इस मामले में जल्द ही चीन से आगे निकल जाएगा भारत, फैसला आप पर
संयुक्त राष्ट्र के आंकड़े के मुताबिक 2024 तक भारत की जनसंख्या चीन की आबादी से ज्यादा हो जाएगी। हालांकि जनसंख्या की वृद्धि दर में गिरावट भी दर्ज की जा रही है।
नई दिल्ली [स्पेशल डेस्क] । संयुक्त राष्ट्र की आर्थिक एवं सामाजिक रिपोर्ट पर हम सब इतराएं या आत्ममंथन करें ये एक विषय हो सकता है। लेकिन, जो रिपोर्ट सामने आ रही है उसके मुताबिक चीन से भारत आगे निकल जाएगा। भारत की आबादी पहले के अनुमान से करीब दो साल बाद यानि 2024 तक चीन की आबादी को पार कर जाएगी। संयुक्त राष्ट्र के एक पूर्वानुमान में ये दावा किया गया है। भारत की जनसंख्या 2030 तक 1.5 अरब होने की संभावना है।
संयुक्त राष्ट्र के आर्थिक एवं सामाजिक मामलों के विभाग ने बुधवार को एक रिपोर्ट पेश की। इसमें कहा गया है कि चीन की आबादी 1.41 अरब है और भारत की आबादी मौजूदा समय में 1.34 अरब है। इन दोनों की विश्व आबादी में 19 फीसद और 18 फीसद हिस्सेदारी है। 24वें दौर का अनुमान था कि भारत की आबादी 2022 तक चीन की आबादी को पार कर जाएगी। नए अनुमान के मुताबिक 2024 में दोनों देशों की आबादी 1.44 अरब के आसपास होगी। 2030 में भारत की आबादी 1.5 अरब और 2050 में 1.66 अरब होने का अनुमान है। चीन की आबादी 2030 तक स्थिर होगी, जिसके बाद गिरावट का दौर शुरू होगा जबकि भारत की आबादी में 2050 के बाद कमी आएगी।
ये है भारत की तस्वीर
- भारत के कुछ राज्यों की जनसंख्या कुछ देशों की जनसंख्या के बराबर है।
- महाराष्ट्र की जनसंख्या मैक्सिको के बराबर यानी 104 मिलियन है।
- वियतनाम की आबादी पश्चिम बंगाल के बराबर 85 मिलियन।
- झारखंड की आबादी युगांडा जितनी 29 मिलियन।
- ओडिशा की आबादी अर्जेंटीना के बराबर 39 मिलियन है।
- फिलहाल 50 प्रतिशत से ज़्यादा जनसंख्या 25 साल से कम उम्र के आयु वर्ग में आती है, जबकि 65 प्रतिशत 35 साल के कम उम्र के आयु वर्ग में है।
- अनुमान लगाया जा रहा है कि वर्ष 2025 में 64 प्रतिशत युवा होंगे।
- 11 प्रतिशत 60 वर्ष की आयु से ज़्यादा और 14 वर्ष तक की आयु वाले बच्चे 25 प्रतिशत होंगे।
- देश की 58 प्रतिशत जनसंख्या जननीय आयु वर्ग में हैं। इनमें से 53 प्रतिशत गर्भ निरोधक का इस्तेमाल करते हैं।
- देश में आबादी के एक बड़े हिस्से को अब भी गर्भ निरोधक का इस्तेमाल करने की ज़रूरत है।
- 2025 तक विश्व में 50 प्रतिशत जनसंख्या वृद्धि के ज़िम्मेदार केवल देश के पूर्वी राज्य होंगे।
- केवल 13 प्रतिशत जनसंख्या वृद्धि पश्चिमी देशों के हिस्से में आएगी।
कौन है जिम्मेदार
अगर देश में शिशु मृत्यु दर पर रोक लगाने का लक्ष्य पूरा होता तो 2010 में देश की जनसंख्या 1107 मिलियन होती है, जबकि वर्ष 2008 में ही हमारे देश की जनसंख्या इससे भी ज़्यादा 1149.3 मिलियन थी। राष्ट्रीय जनसंख्या नीति के तहत टोटल फर्टिलिटी रेट यानी एक महिला द्वारा पैदा किए गए बच्चों की संख्या 2 हो, लेकिन आंकड़ों को देखें तो देश की प्रगति के साथ यहां के लोगों का स्वास्थ्य के प्रति नजरिया कुछ नकारात्मक ही रहा है। अब भी देश के राज्यों के फर्टिलिटी रेट को देखकर कह सकते हैं कि निर्धारित किए गए लक्ष्य से हम अभी बहुत पीछे हैं।
