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एक थीं अम्मा: बोल नहीं पाते थे मंत्री, 26 साल की दहशत की दास्तां

तमिलनाडु की मुख्यमंत्री रहीं जयललिता का खौफ इस कदर था कि उनके मंत्री कुछ भी बोलने से कतराते थे। थोड़ा-बहुत वो विधानसभा में ही अपनी बात रख पाते थे।

By Lalit RaiEdited By: Published: Mon, 24 Jul 2017 04:05 PM (IST)Updated: Mon, 24 Jul 2017 04:55 PM (IST)
एक थीं अम्मा: बोल नहीं पाते थे मंत्री, 26 साल की दहशत की दास्तां
एक थीं अम्मा: बोल नहीं पाते थे मंत्री, 26 साल की दहशत की दास्तां

नई दिल्ली [स्पेशल डेस्क] । वो देखने में खूबसूरत और शालीन थीं लेकिन अपने मंत्रियों के लिए किसी बुरे सपने से कम नहीं थीं। उनके कार्यकाल में सिर्फ उनकी बोली (जुबां) का ही राज था। उनके अलावा किसी को बोलने की हिम्मत नहीं थी। वो जब जब सत्ता में आईं सियासत करने का अंदाज नहीं बदला। उनके राज में जुबां वाले मंत्री और विधायक बेजुबां हो गए थे। 24 जून 1991 को जब पहली बार जयललिता तमिलनाडु की सीएम बनीं तो उनके तेवर कुछ ऐसे थे कि मंत्री और विधायक बोलने से कतराते थे। लेकिन शुक्र है कि कि 26 साल बाद अब एआइएडीएमके के मंत्रियों और विधायकों की जुबां वापस आ गई है।

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जयललिता के सीएम रहते हुए पत्रकारों से बातचीत करने में मंत्री घबराते थे। उनके शासनकाल में विभागों की बैठक के बाद प्रेस ब्रीफिंग नहीं होती थी। तमिलनाडु विधानसभा के अंदर मंत्री अपनी बात रख पाते थे। यूं कहिए कि मंत्रियों को कुछ बोलने की आजादी सिर्फ विधानसभा के अंदर थी। लेकिन जैसे ही वो विधानसभा से बाहर निकलते थे अम्मा का खौफ फिर उन्हें बेजुबां कर देता था।

जानकार की राय

Jagran.com से खास बातचीत में वरिष्ठ पत्रकार आर राजगोपालन ने कहा कि जयललिता निरंकुश थीं। वो अपने नेतृत्व के सामने किसी को स्वीकार नहीं करती थी। जयललिता के इस तरह के व्यवहार के पीछे सबसे बड़ी वजह ये थी वो अकेला थी जिसकी वजह से वो सामाजिक संबंधों को निभाने में ज्यादा विश्वास नहीं करती थी। एक दिलचस्प जानकारी देते हुए उन्होंने बताया कि चीफ सेक्रेटरी भी कभी आमने-सामने बात नहीं कर पाते थे। जयललिता से संवाद करने के लिए चीफ सेक्रेटरी को इंटरकॉम की मदद लेनी पड़ती थी। 
 

एआइएडीएमके कार्यकारी समिति की बैठक में मंत्रियों और विधायकों की मौजूदगी अनिवार्य होती थी। किसी प्रस्ताव पर लिखित भाषण को जयललिता पढ़ती थीं और सर्वसम्मति से प्रस्ताव पारित किया जाता था।जयललिता लगातार अपने मंत्रिमंडल में बदलाव किया करती थीं, लिहाजा हर मंत्री अपने आप को असुरक्षित महसूस करता था। इस डर की वजह से वो बोलने से कतराते थे। ये खुला सत्य है कि ज्यादातर फैसले नौकरशाही, सीएम दफ्तर और उनकी दोस्त शशिकला पोएस गार्डेन पर लेती थीं। मंत्रियों को फैसले के बारे में बता दिया जाता था। इसके अलावा अधिकारियों को भी प्रेस से बातचीत की इजाजत नहीं थी।

 

मौसम की तरह जयललिता का मूड बदलता रहता था, जिसकी वजह से मंत्री हमेशा गफलत में रहते थे। एक बार एक मंत्री को सिर्फ इसलिए हटा दिटा गया कि उसने शशिकला के किसी आदेश के बारे में जयललिता को जानकारी दी थी। जयललिता ने अपने मंत्री को कहा कि क्या वो चेक कर रहा था कि उन्होंने आदेश दिया था या नहीं। जयललिता ने कहा कि जब कभी शशि कुछ कहें उसका मतलब है कि मैं आदेश दे रही हूं।


दूसरे मंत्री को सिर्फ इसलिए हटा दिया कि उसने शशिकला के आदेश को अमलीजामा पहुंचाया था। जयललिता ने अपने मंत्री से पूछा कि उसने किसी खास प्रोजेक्ट को अनुमति क्यों दी। मंत्री ने बताया कि चिनम्मा (शशिकला) ने ऐसा करने को कहा था। जयललिता उस मंत्री पर खफा हो गईं और पूछा कि क्या क्या आप शशिकला का आदेश मानेंगे। क्या आपको सीएम का आदेश नहीं मानना चाहिए । 


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