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भारत के लिए परेशानियों का सबब बन सकता है डोनाल्ड ट्रंप का ये फैसला

भारत के परिप्रेक्ष्‍य में यदि यरूशलम की बात की जाए तो ट्रंप के इस फैसले ने भारत को भी मुश्किलों में डाल दिया है।

By Kamal VermaEdited By: Published: Fri, 08 Dec 2017 02:37 PM (IST)Updated: Wed, 13 Dec 2017 05:30 PM (IST)
भारत के लिए परेशानियों का सबब बन सकता है डोनाल्ड ट्रंप का ये फैसला
भारत के लिए परेशानियों का सबब बन सकता है डोनाल्ड ट्रंप का ये फैसला

नई दिल्‍ली [स्‍पेशल डेस्‍क]। यरूशलम के मुद्दे पर जहां एक तरफ अरब देश भड़के हुए हैं वहीं दूसरी तरफ यूरोपीयन यूनियन भी डोनाल्‍ड ट्रंप के फैसले के खिलाफ खड़ी है। फ्रांस ने ट्रंप के फैसले को गलत करार देते हुए खुद को इससे अलग कर लिया है। यूरोपीय संघ की विदेश नीति मामलों की प्रमुख फेडरिका मोगहेरिनी ने यूरोप के दौरे पर आए अमेरिकी विदेश मंत्री से अमेरिकी दूतावास के यरुशलम लाने के फैसले की कड़ी आलोचना की है। यही हाल ब्रिटेन समेत दूसरे देशों का भी है। इनके अलावा कुछ देश ऐसे भी हैं, जिनकी तरफ से इस मामले पर बहुत सधी हुई प्रतिक्रिया दी जा रही है। इनमें भारत भी शामिल है। भारत के परिप्रेक्ष्‍य में यदि यरूशलम की बात की जाए तो भारत यह साफ कर चुका है कि वह इस संबंध में संयुक्‍त राष्‍ट्र के साथ है। लेकिन भारत के इस बयान से भारत की परेशानियां कम करके नहीं आंकी जा सकती है। ट्रंप के इस फैसले ने भारत को भी मुश्किलों में डाल दिया है।

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भारत के सामने समस्‍या

भारत के सामने सबसे बड़ी समस्‍या यह भी है कि मौजूदा समय में भारत के अरब देशों के साथ-साथ इजरायल, फलस्‍तीन और अमेरिका से बेहतर संबंध हैं। ऐसे में किसी के खिलाफ भी भारत नहीं जा सकता है। वहीं अमेरिका से बीते कुछ समय में जिस तरह से रिश्‍ते बेहतर हुए हैं उन्‍हें भी नहीं बिगाड़ा जा सकता है। हालांकि भारत इस बाबत अपनी नीयत और नीति को साफ कर चुका है कि वह इस संबंध में किसी भी देश के थोपे हुए आदेश को नहीं मानेगा और संयुक्‍त राष्‍ट्र रिजोल्‍यूशन को ही तरजीह देगा।

फैसले के पीछे यूएस की तीन मजबूत लॉबी

ट्रंप के फैसले के बाद भारत की परेशानियों के मद्देनजर दैनिक जागरण से बात करते हुए पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी और एचडी देवेगौड़ा के मीडिया एडवाइजर एचके दुआ ने कहा कि यह फैसला भारत के लिए मुश्किलों भरा है। उनके मुताबिक इस फैसले को लेने के पीछे अमेरिका की तीन लॉबियां काम कर रही हैं। इनमें से एक लॉबी यहूदियों की है तो दूसरी गन लॉबी और तीसरी है हैल्‍थ इंश्‍योरेंस लॉबी। उनका कहना है कि इनके तहत ही ट्रंप फैसले ले रहे हैं। पूर्व राष्‍ट्रपति ओबामा की हैल्‍थकेयर पॉलिसी हो या ईरान के साथ किया गया परमाणु करार सभी को पलटने के पीछे यही लॉबी काम कर रही थी और आज भी यही लॉबी काम कर रही है।

