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जब पहले से जानते थे अपनी हार, फिर क्यों चुनाव आयोग तक गए शरद यादव

सुरेन्द्र किशोर की मानें तो नीतीश कुमार के खिलाफ इस बगावती सुर में शरद यादव ने अपनी राजनीतिक साख गंवा दी।

By Rajesh KumarEdited By: Published: Fri, 17 Nov 2017 05:08 PM (IST)Updated: Sat, 18 Nov 2017 01:11 PM (IST)
जब पहले से जानते थे अपनी हार, फिर क्यों चुनाव आयोग तक गए शरद यादव
जब पहले से जानते थे अपनी हार, फिर क्यों चुनाव आयोग तक गए शरद यादव

नई दिल्ली, [स्पेशल डेस्क]। जनता दल (यूनाइटेड) के चुनाव चिन्ह को लेकर नीतीश कुमार के साथ लड़ाई में चुनाव आयोग से शरद यादव को बड़ा झटका लगा है। शुक्रवार को चुनाव आयोग ने नीतीश कुमार के पक्ष में फैसला देते हुए कहा कि असली जेडीयू के हक़दार नीतीश कुमार हैं और उन्हीं के पास पार्टी के चुनाव चिन्ह तीर के इस्तेमाल का अधिकार है। चुनाव आयोग ने माना कि जेडीयू बिहार की एक पार्टी है।

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ऐसे में सवाल ये उठता है कि जब शरद यादव के पास न ही पार्टी के लोगों का आंकड़ा था और न ही कोई आधार ऐसे में वह पार्टी के सिंबल की लड़ाई में नीतीश के खिलाफ चुनाव आयोग तक क्यों गए? इसके बारे में क्या सोचते हैं बिहार की राजनीति को समझने वाले राजनीतिक विश्लेषक और इस फैसले का क्या होगा बिहार की राजनीति पर असर। पहले जानते हैं चुनाव आयोग ने क्या कहा...

चुनाव आयोग ने क्या कहा

शुक्रवार को चुनाव आयोग ने अपने आदेश में बताया है कि नीतीश कुमार के नेतृत्व वाले समूह को विधायिका और पार्टी की राष्ट्रीय परिषद (नेशनल काउंसिल ऑफ द पार्टी) में जबरदस्त समर्थन मिला है, जो जेडीयू की शीर्ष संगठनात्मक संस्था है। आदेश में कहा गया है कि नीतीश कुमार के नेतृत्व वाला जनता दल (यूनाईटेड) ही असली जेडीयू है और बिहार की पार्टी के तौर पर नीतीश कुमार के नेतृत्व वाले ग्रुप को पार्टी के चुनाव चिन्ह तीर के इस्तेमाल अधिकार है।

शरद जानते थे अपनी हार

बिहार की राजनीति की गहरी समझ रखनेवाला राजनीतिक विश्लेषक सुरेन्द्र किशोर की मानें तो चुनाव आयोग की तरफ से नीतीश के पक्ष में पार्टी सिंबल पर दिया गया यह फैसला कोई अप्रत्याशित नहीं है बल्कि यह पहले से तय था। दैनिक जागरण के साथ खास बातचीत में सुरेन्द्र किशोर ने बताया कि शरद यादव अपनी हारी हुई लड़ाई इसलिए लड़ रहे थे, ताकि कुछ लोगों को वह नीतीश के पाले से तोड़ सकें और इसी मकसद से वह लगातार नीतीश के खिलाफ बगावत का झंडा लिए खड़े थे और पार्टी के चुनाव चिन्ह पर असली जेडीयू बता अपना दावा जता रहे थे।

शरद ने गंवाई राजनीतिक साख

सुरेन्द्र किशोर की मानें तो नीतीश कुमार के खिलाफ इस बगावती सुर में शरद यादव ने अपनी राजनीतिक साख गंवा दी। उनकी मानें तो अब शरद यादव के पास नीतीश कुमार से अलग होने के बाद ज्यादा विकल्प नहीं बचा है। अब वे लालू यादव के साथ ही जाएंगे यह तय है। ऐसे में चुनाव आयोग की तरफ से दिए गए ताज़ा फैसले का बिहार की राजनीति पर किसी तरह का कोई असर नहीं होने जा रहा है। उनका मानना है, क्योंकि इस वक्त जेडीयू और भाजपा का राज्य में गठबंधन है और जब ये दो पार्टियां एक साथ हो तो फिर इसे हराना वहां पर किसी अन्य दल के लिए मुश्किल है।

क्यों शरद ने अपनाया था बगावती सुर

नीतीश कुमार ने जब बिहार में महागठबंधन का साथ छोड़कर भारतीय जनता पार्टी के साथ सरकार बनाने का फैसला किया, उसके बाद शरद यादव ने बगावती सुर अपनाते हुए नीतीश कुमार पर पार्टी की राष्ट्रीय कार्यकारिणी के फैसले के खिलाफ जाने और पार्टी विरोधी गतिविधियों में शामिल होने का आरोप लगाया था। शरद यादव ने कहा था कि उनके साथ वाला गुट ही असली जेडीयू है। जिसके बाद शरद गुट के वर्किंग प्रसिडेंट छोटुभाई अमरसंग वसावा ने चुनाव आयोग में पार्टी और पार्टी के चुनाव चिन्ह पर अपना दावा ठोका था।

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