इस आंकड़े को छूने के लिए तमिलनाडु को छोड़कर बाक़ी राज्यों को लंबा सफर तय करना पड़ेगा। उत्तर प्रदेश को अभी 18 वर्ष और लगेंगे। मध्य प्रदेश को 16 वर्ष, छत्तीसगढ़ और उत्तराखंड को 13 वर्ष, बिहार एवं राजस्थान को 12 वर्ष, असम और झारखंड को नौ से दस वर्ष लगेंगे। 2007-2008 की रिपोर्ट के मुताबिक़, देश के ग्रामीण इलाकों में 40-45 आयु वर्ग की महिलाएं सबसे ज्यादा 6 और सबसे कम दो बच्चों को जन्म देती हैं। इस मामले में उत्तर प्रदेश सबसे आगे प्रति महिला 6 बच्चे हैं। बिहार, मध्य प्रदेश, झारखंड, राजस्थान में प्रति महिला पांच बच्चे और सबसे कम केरल में प्रति महिला दो बच्चे हैं।
राष्ट्रीय जनसंख्या नीति के लक्ष्य में यह भी शामिल था कि सही उम्र में विवाह को बढ़ावा दिया जाए, जिसमें महिला के विवाह की उम्र कम से कम 18 वर्ष हो और बेहतर हो यदि 20 वर्ष हो। वर्ष 2007-08 की रिपोर्ट के मुताबिक, 18 वर्ष से कम उम्र की विवाहित महिलाएं बिहार में सबसे ज्यादा 70 प्रतिशत, राजस्थान, उत्तर प्रदेश एवं मध्य प्रदेश में 59, झारखंड और पश्चिम बंगाल में 58 और सबसे कम हिमाचल प्रदेश में नौ प्रतिशत हैं। इसके साथ ये भी जानना जरूरी है कि एक महिला द्वारा पैदा किए गए बच्चों की संख्या का उसके और बच्चे के जीवन पर कैसा असर पड़ता है।
राष्ट्रीय जनसंख्या नीति के तहत यह लक्ष्य रखा गया था कि बच्चे को जन्म देने वाली महिला की मत्यु दर प्रति एक लाख में 100 या इससे कम हो। आमतौर पर विकसित देशों में बच्चे को जन्म देने के समय प्रति 2800 में से एक महिला की मौत होती है, जबकि हमारे देश में प्रति 100 डिलीवरी में एक महिला की मृत्यु होने की आशंका रहती है और बाकी जो 99 प्रतिशत महिलाएं बच जाती हैं, वे या तो किसी गंभीर बीमारी से ग्रस्त हो जाती हैं या किसी प्रकार के शारीरिक विकार की चपेट में आ जाती हैं।
जनसंख्या नीति 2000 की खास बातें
भारत में सबसे पहले पहले जनसंख्या नीति बनाने का सुझाव वर्ष 1960 में एक विशेषज्ञ समूह ने दिया था।1976 में देश की पहली जनसंख्या नीति की घोषणा की गयी।1978 में जनता पार्टी सरकार ने संशोधित जनसंख्या नीति की घोषणा की।11 मई 2000 को पीएम की अघ्यक्षता में राष्ट्रीय जनसंख्या आयोग का गठन किया गया।
राष्ट्रीय जनसंख्या नीति के कार्यान्वयन की समीक्षा एवं निगरानी के लिए गठित राष्ट्रीय जनसंख्या आयोग का पुनर्गठन डॉ. मनमोहन सिंह ने मई 2005 को किया। फरवरी 2000 में सरकार ने राष्ट्रीय जनसंख्या नीति की घोषणा की थी। यह नीति डॉ. एम.एस. स्वामीनाथन की अध्यक्षता में गठित एक विशेषज्ञ दल की रिपोर्ट पर आधारित है। वर्ष 2010 तक 2.1 की कुल जनन क्षमता दर प्राप्त करना है। अगर जनन क्षमता की वर्तमान प्रवृत्ति जारी रही तो यह उद्देश्य 2026 तक ही प्राप्त हो सकेगा। दीर्घकालीन उद्देश्य 2050 तक जनसंख्या में स्थायित्व प्राप्त करना है।
