केदारनाथ आपदा जैसी एक और त्रासदी यहां ले रही आकार, अब भी न चेते तो...
गोमुख के मुहाने पर मलबे के कारण बन रही झील ने पर्यावरणविदों की चिंता बढ़ा दी है। अभी से सावधान होने की जरूरत है, अन्यथा केदारनाथ जल प्रलय से भी बड़ी त्रासदी आ सकती है।
नई दिल्ली, [स्पेशल डेस्क]। गंगोत्री ग्लेशियर में बन रही एक झील केदारनाथ जैसी भीषण आपदा के संकेत दे रही है। गंगा के उद्गम स्थल गोमुख के मुहाने पर झील बनने की शुरुआत से ऐसे संकेत मिल रहे हैं। अगर कभी इस झील ने आशंका के अनुरूप पूरा रूप लिया तो इसका आकार केदारनाथ आपदा का कारण बनी चौराबारी ग्लेशियर की झील से करीब चार गुना बड़ा होगा। हाल ही में गोमुख के दौरे से लौटे वाडिया हिमालय भूविज्ञान संस्थान के वैज्ञानिकों के आकलन में यह बात निकलकर सामने आई है।
मलबे के कारण बन रही झील
खतरे से आगाह करने वाला यह वही वाडिया हिमालय भूविज्ञान संस्थान है, जिसने 2004 में केदारनाथ आपदा से पहले भी इसी तरह चेताया था। इसके भू-विज्ञानियों ने कहा है कि गोमुख में बन रही झील को बेहद गंभीरता से लिया जाना चाहिए। संस्थान के वरिष्ठ वैज्ञानिक डॉ. पीएस नेगी ने बताया कि इसी वर्ष जुलाई में आई बाढ़ के बाद गोमुख में झील का बनना शुरू हुआ है। बाढ़ के कारण धारा के मुहाने पर करीब 30 मीटर ऊंचे मलबे का ढेर लग जाने से ऐसा हुआ। फिलहाल यहां करीब चार मीटर गहरी झील बन गई है। जो धारा पहले सीधे बहती थी, वह भी अब दायीं तरफ से बहने लगी है। यदि कभी यह बहाव भी रुक गया तो यहां 30 मीटर ऊंची, 50-60 मीटर लंबी और करीब 150 मीटर चौड़ी झील बन जाएगी। ऐसे में 30 मीटर ऊंचा मलबे का ढेर, जो बोल्डर, रेत और आइस ब्लॉक से बना है, एक झटके में टूट जाएगा।
क्या कहते हैं जानकार
डॉ. पीएस नेगी के मुताबिक सावधान हो जाने की जरूरत है। यह इसलिए भी जरूरी है कि इस झील में चौराबारी झील से कहीं अधिक पानी और मलबा जमा करने की क्षमता है, जबकि महज सात मीटर गहरी और 100 मीटर से भी कम चौड़ी चौराबारी झील के फटने से केदारनाथ क्षेत्र में प्रलय की स्थिति आ गई थी।
क्या हैं बचने के उपाय
नेगी कहते हैं कि उच्च हिमालयी क्षेत्र होने के कारण मलबे के ढेर से छेड़छाड़ करना उचित नहीं है। किया यही जा सकता है कि ऐहतिहात के तौर पर गोमुख के निचले क्षेत्रों जैसे गंगोत्री आदि में खतरे का आकलन कर सुरक्षा के सभी इंतजाम पुख्ता कर लिए जाएं।
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केदारनाथ त्रासदी- दैनिक जागरण ने 9 साल पहले चेताया था
केदारनाथ आपदा की चेतावनी वाडिया हिमालय भूविज्ञान संस्थान ने नौ साल पहले दे दी थी। संस्थान ने चेताया था कि चौराबारी ग्लेशियर पर बन रही झील कभी भी भयंकर तबाही मचा सकती है। और तो और, इस बार की तरह तब भी दैनिक जागरण ने संस्थान द्वारा दी गई को प्रकाशित किया था। लेकिन प्रशासन ने उसे गंभीरता से नहीं लिया था। न तो खतरे का आकलन किया गया, न ही लोगों को खतरे वाली जगहों से हटाया गया।
