मोदी-ट्रंप की मुलाकात से चिंता में चीन, समय की धार पर द्विपक्षीय संबंध
भारत और अमेरिका के रिश्तों में आई मजबूती से चीन बौखला गया है।इसीलिए चीन ने मानसरोवर जाने वाले भारतीय यात्रियों को आगे बढ़ने से रोक दिया।
प्रमोद भार्गव
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप की असाधारण मुलाकात से चीन लगभग बौखला गया है। उसकी इस बौखलाहट की आग में घी डालने का काम अमेरिका द्वारा आतंकवादी संगठन हिजबुल के प्रमुख सैयद सलाहुद्दीन को वैश्विक आतंकवादी घोषित करने की कार्यवाही ने भी किया है। लिहाजा चीन के सरकारी अखबार ‘ग्लोबल टाइम्स’ में प्रकाशित एक लेख के मुताबिक भारत अमेरिका से दोस्ती बढ़ाकर चीन की बराबरी न करे। अन्यथा इस कोशिश के विनाशकारी परिणाम भारत को भुगतने होंगे। दरअसल चीन को भ्रम है कि इस प्रगाढ़ दोस्ती की पृष्ठभूमि में चीन का बढ़ता प्रभाव है, जो भारत और अमेरिका को कतई नहीं सुहा रहा है। लिहाजा इस प्रभाव को रोकने के लिए वाशिंगटन में इस दोस्ती को नया रंग दिया गया है।
लेख में यह भी उल्लेख है कि भारत अपनी गुटनिरपेक्ष नीति का त्याग कर चीन से मुकाबले के लिए अमेरिका का मोहरा बनता जा रहा है। यह नई स्थिति दक्षिण एशियाई देशों के लिए नई दुविधा खड़ी कर सकती है। चीन ने ऐसा ही रवैया तब अपनाया था, जब भारत में तैनात अमेरिका के राजदूत रिचर्ड वर्मा ने अरुणाचल प्रदेश की यात्र की थी। चीन इस तरह का एतराज इसलिए दर्ज कराता रहता है, ताकि दुनिया को यह अहसास होता रहे कि सिक्किम और अरुणाचल विवादित क्षेत्र हैं।
वास्तव में, चीनी सेना की टुकड़ी ने सिक्किम में नियंत्रण रेखा पार कर भारतीय डोका ला के लालटन क्षेत्र में घुसपैठ की और हमारी सेना के जवानों से हथापाई की। जबकि चीन ने भारतीय सेना पर आरोप लगाया है कि उसने चीनी सीमा में घुसपैठ की है। जबकि दूसरी तरफ चीन ने नाथुला र्दे के रास्ते से मानसरोवर जा रहे यात्रियों को अब तक क्यों रोके रखा है, इसका कोई स्पष्टीकरण नहीं दिया गया है। हां, यह बहाना जरूर गढ़ लिया है कि तिब्बत क्षेत्र में भू-स्खलन की आशंका के चलते 350 श्रद्धालुओं को रोका गया है। यह मार्ग भारत और चीन के बीच 2015 में हुए द्विपक्षीय संधि के तहत खोला गया है। चीन की यह बौखलाहट चीन में संपन्न ओबीओआर शिखर सम्मेलन में भारत का बहिष्कार भी एक कारण है। एनएसजी के मुद्दे पर भारत और चीन की कड़वाहट पहले से ही बनी हुई है। अब चीन भारत की गुटनिरपेक्ष नीति पर सवाल उठा रहा है, तो यह उसकी धूर्तता ही है।
दरअसल, चीन का लोकतांत्रिक स्वांग उस सिंह की तरह है जो गाय का मुखौटा ओढ़कर धूर्तता से दूसरे प्राणियों का शिकार करता है। इसका नतीजा है कि चीन 1962 में भारत पर आक्रमण करता है और पूवरेत्तर सीमा में अक्साई चिन की 38 हजार वर्ग किलोमीटर जमीन हड़प लेता है। इसके बावजूद अरुणाचल की 90 हजार वर्ग किलोमीटर जमीन पर दावा जताता रहता है।
चीन ने एक ऑनलाइन मानचित्र सेवा शुरू की है जिसमें भारतीय भू-भाग अरुणाचल और अक्साई चिन को चीन ने अपने हिस्से में दर्शाया है। उसने विश्व मानचित्र में इसे चीनी भाषा मंदारिन में दर्शाते हुए अरुणाचल को दक्षिणी तिब्बत का हिस्सा बताया है। पाकिस्तान में निवेश करके चीन ने मजबूत पैठ बना ली है। वह बांग्लादेश को बरगलाने में लगा है। ऐसा करके वह सार्क देशों का सदस्य बनने की फिराक में है। ऐसा संभव हो जाता है तो उसका दक्षिण एशियाई देशों में दखल और बढ़ जाएगा। इन कूटनीतिक चालों से इस क्षेत्र के छोटे-बड़े देशों में उसका निवेश और व्यापार तो बढ़ेगा ही सामरिक भूमिका भी बढ़ेगी? यह रणनीति वह भारत से मुकाबले के लिए भी रच रहा है।
