मां, मानुष और माटी की आवाज बुलंद करने वाली ममता के रुख में आया बदलाव
बंगाल में उद्योगधंधों को बढ़ावा देने के लिए पश्चिम बंगाल की सीएम ममता बनर्जी इन दिनों मुंबई के दौरे पर हैं।
नई दिल्ली [ स्पेशल डेस्क] । मां, मानुष और माटी का जिक्र होते ही पश्चिम बंगाल की सीएम ममता बनर्जी का वो आंदोलन याद आता है, जिसे उन्होंने सिंगूर की सड़कों पर छेड़ा था। बंगाल के औद्योगिकरण के मुद्दे पर वो सीपीएम सरकार के खिलाफ आवाज बुलंद कर रही थीं। सिंगूर की जमीन से राज्य सरकार और टाटा मोटर्स दोनों इतिहास लिखने की तैयारी में थे। लखटकिया नैनो कार के जरिए टाटा भारत की निम्न मघ्यवर्ग तक अपनी पकड़ मजबूत करना चाहते थे, तो वामदल की सरकार बदल रहे भारत को ये संदेश देने की कोशिश कर रही थी कि वो मानुष और माटी से प्यार करते हैं। लेकिन राज्य की तरक्की के लिए ये जरूरी है कि अब परंपरागत सोच को छोड़कर आगे बढ़ना होगा।
साल 2006 में बुद्धदेव भट्टाचार्य की अगुवाई वाली सरकार टाटा को एक हजार एकड़ जमीन सौंपकर इतिहास में अपने आप पर लगे इन आरोपों से मुक्ति चाहते थी कि वो उद्योग धंधों की विरोधी है। लेकिन बंगाल की राजनीति में वाम दलों के परंपरागत मुद्दों को कोई और (तृणमूल कांग्रेस) अपने पाले में खींच रहा था। करीब 11 साल के विरोध के बाद ममता बनर्जी को ये लगने लगा कि मां, मानुष और माटी की बेहतरी के लिए वो उद्योग धंधों की अनदेखी नहीं कर सकती हैं। इस सिलसिले में उन्होंने रिलायंस इंडस्ट्रीज के चेयरमैन मुकेश अंबानी से मिलकर पश्चिम बंगाल में निवेश की अपील की थी, कोलकाता में जनवरी में होने वाले बंगाल ग्लोबल बिजनेस समिटि में शिरकत करने का निमंत्रण भी दिया।
टाइम लाइन के जरिए हम आपको ये बताने की कोशिश करेंगे कि सिंगूर मामला क्या था।
मई 2006
टाटा मोटर्स के नैनो प्लांट के लिए जमीन का अधिग्रहण।
जनवरी 2008
कोलकाता हाइकोर्ट ने अधिग्रहण बिल को वैध ठहराया।
अक्टूबर 2008
टाटा ने सिंगूर से निकलने का फैसला किया।
मई 2011
ममता ने 400 एकड़ जमीन लौटाने का फैसला किया।
9 जून 2011
997 एकड़ जमीन वापस लेने का अध्यादेश आया।
14 जून 2011
जमीन वापस लेने का बिल विधानसभा से पास।
22 जून 2011
टाटा मोटर्स ने बिल को कोलकाता हाइकोर्ट में चुनौती दी।
29 जून 2011
सुप्रीम कोर्ट ने जमीन वापस बांटने पर अंतरिम रोक लगाई।
28 सितंबर 2011
हाइकोर्ट ने बिल को सही ठहराया।
29 अक्टूबर 2011
टाटा ने हाइकोर्ट के फैसले को चुनौती दी।
22 जून 2012
हाइकोर्ट की डिविजन बेंच ने बिल को रद किया।
6 अगस्त 2012
पश्चिम बंगाल सरकार ने हाइकोर्ट के फैसले को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी।
31 अगस्त 2016