अमेरिका में मजबूत स्थिति में यहूदी

दुआ का कहना था कि अमेरिका में यहूदी काफी मजबूत स्थिति में हैं। हालांकि इस लॉबी ने पूर्व राष्‍ट्रपति बराक ओबामा का इतना समर्थन नहीं किया था, जितना ट्रंप का किया है। अमेरिका की बड़ी कंपनियां और मीडिया घराने भी इन्‍हीं के हाथों में हैं। इसके अलावा ट्रंप के दामाद कुश्‍नर भी यहूदी ही हैं। उनका ट्रंप की कैंपेन में काफी बड़ा योगदान रहा है। उनके मुताबिक मौजूदा फैसले में भी उनका योगदान हो सकता है। पूर्व राजदूत रह चुके दुआ का यह भी मानना है कि अमेरिका की टू-स्‍टेट पॉलिसी भारत के लिहाज से भी सही नहीं है। इसके पीछे कुछ वजहें हैं। इनमें से पहली वजह है कि भारत का तेल का व्‍यापार सबसे अधिक सऊदी अरब से होता है, जो ट्रंप के फैसले के खिलाफ है। इसके अलावा भारत की जरूरत का तेल कुछ दूसरे देशों से भी आता है।

ईरान की समस्‍या

दूसरी वजह के रूप में ईरान है जहां भारत चाहबहार के रूप में निवेश कर रहा है। इसके लिए जरिए भारत सेंट्रल एशिया की राह आसान करना चाहता है। तीसरी वजह इजरायल है, जिससे भारत के संबंध लगातार सुधर रहे हैं। उनके मुताबिक 1991-92 में तत्‍कालीन प्रधानमंत्री नरसिंह राव की तरफ से इजरायल से संबंधों को सुधारने की प्रक्रिया शुरू हुई थी। उनका कहना है कि मोदी ऐसे पहले प्रधानमंत्री थे जो दशकों बाद इजरायल गए थे। दुआ बताते हैं‍ कि इजरायल से भारत के संबंध सही मायने में हथियारों की खरीद को लेकर हैं। इनको लेकर भारत काफी आगे निकल चुका है।

भारत की कूटनीतिक परीक्षा की घड़ी

इसके अलावा भारत के संबंध फलस्‍तीन से भी काफी अच्‍छे रहे हैं। ऐसे में भारत के लिए अमेरिका के फैसले के बाद किसी भी एक जगह जाना काफी मुश्किलों भरा होगा। लिहाजा यहां पर भारत की कूटनीतिक परीक्षा की घड़ी है। दुआ मानते हैं कि भारत को सभी देशों को साधकर चलना होगा और यह बात दोहरानी होगी कि हम इस मुद्दे पर संयुक्‍त राष्‍ट्र रिजोल्‍यूशन के तहत ही आगे बढ़ेंगे, जैसा कि अब तक भारत ने किया है।

बढ़ सकती है भारत की परेशानी

पूर्व राजनयिक का साफतौर पर कहना है कि यदि यह मामला ज्‍यादा तूल पकड़ेगा तो न सिर्फ भारत की परेशानियां बढ़ सकती है बल्कि इसका असर समूचे विश्‍व पर दिखाई दे सकता है। इसकी वजह वह सऊदी अरब और ईरान को मानते हैं जो अलग धड़े हैं, जो कभी साथ नहीं आ सकते हैं। हालांकि उनका यह भी कहना था कि अमेरिका के पूर्व राष्‍ट्रपति बराक ओबामा ने कहीं न कहीं इन दोनों को साधने की सफल कोशिश की थी। इसके तहत कायरो स्‍पीच में उन्‍होंने ईरान को नवरोज के वक्‍त संदेश भी भेजा था, जिसका काफी सकारात्‍मक प्रभाव देखने को मिला था।

