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धमकी से समझौते तक डोकलाम पर डील की अंदर की कहानी

चीन के सख्त रूख के चलते डोभाल की चीन से बातचीत कूटनीतिक मोर्चे पर दोनों देशों के तनाव को कम करने में असफल रही।

By Rajesh KumarEdited By: Published: Wed, 30 Aug 2017 04:06 PM (IST)Updated: Thu, 31 Aug 2017 10:56 AM (IST)
धमकी से समझौते तक डोकलाम पर डील की अंदर की कहानी
धमकी से समझौते तक डोकलाम पर डील की अंदर की कहानी

नई दिल्ली, [स्पेशल डेस्क]। डोकलाम विवाद दोनों देशों के बीच हुए आपसी समझौते के बाद भले ही खत्म हो गया हो, लेकिन भारत और चीन के बीच जो तल्खी बढ़ी उसके बाद इस तनाव को खत्म करना इतना आसान भी नहीं रहा। इसका अंदाजा चीन के उस वक्त के तीखे तेवरों को देखकर भी लगाया जा सकता है, जिस वक्त भारत के राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजीत डोभाल द्विपक्षीय बातचीत के लिए बीजिंग गए थे।

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चीन का डोभाल से तीखा सवाल
रणनीतिक तौर पर अहम विवादास्पद इलाके डोकलाम में भारतीय जवानों की तैनाती के इतर जब 27 जुलाई को बीजिंग में अजीत डोभाल ने कूटनीतिक स्तर पर इस मुद्दे को उठाया तो चीन के स्टेट काउंसलर ने जोरदार तरीके से पूछा- क्या यह आपका क्षेत्र है?

चीन का अड़ियल रुख
ट्राइजंक्शन पर जहां भारत, भूटान और चीन की सीमा लगी हुई है वहां पर चीन की तरफ से सड़क निर्माण को लेकर भारत की आपत्ति इसलिए थी क्योंकि ऐसा होने से वहां की वर्तमान स्थिति बदल जाती, इस बात पर चीन ने हठधर्मी वाला रुख दिखाया। जिस जगह पर डोकलाम में चीन सड़क बना रहा था, भारत उसे भूटान का क्षेत्र मानता है।



असफल रही डोभाल की कूटनीतिक बातचीत
चीन के सख्त रुख के चलते डोभाल की चीन से बातचीत कूटनीतिक मोर्चे पर दोनों देशों के तनाव को कम करने में असफल रही। ऐसा माना जा रहा है कि इस बातचीत में डोभाल ने जवाब दिया कि जिस जगह को लेकर विवाद है वो चीन का क्षेत्र नहीं है बल्कि उस पर भूटान की तरफ से दावा किया जाता रहा है। एक अखबार ने एनएसए के सूत्रों के हवाले से लिखा कि डोभाल ने जवाब दिया- “क्या हर विवादास्पद क्षेत्र अपने आप चीन का हो जाता है?’’

डोभाल ने जोरदार तरीके से रखा पक्ष
अजीत डोभाल ने बीजिंग में भारत का पक्ष जोरदार तरीके से रखते हुए कहा कि क्योंकि वो क्षेत्र भूटान का हिस्सा था लिहाजा जिस तरह इस हिमालयी देश के साथ भारत की पूर्व में संधि है उसके चलते भारत ने उसकी सुरक्षा में यह कदम उठाया है।

डोकलाम पर चीन ने भूटान को दिया था अदला-बदली का प्रस्ताव

एनएसए ने इस बात पर भी जोर देते हुए कहा कि भूटान के साथ सीमा विवाद को सुलह करने के लिए चीन से पहले के कई दौर की बातचीत में डोकलाम पर जोर दिया था। इसके साथ ही, बीजिंग ने अपने मध्यस्थकार के जरिए भूटान को 500 स्क्वायर किलोमीटर उत्तर में डोकलाम के बदले जमीन देने का भी प्रस्ताव किया था। डोभाल ने इस बात पर जिरह की थी कि डोकलाम पर चीन का दावा अभी सुलझा नहीं है लिहाजा दोनों पक्षों को एक साथ अपने जवानों को वापस बुलाना चाहिए ताकि वहां पर यथास्थित बहाल रहे। दोनों पक्षों के बीच बीजिंग में कई दौर पर गर्मागरम कूटनीतिक वार्ता हुई जिनमें विदेश सचिव एस. जयशंकर और चीन में भारत के राजदूत विजय गोखले भी शामिल थे ताकि इस पूरे विवाद का समाधान किया जा सके।

मोदी और जिनपिंग की वार्ता में नहीं बनी बात
डोकलाम पर विवाद के बीच प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी और चीन के राष्ट्रपति जिनपिंग 7 जुलाई को जी-20 बैठक से इतर हैमबर्ग में मिले थे। इस बैठक में पीएम मोदी ने राष्ट्रपति जिनपिंग से कहा था कि इस विवाद को और ना बढ़ने दिया जाना चाहिए और उन्होंने सुझाव दिया था कि इस पर राष्ट्रीय सुरक्षा स्तर पर कूटनीतिक बातचीत होनी चाहिए।

पीएम मोदी की डोकलाम पर नसीहत
पीएम मोदी ने अपनी टीम से कहा था कि पिछले कई दशों में ये सबसे बुरा दौर है लिहाजा इस विवाद का जल्द से जल्द शांतिपूर्ण समाधान किया जाना चाहिए और इसे लड़ाई में तब्दील नहीं होने देना चाहिए। मोदी ने कहा था कि दोनों देश आपसी सहयोग से काफी कुछ हासिल कर सकते हैं। लेकिन, इसके साथ ही उन्होंने स्पष्ट तौर पर “एक सीमा रेखा खींचते हुए कहा कि भारत किसी सूरत में बलपूर्वक यथास्थिति को बदलने की इजाजत नहीं देगा।” पीएम ने इस बात पर जोर देकर कहा कि किसी भी तरह का बदलाव बातचीत और आपसी समझौते के तहत ही होना चाहिए।

भारत ने रखा धैर्य
पीएम मोदी के इस निर्देश का असर ये दिखा कि चीन की तरफ से लाख उकसावेपूर्ण बयान के बावजूद सरकार ने किसी भी तरह के भड़काऊ प्रतिक्रिया देने से पूरी तरह परहेज किया। हालांकि, चीन ने इस बीच कभी मिसाइल और टैंक से अभ्यास किया तो सीमा से लगते अन्य जगहों पर भारतीय जवानों के साथ पत्थरबाजी की। भारत के इस धैर्य की वजह थी की सेना को ये निर्देश दिए गए थे कि किसी भी तरह के उत्तेजना को नजरअंदाज करे। एक वरिष्ठ अधिकारी ने सैन्य नेतृत्व की तारीफ करते हुए कहा कि अगर एक भी गोली गुस्से से भी किसी जवान के हाथों चल जाती तो इस तनाव भरे मुश्किल समय में कुछ भी हो सकता था।

लेकिन, भारतीय सेना एक पल भी वहां पर निगरानी में कोई कोताही नहीं बरती और विवादास्पद स्थल पर जवान और हथियारों के साथ मौजूद थे। और सीमा से तब उनकी वापसी हुई जब शांतिपूर्ण बहाली की दिशा में दोनों देशों के बीच आपसी समझौता हो गया।

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