क्या माओवादियों से ट्रेनिंग लेकर आंदोलन को धार देने की तैयारी में है जीजेएम
पश्चिम बंगाल के सीनियर पुलिस अधिकारी ने खुफिया रिपोर्ट के हवाले से बताया है कि गोरखा जनमुक्ति मोर्चा अपने लोगों को माओवादियों से ट्रेनिंग दिला रहे हैं।
नई दिल्ली, [स्पेशल डेस्क]। पश्चिम बंगाल से अलग गोरखा लैंड की मांग पर अड़े गोरखा जनमुक्ति मोर्चा अपने आंदोलन को नई धार देने की तैयारी में है। इसके लिए गोरखा जनमुक्ति मोर्चा मोआवादियों की मदद से लंबे सशस्त्र आंदोलन की तैयारी कर रहा है। इस बात का सनसनीखेज खुलासा पश्चिम बंगाल के सीनियर पुलिस अधिकारी ने किया है। ऐसे में सवाल उठता है कि क्या अब हिंसक तरीके से जीजेएम अपना आंदोलन चलाएगा या फिर यह पुलिस की तरफ से इस पॉलिटिकल आंदोलन को नाकाम करने की एक रणनीति भर है?
आंदोलन के लिए मोआवादियों से ट्रेनिंग
दरअसल, राज्य के एडीजी (लॉ एंड ऑर्डर) अनुज शर्मा ने इस बात का खुलासा करते हुए बताया है कि गोरखालैंड की मांग को लेकर प्रदर्शन कर रहे गोरखा जनमुक्ति मोर्चा हथियारबंद भूमिगत आंदोलन चलाने की तैयारी में है। इसके लिए बकायदा उसने अपने कैडर को प्रशिक्षण देने के लिए पड़ोसी मुल्कों से माओवादियों को भाड़े पर लिया है।
जबकि, राज्य के एक वरिष्ठ पुलिस अधिकारी का दावा है कि जीजेएम ने अपने कार्यकर्ताओं को प्रशिक्षित करने के लिए 25-30 की संख्या में माओवादियों को किराए पर रखा है। उन्होंने आगे बताया कि जीजेएम के पास हथियार और गोला-बारूद का एक बड़ा जखीरा है। पिछले कुछ वर्षों से जीजेएम हथियारों का भंडार जमा कर रहा है। खुफिया रिपोर्ट के मुताबिक जीजेएम सशस्त्र भूमिगत आंदोलन की तैयारी कर रहा है।
पुलिस, सरकारी संपत्तियों पर कहर बरपाएगा जीजेएम
एडीजी अनुज शर्मा का कहना है कि खुफिया एजेंसियों को इस बात के सुराग मिले हैं कि प्रशिक्षित दस्ता सरकारी संपत्तियों, पुलिस और प्रशासन के वरिष्ठ अधिकारियों को निशाना बना सकते हैं। ऐसे में पहाड़ में स्थिति और विस्फोटक हो सकती है। जाहिर है कि अगर समचमुच गोरखा जनमुक्ति मोर्चा ने ऐसी रणनीति बनाई है और मोआवादियों से आंदोलनकर्ताओं को ट्रेनिंग दिलाई जा रही रही है तो इस पहाड़ी इलाके का आग में जलना तय है।
खुफिया रिपोर्ट के बाद हरकत में पुलिस
एक अन्य वरिष्ठ अधिकारी ने कहा कि सरकार पहाड़ में किसी भी स्थिति से निपटने के लिए तैयार है। स्थिति पर काबू पाने के लिए आवश्यक कदम उठाए जा रहे हैं। बंद के 38 दिनों में पहाड़ में थानों और पुलिस चौकियों पर हमले के कई उदाहरण मौजूद हैं। वहां से माओवादी शैली में हथियार और गोला बारूद भी लूट लिए गए थे।
ऐसे में हिंसक आंदोलन की खुफिया जानकारी मिलने के बाद सरकार ने पहाड़ में कई शीर्ष आईपीएस अधिकारियों को भेजा। उन अधिकारियों के पास माओवादी खतरों का सामना करने का व्यापक अनुभव है। अधिकारियों ने 2009-2012 तक बंगाल के जंगलमहल इलाके में माओवादियों से लोहा लिया है। ऐसे अधिकारियों में वरिष्ठ आइपीएस अधिकारी मनोज वर्मा शामिल हैं, जिनके पास माओवादियों से निपटने का लंबा अनुभव है।
गोरखा जनमुक्ति मोर्चा का इनकार
पुलिस की तरफ से जिस तरह का सनसनीखेज आरोप गोरखा जनमुक्ति मोर्चा पर लगाया गया है, पुलिस के उन दावों को वह पूरी तरह से बेबुनियाद बता रहे हैं। गोरखा जनमुक्ति मोर्चा के महासचिव रोशन गिरी ने इसे पुलिस की तरफ से जीजेएम को बदनाम करने की रणनीति और पहाड़ में पूरे आंदोलन को पटरी से उतारने की कवायद का एक हिस्सा है।
पुलिस के दावे में है कितना दम
खुफिया रिपोर्ट का हवाला देकर पुलिस की तरफ से जिस तरह का दावा किया गया है, उस पर राजनीतिक जानकारों और माओवादियों को करीब से जाननेवाले लोगों की अलग राय है। वरिष्ठ पत्रकार अनिल चामड़िया ने Jagran.com से खास बातचीत में बताया कि चूंकि जब भी कोई आंदोलन होता है पुलिस की ऐसी कोशिश रही है कि वह उस आंदोलन को कानून-व्यवस्था की सुरक्षा से जोड़ती रही है।
उन्होंने बताया कि अलग गोरखालैंड राज्य की मांग पहाड़ी लोगों की काफी पुरानी मांग है। लेकिन, चामड़िया ने ऐसा अंदेशा जताया कि हो सकता है कि पुलिस पूरी बातों को घुमा रही हो, उसकी वजह है जब भी पॉलिटिकल आंदोलन हुआ पुलिस ने ऐसा किया। अनिल चामड़िया ने इसका उदाहरण देते हुए बताया कि वह चाहे छत्तीसगढ़ या झारखंड का आदिवासी आंदलोन हो पुलिस ने शुरुआती तौर पर ही इसे कट्टरपंथी संगठन से जोड़ने का प्रयास किया।
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