जानें, चीन ने क्यों कहा किसी को उससे डरने की जरूरत नहीं
चीन की आर्थिक नीति को अमेरिका ने शिकारी अर्थशास्त्र की संज्ञा दी है। लेकिन चीन ने कहा कि किसी भी देश को पूर्वाग्रही होने की जरूरत नहीं है।
नई दिल्ली [ स्पेशल डेस्क ] । चीन अपने महान सभ्यता होने का दावा करता है। चीन के रणनीतिकार कहते हैं कि अाने वाले समय में उनके देश की नीतियां विश्व बिरादरी को प्रभावित करने वाली होनी चाहिए। लेकिन एक सच ये भी है कि चीन की आर्थिक नीतियों की दुनिया के कई देश मुखालफत कर रहे हैं। 'वन बेल्ट, वन रोड' पर जहां भारत पहले ही ऐतराज जता चुका है, वहीं अब अमेरिका का कहना है कि चीन की आर्थिक नीति शिकारियों की तरह है जो हमेशा शिकार की फिराक में रहते हैं। जिस तरह से शिकारी अपने मकसद को अंजाम देने के लिए तमाम तरह के तिकड़म की जुगत में लगे रहते हैं, ठीक वैसे ही मदद की आड़ में चीन दूसरे देशों को अपना उपनिवेश बनाने की फिराक में है।
- अमेरिकी विदेश मंत्री रेक्स टिलरसन ने चीन को शिकारी अर्थशास्त्र की संज्ञा दी है।
- चीन के विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता लू कांग का कहना है कि चीन के प्रति अमेरिका को पूर्वाग्रही नहीं होना चाहिए।
- अमेरिका को चीन के विकास या आर्थिक नीतियों से भयभीत नहीं होना चाहिए, बल्कि उसका समर्थन करना चाहिए।
चीन की आर्थिक नीति पर अमेरिकी सवाल
चीन की आर्थिक नीति पर सवाल उठाते हुए अमेरिका का कहना है कि जिस तरह से चीन दूसरे देशों को मदद कर रहा है वो उपनिवेशवाद को बढ़ाने जैसा है। भारत-अमेरिकी सहयोग पर चीन ने कहा कि जब तक दोनों देशों के बीच आर्थिक या राजनीतिक संबंध क्षेत्रीय शांति को प्रभावित नहीं करते हैं चीन को किसी तरह की आपत्ति नहीं है। लेकिन अमेरिका के विदेश मंत्री रेक्स टिलरसन ने कहा कि चीन की नीति रोजगार पैदा करने के लिए उपयुक्त नहीं है। हकीकत में चीन की मदद लेने वाले देश भारी भरकम कर्ज में दबते जा रहे हैं। लेकिन चीन के विदेश मंत्रालय ने तीखी प्रतिक्रिया देते हुए अमेरिका को अपनी नीतियों के बारे में भी सोचना चाहिए। कोई भी देश ये नहीं कह सकता कि आप की आर्थिक नीति कैसी हो।
जब चीन ने कहा डरने की जरूरत नहीं
चीनी विदेश मंत्रालय ने अपनी बात को आगे बढ़ाते हुए कहा कि संसाधनों के असमान बंटवारे की वजह से ही सभी राष्ट्र एक दूसरे पर निर्भर हैं। चीन हमेशा से विस्तारवादी नीति का विरोध करता रहा है। लेकिन दुख की बात है कि अमेरिका इस सच्चाई को स्वीकार नहीं करना चाहता है। दक्षिण चीन सागर के मुद्दे को अमेरिका जरूरत से ज्यादा तूल दे रहा है। चीन का स्पष्ट मानना है कि वो नियम कानून के दायरे में अपनी आर्थिक नीति को आगे बढ़ा रहा है। ऐसे में किसी देश को (भारत के नाम का जिक्र करते हुए) अनावश्यक चिंतित होने की आवश्यकता नहीं है।
जानकार की राय
Jagran.Com से खास बातचीत में रक्षा मामलों के जानकार राज कादयान ने कहा कि अमेरिका की चिंता जायज है। अपनी बात को आगे बढ़ाते हुए उन्होंने कहा कि वन बेल्ट, वन रोड को अगर आप ध्यान से देखें तो हकीकत सबके सामने आ जाती है। सीपीइसी का जहां गुलाम कश्मीर के लोग विरोध कर रहे हैं, वहीं श्रीलंका में हम्बनटोटा के मुद्दे पर श्रीलंका के स्थानीय लोगों का भी कहना है कि रोजगार शून्य विकास पर चीन ज्यादा ध्यान दे रहा है। सस्ते श्रमिकों का हवाला देकर चीन अपने देश से श्रीलंका को सस्ते श्रम का निर्यात कर रहा है। चीन एक विस्तारवादी देश है, दूसरों की जमीन पर वो गिद्ध की तरह आंखें गड़ाये रहता है। वन बेल्ट, वन रोड के जरिए वो अपने पड़ोसी देशों को अपने छत्रछाया में रखना चाहता है। जहां तक ल्हासा-निंगची एक्सप्रेसवे की बात है चीन उसका इस्तेमाल अपनी रक्षा जरूरतों को पूरी करने के लिए जरूर करेगा। अरुणाचल प्रदेश के सीमावर्ती इलाकों के विकास के लिए भारत सरकार जोरशोर से काम कर रही है। लेकिन चीन की रणनीति को देखते हुए सीमावर्ती इलाकों में खासतौर से लद्दाख और अरुणाचल प्रदेश में तेजी से काम करना होगा।
17 अक्टूबर को कम्युनिस्ट पार्टी ऑफ चाइना के प्रतिनिधि ने मीडिया से बातचीत करते हुए कहा कि अलग-अलग देशों में चीनी फर्मों की तरफ 2013 से 2016 के बीच 560 बिलियन यूएस डॉलर का निवेश किया है। इसके अलावा कई तरह के 100 बिलियन डॉलर का टैक्स अदा भी किया है। चीन के इस कदम से मदद पाने वाले देशों में लाखों रोजगार का निर्माण भी हुआ है। सीपीसी के प्रवक्ता तुओ झेन ने कहा कि इन आरोपों में बिल्कुल सच्चाई नहीं है, जिसमें बताया जा रहा है कि चीन अपने श्रमिकों का निर्यात करता है। लेकिन सच ये है कि स्थानीय लोगों को रोजगार दिया गया है।
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