सुप्रीम कोर्ट ने 2006 के जमीन अधिग्रहण को रद कर दिया। सुप्रीम कोर्ट ने लेफ्ट सरकार और टाटा मोटर्स के बीच 2006 में सिंगूर डील को अवैध करार दिया था। कोर्ट ने कहा था कि सिंगूर में किसानों से जमीन गलत तरीके से ली गई थी। कोर्ट ने कहा कि पूरी प्रक्रिया हैरान करने वाली और आंख में धूल झोंकने वाली थी।
2006 में शुरू हुई सिंगूर की कहानी से ममता बनर्जी को जबरदस्त फायदा मिला। उन्होंने वाम मोर्चे की सरकार को उखाड़ फेंका और इस मिथक को तोड़ दिया कि वामदल पश्चिम बंगाल में अपराजेय हैं। लेकिन भारतीय राजनीति एक और परिवर्तन के इंतजार में थी। राजनीति के राष्ट्रीय फलक पर गुजरात के सीएम नरेंद्र मोदी दस्तक दे रहे थे। यूपीए सरकार की नाकामी को जनता में रखने के साथ ही वो आम लोगों से भी पूछते थे कि भारत का पूर्वी हिसा, पश्चिमी हिस्से से क्यों पिछड़ गया। बिहार, बंगाल, ओडिशा की जनसभाओं में वो बार-बार कहते थे कि उद्योग धंधों के मामले में बंगाल जो सबसे आगे था वो आखिर पिछड़ क्यों गया। नरेंद्र मोदी जहां एक तरफ वाम दलों की खामियों को उजागर कर रहे थे, वहीं ममता बनर्जी पर भी निशाना साध रहे थे।
2016 में पश्चिम बंगाल में विधानसभा चुनाव का फैसला ममता बनर्जी के पक्ष में गया। लेकिन बंगाल की राजनीति में वोट प्रतिशत के आंकड़े कुछ और ही इशारा कर रहे थे। भाजपा के पक्ष में मतों के बढ़े हुए प्रतिशत से ये साफ हो गया कि आने वाले समय में टीएमसी के लिए चुनौती बढ़ सकती है। बंगाल में अपने पक्ष को मजबूती से रखने के लिए भाजपा अध्यक्ष अमित शाह ने कई बार वहां के दौरे किए और लोगों से रूबरू होते हुए ये कहते थे कि मां, मानुष, माटी और उद्योग के मुद्दे पर पार्टी को आम लोगों तक जाने की जरूरत है।
इस मुद्दे पर दैनिक जागरण से बातचीत में अपनी राय रखते हुए वीर बहादुर सिंह पूर्वांचल विश्वविद्यालय जौनपुर के पूर्व प्रोफेसर बी डी मिश्रा ने कहा कि बंगाल आर्थिक तौर पर ही नहीं बल्कि सांस्कृतिक तौर पर समृद्ध था। ये बात अलग है कि जब अंग्रेज देश की राजधानी बदलकर दिल्ली ले गए, उसके बाद से बंगाल का गौरव जाता रहा। जमीन बंदोबस्त के मुद्दे पर कांग्रेस सरकार की नाकामी का असर ये हुआ कि वामदलों ने अपनी जगह बनाई। लोगों की बुनियादी जरूरतों और अधिकारों के प्रति वामदल सचेत रहे। लेकिन इसके साथ ही उन्होंने समाज में कई वर्ग बनाने की कोशिश की।समाज में हुए वर्गीकरण का उन्हें फायदा भी मिला, हालांकि उदारीकरण के दौर से वो अपने आपको असहज महसूस कर रहे थे। उदारीकरण के दौर में जमाने के साथ चलने के लिए वामदलों ने टाटा को सिंगूर में आमंत्रित किया। बंगाल की सरकार ने जब ये फैसला किया तो ममता बनर्जी को वही मुद्दा मिल गया, जिसे वामदल उठाया करते थे। लेकिन अब ममता को समझ में आने लगा है कि वो किसी दृढ़ पूर्वाग्रह के साथ आगे की राजनीति नहीं कर सकती हैं।
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