संयुक्‍त राष्‍ट्र सुरक्षा परिषद ने बुलाई है बैठक

यहां आपको बता दें कि 1967 में यरूशलम के एक भाग पर कब्‍जा करने के बाद 1980 में इजरायल ने इसको अपनी राजधानी बनाने की बात कही थी। लेकिन संयुक्‍त राष्‍ट्र ने इस फैसले का विरोध किया था। इसके बाद से ही फलस्‍तीन को यरूशलम के पूर्वी भाग और पश्चिम पर इजरायल को कब्‍जा दिया गया था। यहां पर यह बात बतानी भी जरूरी है कि एक तरफ जहां फलस्‍तीन भविष्‍य में इजरायल को अपने साथ मिलाकर इसको अपनी राजधानी के तौर पर बनाने का दावा करता रहा है वहीं इजरायल यरूशलम को अपनी राजधानी बनाने की बात करता रहा है। हालांकि संयुक्‍त राष्‍ट्र ने कभी इसको मान्‍यता नहीं दी है। वहीं ट्रंप के ताजा फैसले के बाद एक बार फिर यही मुद्दा तूल पकड़ गया है। संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद के कुल 15 सदस्यों में से आठ ने तो इस हफ्ते के अंत में इसे लेकर एक आपात बैठक भी बुलाई है।

ट्रंप के फैसले पर ये हैं नेताओं के बयान

राष्ट्रपति ट्रंप: अतीत की असफल नीतियों’ को किनारे कर रहे हैं। यह कदम अमेरिका के हित में है और इससे इजरायल व फलस्तीनियों के बीच शांति की राह आसान होगी’। हम अतीत की विफल नीतियों और धारणाओं को दोहराकर समस्याओं का समाधान नहीं निकाल सकते’।

इजरायली प्रधानमंत्री बेंजामिन नेतन्याहू: यह एक ऐतिहासिक दिन है और इजरायल तहे दिल से राष्ट्रपति ट्रंप का आभारी है।

फलस्तीनी राष्ट्रपति महमूद अब्बास कहते हैं यरुशलम ‘फलस्तीन की अखंड राजधानी था और है’। इस तरह के निंदनीय व अस्वीकार्य कदमों से शांति स्थापना की कोशिशों को जान-बूझकर कमजोर किया जा रहा है और यह दशकों से चली आ रही मध्यस्थता के बाद शांति समझौते में अमेरिकी भूमिका से पीछे हटने की शुरुआत के घोषणापत्र जैसा है।’

हमास : अमेरिकी हितों के खिलाफ पश्चिम एशिया के सभी मुसलमान एकजुट होने चाहिए।

ब्रिटिश प्रधानमंत्री थेरेसा मे: यह कदम ‘क्षेत्र में शांति कायम करने में कतई मददगार नहीं है’।

सऊदी अरब के शहंशाह सलमान: यह कदम ‘दुनिया भर के मुसलमानों के अंदर आक्रोश बढ़ाएगा’।

तुर्की के राष्‍ट्रपति रेसैप तैयप इर्दोगन: ट्रंप के इस फैसले ने पूरे क्षेत्र को आग में झोंकने का काम किया है।

तुर्की के प्रधानमंत्री बिनाली येल्‍डरिन: ट्रंप के फैसले से इस क्षेत्र में कभी भी धमाका हो सकता है, क्‍योंकि उन्‍होंने बम की पिन को निकालने का खतरनाक काम किया है।

ईरान के राष्‍ट्रपति हसन रुहानी: इस फैसले के बाद अमेरिका का इस्‍लामिक विश्‍व के खिलाफ चेहरा खुल कर सामने आ गया है। यह मुस्लिम राष्‍ट्रों के खिलाफ अमेरिका का रचा गया एक षड़यंत्र है।

फलस्‍तीन के राष्‍ट्रपति महमूद अब्‍बास: अमेरिका ने इजरायल को यह एक ईनाम दिया है, जो इजरायल की कारगुजारियों में इजाफा करेगा।

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