- चौदह वर्ष की आयु तक स्कूली शिक्षा निशुल्क और अनिवार्य बनाना।
- स्कूलों में बीच में ही पढ़ाई छोड़ देने वाले लड़के-लड़कियों की संख्या 20 प्रतिशत से नीचे लाना।
- शिशु मृत्यु दर प्रति एक हजार जीवित बच्चों में 30 से कम करना।
- जच्चा मृत्यु अनुपात प्रति एक लाख संतानों में एक सौ से कम करना।
- टीकों से रोके जाने वाले रोगों से सभी बच्चों को प्रतिरक्षित करना।
- लड़कियों के देर से विवाह को बढ़ावा देना। विवाह 18 वर्ष से पहले न हो, बेहतर होगा अगर यह 20 वर्ष की आयु के बाद हो।
- अस्सी प्रतिशत प्रसव अस्पतालों, नर्सिग होमों आदि में और 100 फीसद प्रतिशत प्रशिक्षित लोगों से कराना।
- सभी को सूचना, परामर्श तथा जनन क्षमता नियमन की सेवाएं और गर्भनिरोध के विभिन्न विकल्प उपलब्ध कराना।
2000 में बनी राष्ट्रीय जनसंख्या नीति का मुख्य उद्देश्य 2045 तक स्टेबल पॉपुलेशन की स्थिति हासिल कर करना था, जिससे आर्थिक और सामाजिक विकास हो और सबके लिए समान रूप से स्वच्छ वातावरण उपलब्ध हो सके। लेकिन जो हालात हैं। उससे हम 2060 तक भी पॉपुलेशन स्टेबलाइजेशन की स्थिति तक नहीं पहुंच पाएंगे।
कितना बोझ सह सकती है धरती
लंदन के इंटरनेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ एनवायरमेंट एंड डेवलपमेंट के सीनियर फेलो डेविड सैटर्थवेट कहते हैं कि ऐसा नहीं है। डेविड के मुताबिक आबादी से ज्यादा अहमियत इस बात की है कि आप संसाधनों का इस्तेमाल कैसे करते हैं। वो महात्मा गांधी का हवाला देते हैं। गांधी जी ने कहा था कि धरती पर सबकी ज़रूरत भर का सामान है, मगर सबके लालच को पूरा करने लायक नहीं है।
धरती पर पहले इंसानों की आबादी बहुत ज्यादा नहीं थी। वैज्ञानिक बताते हैं कि, दस हजार साल पहले तक धरती पर महज कुछ लाख इंसान थे। अठारहवीं सदी के आखिर में आकर धरती की आबादी ने सौ करोड़ का आंकड़ा छुआ था। 1920 में जाकर, धरती पर दो सौ करोड़ लोग हुए थे।
आज की तारीख में दुनिया की आबादी सात अरब से ज्यादा है। 2050 तक ये आंकड़ा करीब दस अरब और 22वीं सदी के आते आते धरती पर ग्यारह अरब लोगों के होने का अनुमान है। 2012 में संयुक्त राष्ट्र की एक रिपोर्ट के मुताबिक दुनिया की 35 करोड़ महिलाएं अपना आखिरी बच्चा नहीं चाहती थीं। मगर उनके पास इतने अधिकार नहीं थे कि वो इसका फैसला ले सकें कि वो बच्चा पैदा करेंगी या नहीं। लेकिन अब भी एक अहम सवाल है कि क्या धरती 11 अरब लोगों के बोझ को बर्दाश्त कर पाएगी। इस सवाल के कई जवाब हैं मसलन कुछ शोधकर्ताओं का कहना है कि धरती 11 अरब की आबादी के बोझ को बर्दाश्त करने में सक्षम है। 2012 में संयुक्त राष्ट्र की रिपोर्ट के मुताबिक हमारी धरती आठ अरब से लेकर 24 अरब लोगों के बोझ को बर्दाश्त कर सकती है।
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