वर्ल्ड कप में भारतीय महिला टीम के इस प्रदर्शन को वर्षों तक रखा जाएगा याद
भारतीय महिला टीम ने क्रिकेट के तीनों फॉर्मेट में खुद को कई बार श्रेष्ठ साबित किया है। इससे साबित होता है कि भारतीय महिला टीम को थोड़ा प्रोत्साहन मिले तो वह क्या नहीं कर सकती।
मनीषा सिंह
आइसीसी महिला विश्व कप में इस बार भारतीय महिला क्रिकेट टीम ने जैसा प्रदर्शन किया है उसे लंबे अरसे तक याद रखा जाएगा। इस बार खुद क्रिकेट की महान हस्तियों ने महिला क्रिकेटरों के शानदार प्रदर्शन की तारीफ की है और उम्मीद जताई है कि इससे इस खेल में महिलाओं की उपस्थिति बढ़ेगी। हालांकि एक टूर्नामेंट में बेमिसाल प्रदर्शन मात्र से क्रिकेट में महिला खिलाड़ियों की आमद, पुरुष क्रिकेट क बराबर दर्जा और सम्मान जैसे मसले हल हो पाएंगे इसमें अभी संदेह है। इसी तरह पुरुष क्रिकेट जैसी सहूलियतें, मीडिया अटेंशन व पैसा महिला क्रिकेटर पा सकेंगी यह भी अभी सवाल बना हुआ है। लेकिन यह सही है कि पहली बार देश में महिला क्रिकेट और क्रिकेटरों की चर्चा होते हुए दिखाई दी है।
विश्व कप के दौरान अलग-अलग मैचों में कप्तान मिताली राज के अलावा झूलन गोस्वामी, स्मृति मंधाना और हरमनप्रीत कौर जैसी खिलाड़ी देश-दुनिया में काफी चर्चा बटोरने में सफल रहीं। इसे देखकर यही लगा कि महिला क्रिकेट की हैसियत में तब्दीली आ रही है। विगत चैंपियन ऑस्ट्रेलिया के साथ सेमीफाइनल मैच में हरमनप्रीत के 171 रनों की पारी ने कपिल देव को यह कहने के लिए बाध्य कर दिया कि हरमनप्रीत की पारी 1983 विश्व कप में उनके द्वारा बनाए गए 175 रनों जितनी ही महत्वपूर्ण थी। महिला क्रिकेटरों को देश, समाज और खुद पुरुष क्रिकेटर कितना पहचानते हैं- इसका एक पक्ष तब सामने आया जब मिताली राज द्वारा एकदिवसीय क्रिकेट में 6000 रन बनाने पर सोशल मीडिया पर बधाई देने आए विराट कोहली गलती से किसी और खिलाड़ी की तस्वीर लगा बैठे।
यही नहीं मिताली राज से एक पत्रकार यह पूछने की गलती कर बैठा कि उनका पसंदीदा पुरुष क्रिकेटर कौन है। इस पर मिताली ने उचित ही नाराज होकर प्रतिप्रश्न किया कि क्या यही सवाल पुरुष क्रिकेटरों से पूछा जा सकता है कि आखिर उनकी पसंदीदा महिला क्रिकेटर कौन है। आज बेशक देश में यह चर्चा आम है कि आइसीसी विश्व कप की बदौलत मिली चर्चा के आधार पर देश के गांव-कस्बों की आम लड़कियां क्रिकेट में कॅरियर बनाने के बारे में सोच रही होंगी। साथ ही अब महिला क्रिकेट को लेकन देश में एक माहौल बनेगा जिसका फायदा इस रूप में मिल सकता है कि जो लड़कियां बैडमिंटन या टेनिस से बाहर किसी और खेल के बारे में नहीं सोच पाती हैं, उन्हें क्रिकेट में एक अवसर मिल सकता है। लेकिन इतने के बावजूद कोई यह नहीं भूल सकता है कि हाल तक भारतीय महिला क्रिकेट की अनदेखी एक बड़ा मुद्दा रही है। महिला क्रिकेटरों के शानदार रिकॉर्ड के बाद भी यह उपेक्षा सतत जारी रही है।
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ऐसी ही अनदेखी से आजिज आकर वर्ष 2013 में टीम की कोच के रूप में डायना एडुलजी ने देश में महिला क्रिकेट की गंभीर दशा के बारे में सवाल खड़े किए थे। उस समय एडुलजी ने आरोप लगाया था कि जो भारतीय क्रिकेट कंट्रोल बोर्ड (बीसीसीआइ) पुरुष क्रिकेट टीम पर पानी की तरह पैसा बहाता है, वह महिला क्रिकेट को आगे बढ़ाने के लिए कुछ खास काम नहीं करता है, लेकिन उनके कहने-सुनने का भी कोई असर नहीं हुआ।1पुरुष और महिला क्रिकेट में एक आम भेदभाव दोनों टीमों के खिलाड़ियों को मिलने वाली फीस का अंतर है। पुरुष खिलाड़ियों को जहां एक टेस्ट मैच के लिए न्यूनतम 7-8 लाख रुपये मिलते हैं, वहीं महिला खिलाड़ी को पूरी अंतरराष्ट्रीय सीरीज के लिए सिर्फ एक-सवा लाख रुपये ही मिलते रहे हैं। घरेलू मैचों में भी पुरुष खिलाड़ी को महिला क्रिकेटरों के मुकाबले कहीं ज्यादा पैसा मिलता है।
