान मक्की का पुत्र ओसामा जंगी मारा गया है, वहीं उसके साथ मारे गए आतंकी माविया के बारे में कहा जाता है कि वह कुछ साल पहले भी कश्मीर में सक्रिय रहा था और इसी साल दोबारा आया था।
इसी मुठभेड़ में मारे गए आतंकी महमूद भाई के बारे में कहा जाता है कि वह भी तीन साल बाद ही गत वर्ष कश्मीर लौटा था। वापस आने वाले आतंकी कमांडरों में पाकिस्तानी सेना का एक पूर्व कैप्टन शहजाद खान भी बताया जाता है। शहजाद खान करगिल युद्ध के बाद वर्ष 2001 में लश्कर में शामिल हुआ था और उसके कुछ समय बाद वह कश्मीर आया था। लगभग पांच साल सक्रिय रहने के बाद वह श्रीनगर के बाहरी क्षेत्र में 2007 में पकड़ा गया था। जेल में सजा काटने के बाद उसे पाकिस्तान भेजा गया था।
संबधित सूत्रों की मानें तो वह बीते कुछ महीनों से बांडीपोर, सोपोर और सफापोरा के इलाके में कुछ नए आतंकियों के साथ देखा गया है। कहा जाता है कि जब वह पहले यहां था तो उसने बांडीपोर में एक महिला से शादी की थी। उसकी वापसी का एक कारण उसकी बीबी भी हो सकती है। शहजाद खान के अलावा वापस लौटने वाले नामी आतंकियों में अबु हुरैरा जो वर्ष 2015 में कश्मीर से वापस लौटा था, भी शामिल है और उसके श्रीनगर के बाहरी क्षेत्र हारवन में होने का दावा किया जा रहा है।
करीब तीन साल कश्मीर में सक्रिय रहने के बाद वर्ष 2009 की शुरुआत में ही बहावलपुर लौटने वाला आतंकी खालिद भी इसी साल कश्मीर में आया है और इस समय जैश का नेटवर्क तैयार करने में जुटा है। साल 2007 में वापस पाकिस्तान जाने वाला आतंकी दाऊद और 2008 तक कश्मीर में सक्रिय रहा गाजी पठान भी वादी में आ चुका है।
राज्य पुलिस के एक अधिकारी के अनुसार, पुराने आतंकियों की कश्मीर में वापसी के कई मायने हैं। पहला यही कि कोई नया कमांडर कश्मीर में मरने को तैयार नहीं है या फिर उन्हें ऐसा कमांडर नहीं मिल रहा है जो यहां उनके कैडर को संभाल सके। इसके अलावा पुराने आतंकी कमांडर जो यहां से गए हैं, उन्हें कश्मीर की भौगोलिक परिस्थितियों की जानकारी है, उनका अपना एक पुराना ओजीडब्ल्यू नेटवर्क है, जो उनके आने पर ही सक्रिय होगा। इसके अलावा स्थानीय आतंकियों की ट्रेनिंग में भी वह काम आते हैं।
नेतृत्व का संकट और आदर्श
आईजीपी कश्मीर मुनीर अहमद खान के मुताबिक, नेतृत्व का संकट और संगठन में आदर्श कायम करने के लिए ही आतंकी सरगना पुराने आतंकियों या फिर अपने परिजनों को कश्मीर भेजते हैं। लखवी का बेटा और दो भतीजे कश्मीर में मारे गए हैं। इससे लश्कर के आम आतंकी का मनोबल भी बढ़ेगा और नए आतंकियों की भर्ती भी तेज होगी, क्योंकि उनके साथ जुड़ने वाले कहेंगे कि देखो उनके खानदान के लोग भी कश्मीर जिहाद में शामिल हैं।
इसके अलावा कश्मीर में सक्रिय आतंकियों में अक्सर वर्चस्व की बात होती है, तो उस समय यही कमांडर और आतंकी सरगनाओं के परिजन काम के साबित होते हैं, सब इन्हें अपना लीडर मान लेते हैं। इस समय आतंकी संगठनों में कमांडरों की कमी है और इसलिए यह पुराने आतंकी या आतंकियों के परिजन कश्मीर में आ रहे हैं।
दो साल तक रहते हैं कश्मीर में
विदेशी आतंकी जिन्हें भाड़े का सैनिक भी कहा जाता है, वे कश्मीर में सामान्य तौर पर दो साल के लिए ही सक्रिय रहते हैं। कई बार इन आतंकियों को उनके सरगना एक डेढ़ साल में ही वापस बुला लेते हैं और कई बार कुछ आतंकियों का कश्मीर दौरा चार साल तक बढ़ा दिया जाता है। यह उक्त आतंकी कमांडर के नेटवर्क और उसके द्वारा अंजाम दी जाने वाली गतिविधियों पर निर्भर करता है।
पैसा और सुविधाएं भी खींच लाती हैं कश्मीर
जेल में बंद एक पाकिस्तानी आतंकी सैफुल्लाह भाई जो कभी जैश-ए-मोहम्मद के साथ था। कश्मीर में सक्रिय रहने के बाद घर लौट गया और करीब एक साल तक पाकिस्तान में रहने के बाद उसने जैश को छोड़ लश्कर का दामन थामा था और कश्मीर आ गया था। करीब चार साल पहले वह कुपवाड़ा में पकड़ा गया था। उसके मुताबिक कश्मीर में सक्रिय आतंकियों को जो सुविधाएं और पैसा मिलता है, वह भी यहां वापस आने का एक बड़ा कारण है। उसके मुताबिक, उसके पिता पाकिस्तान पुलिस में काम करते हैं। पाकिस्तान लौटने पर आतंकियों को लाखों रुपये बतौर इनाम भी मिलते हैं।