यूं ही नहीं हुए टमाटर 'लाल', पिछले साल की बंपर फसल थी जिम्मेदार
आखिर टमाटर के दाम आसमान क्यों छू रहे हैं। क्या आपूर्ति की कमी की वजह से उपभोक्ताओं को दिक्कत हो रही है, या कुछ और कारण हैं।
नई दिल्ली [स्पेशल डेस्क] । कभी प्याज रुलाती है तो कभी टमाटर रुलाता है। कभी बंपर पैदावर किसानों के माथे पर बल ला देती है तो पैदावार की कमी या अनियमित आपूर्ति उपभोक्ताओं को रुलाने लगती है। जिस टमाटर को देखकर मन खुश हो जाता था, आज वो विलेन की भूमिका में है। टमाटर की कीमतें न केवल जेब पर डाका डाल रही हैं, बल्कि जायका भी खराब हो गया है। उपभोक्ता जब टमाटर खरीदने जाते हैं तो पेटियों में टमाटर को बस निहारते रह जाते हैं। टमाटर उन्हें चिढ़ाता रहता है। इस तरह की तस्वीरें या खबरें सिर्फ देश के महानगरों तक ही सीमित नहीं है, बल्कि छोटे-छोटे कस्बों में रहने वाले लोग टमाटर की बढ़ती कीमतों से परेशान हैं। चलिए आप को बताने की कोशिश करते हैं कि ऐसा क्यों हो रहा है।
2016 का असर है ये
मई और जून के पहले हफ्ते में 10 से 12 रुपये प्रति किग्रा की दर से टमाटर उपभोक्ताओं को उपलब्ध था। लेकिन आज टमाटर के भाव लोगों को रुला रहे हैं। टमाटर के भाव मौजूदा समय में आसमान पर हैं। देश के सभी इलाकों में टमाटर 100 रुपये प्रति किलोग्राम के भाव से आम लोगों की रसोई में दस्तक दे रहे हैं। टमाटर के लाल होने के इसके पीछे एक बड़ी वजह ये है कि खेतों से मंडियों तक टमाटर की आपूर्ति सही तरीके से नहीं हो रही है। देश में टमाटर की दो फसलें जनवरी-फरवरी और जून-जुलाई में उगाई जाती हैं। मध्य भारत और दक्षिण भारत के ज्यादातर इलाकों में जून-जुलाई के मध्य में टमाटर की खेती की जाती है।
मध्य प्रदेश में शिवपुरी और सागर
महाराष्ट्र में नासिक,
आंध्रप्रदेश में मदनपल्ली
कर्नाटक में कोलार और मैसूरु
तमिलनाडु में डिंडीगुल
उत्तर भारत से पूर्वी भारत तक सितंबर के मध्य तक टमाटर की फसल को खेतों में लगाया जाता है।
राजस्थान में झालावाड़, जयपुर-चोमू बेल्ट
उत्तर प्रदेश में सोनभद्र, वाराणसी, लखनऊ, बरेली और आगरा
पश्चिम बंगाले में पुरुलिया
बिहार में बक्सर
झारखंड में रांची
इन इलाकों में सितंबर के मध्य तक टमाटर की फसल बोई जाती है।
जानकार की राय
Jagran.Com से खास बातचीत में कृषि मामलों के जानकार डॉ देवेंद्र शर्मा ने बताया कि जब तक कृषि से संबंधित लोगों के बारे में सरकार किसी खास योजना के साथ नहीं आएगी। इस तरह की दिक्कत बनी रहेगी। किसान अपनी उपज के उचित दाम को लेकर परेशान रहेगा तो उपभोक्ता सब्जियों और दूसरे खाद्य पदार्थों की बढ़ती कीमतों से परेशान रहेंगे। किसानों को बुनियादी सुविधाओं को उपलब्ध कराने के लिए आगे आना होगा। सब्जियों के लिए तहसील स्तर पर खास गोदामों की व्यवस्था करना चाहिए ताकि किसान उपज को सुरक्षित रख सकें।