वैसे तो बीसीसीआइ की ओर से यह कहा जाता है कि जबसे महिला क्रिकेट उसके तहत आया है, तबसे उसने काफी तरक्की की है, लेकिन इन दावों के विपरीत लंबे अरसे तक क्रिकेट बोर्ड ने महिला क्रिकेट को लोकप्रिय बनाने के लिए कोई गंभीर कोशिश नहीं की, जबकि पुरुष क्रिकेट के हर फॉर्मेट को चर्चा में लाने के लिए जितने उपाय हो सकते थे, वे आजमाए गए। सवाल यह है कि आखिर महिला क्रिकेट में पुरुष क्रिकेट जैसी चमक-दमक और ग्लैमर क्यों नहीं रहा है? इसका एक कारण यह बताया जाता है कि ऐसा इसलिए भी है, क्योंकि हमारा समाज महिलाओं के कौशल को तरजीह नहीं देना चाहता। स्पष्ट है कि खेलों में महिला-पुरुष का भेद सिर्फ सोच के स्तर पर कायम है। यह सही है कि ज्यादातर खेलों में पुरुषों का वर्चस्व कायम रहा है और क्रिकेट में तो यह खासतौर दिखता है। अगर रिकॉर्ड की बात की जाए तो महिला क्रिकेटरों ने कई कीर्तिमान स्थापित किए हैं।
जैसे 1978 से जबसे भारत ने क्रिकेट वल्र्ड कप में हिस्सा लेना शुरू किया है, तबसे भारतीय महिला क्रिकेट टीम 1978, 1982, 1993 में वल्र्ड कप में चौथे स्थान पर, 1997 और 2000 में सेमीफाइनल, 2005 में फाइनल (रनर अप) और 2009 में तीसरे नंबर पर रही। इसी तरह वर्ष 2013 में भारतीय महिला क्रिकेट टीम ने अप्रैल में बांग्लादेश को 10 रन से हरा कर टी-20 सीरीज भी जीती थी और वह भी 3-0 से। इसी तरह वर्ष 2016 में पुरुषों के टी-20 विश्व कप के समानांतर आयोजित महिला टी-20 की भारतीय टीम ने कैप्टन मिताली राज की अगुआई में अपने पहले ही मैच में बांग्लादेश की टीम को 72 रन से हराकर बड़ी जीत दर्ज कर बेहतरीन शुरुआत की थी। बाद के मैचों में भी यह टीम हारने के बावजूद अपने तीखे तेवर दिखाती रही।
रविवार को वर्ल्ड कप के फाइनल मैच में भी इंग्लैंड को इसने कड़ी टक्कर दी, पर महिला क्रिकेट की चर्चा टीवी और अखबारों में कम ही रही। मिताली राज वनडे कॅरियर में 100 से ज्यादा मैच खेल चुकी हैं और ऐसा करने वाली वह दुनिया की तीसरी खिलाड़ी हैं। मिताली का हमेशा यह मत रहा है कि अगर मीडिया में महिला क्रिकेट को एक सम्मानजनक जगह मिल जाए तो दर्शक और प्रायोजक की मौजूदा कमी दूर हो जाएगी। अंतरराष्ट्रीय मैचों में दर्शकों की कमी का कारण इनका टेलीविजन पर प्रसारण नहीं होना रहा है। इस बार इस स्थिति में सुधार दिखा जब महिला विश्व कप का टीवी पर प्रसारण हुआ और आम लोगों ने उसे देखा और खिलाड़ियों के प्रदर्शन की चर्चा की।
सच तो यह है कि भारतीय महिला क्रिकेट टीम ने क्रिकेट की हर शैली में खुद को कई बार शीर्षतम और श्रेष्ठतम साबित किया है, चाहे वह टेस्ट क्रिकेट हो, टी-20 या फिर वन डे। इससे साबित होता है कि भारतीय महिला टीम को थोड़ा प्रोत्साहन, थोड़ी मदद और थोड़ी तवज्जो मिले तो वह क्या नहीं कर सकती। साथ ही कुछ और घरेलू व अंतरराष्ट्रीय स्तर के टूर्नामेंट करा दिए जाएं तो महिला क्रिकेट के दिन भी हमारे देश में फिर सकते हैं। इसके अलावा यदि पुरुष आइपीएल की तर्ज पर महिला आइपीएल भी शुरू हो जाए तो वह सोने पर सुहागा साबित होगा।
(लेखिका स्वतंत्र टिप्पणीकार हैं)