सोमवार 2 अगस्त 2004 को दैनिक जागरण ने 'अब केदारनाथ भी खतरे में' इस हेडिंग के साथ खबर छापी थी। इस खबर में स्पष्ट कहा गया था कि केदारनाथ के ऊपर स्थित चौराबारी ग्लेशियर बम की तरह फटेगा। देहरादून पेज पर छपी रिपोर्टर लक्ष्मी प्रसाद पंत की बायलाइन खबर में आशंका जतायी गई थी कि अगर केदारनाथ के ठीक पीछे स्थित चौराबारी ग्लेशियर टूटा या खतरनाक झील फटी तो केदारनाथ में भारी तबाही मच जाएगी। 15 जून 2013 की शाम 5 बजे से लेकर 16 जून 2013 की शाम 5 बजे तक इन 24 घंटों में चौराबाड़ी ग्लेशियर पर 325 मिलीलीटर बारिश हुई। इसके बाद 17 जून को आखिरकार दैनिक जागरण ने 9 साल पहले जो आशंका जतायी थी, वह डरावना सपना सच साबित हो गया। चौराबारी झील टूट गई और नीचे केदारनाथ घाटी में तबाही मच गई।
केदारनाथ में गई सैकड़ों की जान
चार साल ही नहीं चार दशक बाद भी शायद ही कोई केदारनाथ के उस जल प्रलय को भूल पाएगा। 16 और 17 जून 2013 को आए उस जल प्रलय में सैकड़ों लोगों की जान चली गई और 4 हजार से ज्यादा लोगों का तो अब तक पता ही नहीं चल पाया। भगवान शिव के पवित्र धाम केदारनाथ में बारिश और बाढ़ ने उन दो दिनों में ऐसा तांडव मचाया कि सब कुछ तहस-नहस हो गया। जिस किसी ने भी उस खौफनाक मंजर को देखा, सहम गया। कई लोगों के तो आंखों के सामने ही पलभर में सब कुछ तबाह हो गया।
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केदारनाथ: आसमान से मौत बनकर बरस रहे थे बादल
वाडिया इंस्ट्यूट ऑफ हिमालयन जियोलॉजी ने चौराबारी ग्लेशियर के पास एक ऑब्जरवेटरी बनायी है। उसके अनुसार 15 जून की शाम 5 बजे से 16 जून सुबह 5 बजे तक सिर्फ 12 घंटे में ही चौराबारी ग्लेशियर पर 210 मिली मीटर बरसात हुई। इसके बाद 16 जून सुबह 5 बजे से शाम 5 बजे तक अगले 12 घंटे में 115 मिमी और बरसात हो गई। इस तरह सिर्फ 24 घंटे में ही यहां 325 मिली बारिश हो चुकी थी। मौसम विभाग ने पहाड़ी इलाकों में भारी बारिश की चेतावनी पहले ही जारी की हुई थी। दक्षिण-पश्चिम मानसून और पश्चिमी विक्षोभ के यहां टकराने के कारण काले घने बादलों ने हिमालय के ऊपर डेरा डाला हुआ था। इससे एक साथ कई बादल फटने की घटनाएं हुईं और बादलों से मौत बरसने लगी।
'U' आकार की घाटी बनी थी मौत का सबब
केदानाथ मंदिर और टाउन मध्य हिमालय के पश्चिमी छोर पर बसा है। यहां घाटी में मंदाकिनी नदी बहती है और रामबाड़ा तक यहां इसका कुल कैचमेंट एरिया 67 स्क्वायर किमी का है। इसमें से भी करीब 23 फीसद इलाके में ग्लेशियर हैं। इस त्रासदी के इतना बड़ा होने के पीछे समूचे कैचमेंट एरिया का यू आकार की घाटी होना है। यहां भर्त खूंटा (6578 मी), केदारनाथ (6940 मी) महालय चोटी (5970 मी) और हनुमान टॉप (5320 मी) जैसी ऊंची-ऊंची चोटियां हैं।
लगातार हो रही बारिश के कारण 'U' आकार की इस घाटी में खैरू गंगा जैसी छोटी धाराओं ने भी रौद्र रूप धर लिया था। पतली-पतली धाराओं के रूप में बहने वाले इन नालों में पानी के साथ ही हजारों टन मलबा और पत्थर तेज गर्जना के साथ बहकर आने लगे। ऐसी सभी धाराएं जब पहले से ही खतरे के निशान से ऊपर बह रही मंदाकिनी नदी में मिलीं, तो तबाही को रोकना शायद किसी के बस की बात नहीं रह गई थी। इस जल प्रलय ने केदारनाथ घाटी में तबाही की वो इबारत लिख दी, जिसे इससे पहले शायद ही कभी सुना गया होगा। 100 से ज्यादा गांव और 40 हजार से ज्यादा लोग प्रभावित हुए। उस आपदा को 4 साल से ज्यादा का वक्त बीच चुका है, इसके बावजूद 4 हजार से ज्यादा लोग आज तक लापता हैं। पिछले चार साल में साढ़े 6 सौ से ज्यादा नरकंकाल इलाके में जहां-तहां पड़े हुए मिल चुके हैं।
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जान बचाने को भागे और सीधे मौत के मुंह में समाए