टमाटर की दो फसलें फिर भी कमी बरकरार
टमाटर की फसल तैयार होने में करीब 90 से 100 दिन यानि तीन महीने से चार महीने का समय लगता है। टमाटर के बीज को पहले नर्सरी में बोया जाता है। करीब 25 दिन के बाद पौंधे को खेतों में लगा दिया जाता है। टमाटर की दूसरी खेती का सीजन जनवरी-फरवरी में शुरू होता है। इस वक्त टमाटर तैयार होने में 130 से 150 दिन लगते हैं। प्रति एकड़ में करीब 25 टन टमाटर की पैदावार होती है। गर्मियों के समय उन इलाकों में टमाटर की खेती की जाती है। जहां अधिकतम तापमान 30 डिग्री से ज्यादा नहीं होता है। इस तरह का वातावरण दक्षिण भारत के मदनपल्ली, मैसुरु, कोलाक, संगमनेर, नरायनगांव में पाया जाता है। जबकि उत्तर भारत में हिमाचल के मंडी, सोलन में टमाटर की खेती के लिए इस तरह का वातावरण मिलता है। गर्मियों के समय टमाटर की खेती करने वाले किसान प्रति एकड़ एक लाख से लेकर 1.5 लाख तक का निवेश करते हैं। लेकिन जनवरी-फरवरी में टमाटर की खेती में निवेश की रकम 50 हजार से 75 हजार होती है। लिहाजा किसान गर्मियों में टमाटर की फसल से ज्यादा कमाई की उम्मीद करते हैं।
लेकिन ये सब कैसे हुआ
2016 में अक्टूबर-नवंबर के समय टमाटर की बंपर पैदावार हुई। लेकिन नोटबंदी के फैसले के बाद कैश की कमी हो गई। मंडियों में टमाटर की खरीद कम होने से टमाटर के भाव गिर गए। हालात ये हो गए कि किसानों को 3-4 रुपये प्रति किलो की दर अपनी उपज को बेचना पड़ा। इसके अलावा सड़कों पर किसान अपनी उपज को फेंकने लगे, लिहाजा गर्मियों (जून-जुलाई) में टमाटर की खेती पर किसानों ने कम ध्यान दिया। इसके अलावा भारी बारिश की वजह से टमाटर की आपूर्ति पड़ असर पड़ा। मदनपल्ली, कोलार और संगमनेर की मंडियों में टमाटर का भाव दहाई में पार नहीं कर सका और किसानों को जबरदस्त नुकसान उठाना पड़ा। किसानों को उपज सही दाम न मिलने के पीछे एक बड़ी वजह नोटबंदी के साथ-साथ पिछले साल अच्छा मानसून भी था। इस वर्ष 2017 में जून के अंत में उपभोक्ताओं ने टमाटर की बढ़ती कीमतों पर ध्यान देना शुरू किया। बहुत से मामलों में पहली पिकिंग के बाद किसानों ने खाद पानी देना बंद कर दिया, जिसका असर ये हुआ कि टमाटर की पैदावार कम हो गई और मंडियों तक टमाटर की खेप पहुंचना मुश्किल हो गया, जिसकी कीमत अब उपभोक्ता अदा कर रहे हैं।
आगे क्या होगा
इस वर्ष खरीफ सीजन में पिछले साल की अपेक्षा 35 से 40 फीसद कम टमाटर की खेती की गई है। उम्मीद की एक किरण ये है कि टमाटर की आसमान छूती कीमतों की वजह से किसान टमाटर की खेती की तरफ जा सकते हैं। लेकिन ज्यादातर इलाकों में नर्सरी में टमाटर लगाने का समय खत्म हो चुका है। इसके साथ ही यदि नवंबर के महीने में टमाटर की पैदावर अच्छी नहीं हुई तो उपभोक्ताओं को सिर्फ टमाटर देखकर संतोष करना होगा।
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