16 जून की रात मंदाकिनी ने जो रौद्र रूप धारण कर लिया था, उससे घबराए सैकड़ों-हजारों लोगों ने अपने-अपने होटल के कमरे छोड़ दिए। यह सभी बचने की उम्मीद में ऊपर पहाड़ों की ओर चले गए। जिस तरह का मंजर उन्होंने केदारघाटी में देखा था, उसे देखते हुए जीवन की चाह में उनके इस कदम को गलत नहीं ठहराया जा सकता। लेकिन जान बचाने की इस जद्दोजहद ने ही हजारों लोगों को मौत के मुंह में धकेल दिया।
जो लोग केदारघाटी में रुक गए, उनमें से ज्यादातर लोग मारे गए। इसलिए भी जीवन की चाह में होटल छोड़कर आगे बढ़ने के फैसले को सही ठहराया जा सकता है। जिन लोगों ने केदारघाटी या केदारनाथ मंदिर में ही रुकने का विकल्प चुना, उनमें से ज्यादातर टनों मलबे के नीचे दब गए और कईयों की तो लाश भी नहीं मिल पायी।
ठंड और भूख ने ली सैकड़ों जानें
जिस समय इन सैंकड़ों-हजारों लोगों ने अपने-अपने होटल के कमरे छोड़े उस समय भी वहां मूसलाधार बारिश हो रही थी। पूरे इलाके में जबरदस्त ठंड थी और जीवन की चाह में यह लोग अपना सबकुछ छोड़कर पहाड़ों की ओर भागे। उनके पास खाने को कुछ नहीं था। पूरा इलाका देश के अन्य हिस्सों से कट चुका था। सड़कमार्ग से केदारनाथ तक पहुंचना नामुमकिन था और लगातार खराब मौसम के कारण हेलीकॉप्टर भी उड़ान नहीं भर पा रहे थे।
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ऐसे में जो लोग जान बचाने की जद्दोजहद में पहाड़ों की ओर भागे थे और किसी तरह जान बचाने में कामयाब रहे थे, वह भी ज्यादा देर जीवित नहीं बच पाए। जबरदस्त ठंड, भूख और थकावट ने उनकी जान ले ली। बहुत से लोगों के बारे में तो स्थानीय लोगों का कहना है कि उन्होंने भूख के कारण घास खा ली होगी, जो जहरीली थी और उनकी मौत हो गई।
तीन साल बाद मिले नरकंकाल
कॉम्बिंग ऑपरेशन भी केदारनाथ घाटी के आसपास ही चलाए गए। तबाही के तीन साल बाद साल 2016 में जब केदारनाथ से दूर के इलाकों में अन्य रास्तों पर ट्रैकिंग अभियान चलाया गया, तो वहां दर्जनों की संख्या में नरकंकाल मिले। इसके बाद इस धारणा को बल मिला कि भारी संख्या में लोग पहाड़ों की तरफ जान बचाने के लिए भागे होंगे और ठंड, थकान व भूख ने उन्हें भी नहीं बख्शा। अगर समय पर उन तक राहत पहुंच जाती तो शायद आज वह भी जीवित होते।
क्या कहते हैं लक्ष्मी प्रसाद पंत...
Jagran.Com की टीम ने इस समय एक हिन्दी अखबार में एडिटर लक्ष्मी प्रसाद पंत से खास बातचीत की। उन्होंने बताया कि वाडिया इंस्टीट्यूट के डीबी डोभाल उस समय केदारनाथ पर एक गोपनीय रिपोर्ट तैयार कर रहे थे। जब पंत को इस बात की भनक लगी तो वे केदारनाथ जा पहुंचे और डोभाल से बात की। उस घटना को याद करते हुए पंत ने बताया, 'वे चौराबारी ग्लेशियर का अध्ययन कर रहे थे। मैंने उनसे पूछा कि मंदिर के पीछे का अध्ययन क्यों कर रहे हैं। उन्होंने चौकाने वाली बात बतायी कि चौराबारी झील का पानी लगातार बढ़ रहा है और इसको हम नाप रहे हैं। फिर उन्होंने कहा कि जिस दिन यह झील फटेगी, जैसे बम फटता है वैसा ही कुछ होगा और केदारनाथ को तबाह कर देगी।' बाद में जब यह रिपोर्ट दैनिक जागरण में छपी तो पूरे देश में हंगामा मच गया। सभी लोग इस रिपोर्ट के खिलाफ खड़े हो गए। भारी दबाव में डॉ. डोभाल ने उस रिपोर्ट पर काम करना बंद कर दिया।
- साथ में सुमन सेमवाल (देहरादून)
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