चीन की यह कूटनीति तमाम राजनीतिक मुद्दों पर साफ दिखाई देती है। चीन बार-बार जो आक्रामकता दिखा रहा है, इसकी पृष्ठभूमि में उसकी बढ़ती ताकत और बेलगाम महत्वाकांक्षा है। यह भारत के लिए ही नहीं दुनिया के लिए चिंता का कारण बनी हुई है। भारत-चीन की सीमा विवादित है, लेकिन इसे सुलझाने में चीन की कोई रुचि नहीं है। वह केवल घुसपैठ कर अपनी सीमा के विस्तार की मंशा पाले हुए है।
चीन भारत से इसलिए नाराज है, क्योंकि उसने जब तिब्बत पर कब्जा किया था, तब भारत ने तिब्बत के धर्मगुरु दलाई लामा के नेतृत्व में तिब्बतियों को भारत में शरण दी थी जबकि चीन की इच्छा है कि भारत दलाई लामा और तिब्बतियों द्वारा तिब्बत की आजादी के लिए लड़ी जा रही लड़ाई की खिलाफत करे? दरअसल भारत ने तिब्बत को लेकर शिथिल व असंमजस की नीति अपनाई है। जब हमने तिब्बतियों को शरणार्थियों के रूप में जगह दी थी, तो तिब्बत को स्वतंत्र देश मानते हुए अंतराष्ट्रीय मंच पर समर्थन की घोषणा करने की जरूरत भी थी?
राममनोहर लोहिया ने संसद में इस आशय का बयान भी दिया था लेकिन नेहरू ऐसा नहीं कर पाए। चीन कूटनीति के स्तर पर भारत को हर जगह मात दे रहा है। पाकिस्तान ने 1963 में पाक अधिकृत कश्मीर का 5180 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र चीन को भेंट कर दिया था। तब से चीन पाक का मददगार हो गया। चीन ने इस क्षेत्र में कुछ सालों के भीतर ही 80 अरब डॉलर का पूंजी निवेश किया है। चीन की पाकिस्तान अधिकृत कश्मीर में शुरू हुई गतिविधियां सामरिक दृष्टि से चीन के लिए फायदेमंद हैं। यहां से वह अरब सागर पहुंचने की जुगाड़ में जुट गया है। इसी क्षेत्र में चीन ने सीधे इस्लामाबाद पहुंचने के लिए काराकोरम सड़क भी तैयार कर लिया है। यही नहीं चीन ने भारत की सीमा पर हाइवे बनाने की राह में आखिरी बाधा भी पार कर ली है।
चीन ने समुद्र तल से 3,750 मीटर की ऊंचाई पर बर्फ से ढके गैलोंग्ला पर्वत पर 33 किलोमीटर लंबी सुरंग बनाकर इस बाधा को दूर कर दिया है। यह सड़क सामरिक नजरिए से बेहद महत्वपूर्ण है, क्योंकि तिब्बत में मोशुओ काउंटी भारत के अरुणाचल का अंतिम छोर है। अभी तक यहां कोई सड़क मार्ग नहीं था। अब चीन इस मार्ग की सुरक्षा के बहाने पीपुल्स लिबरेशन आर्मी को सिविल इंजीनियर के रूप में तैनात करने की कोशिश में है। मसलन वह गिलगित-बलोचिस्तान में सैनिक मौजदूगी के जरिए भारत पर एक और दवाब की रणनीति को अंजाम देने के प्रयास में है। हालांकि कूटनीतिक चाल के तहत मोदी ने जब से बलोचिस्तान का समर्थन किया है, तब से बलूच के विद्रोही लिबरेशन आर्मी और चीन द्वारा पाक में बनाए जा रहे आर्थिक गलियारे का विरोध शुरू हो गया है।
चीन भारत के प्रति लंबे समय से आंखे तरेरे हुए है। इसलिए भारत को भी आंख दिखाने के साथ कूटनीतिक परिवर्तन की जरूरत है। भारत को उन देशों से मधुर व सामरिक संबंध बनाने की जरूरत है, जिनसे चीन के तनावपूर्ण संबंध हैं। ऐसे देशों में अमेरिका, जापान, वियतनाम और म्यांमार हैं। मोदी की ट्रंप से जो ताजा मुलाकात हुई है उससे चीन असहज हुआ है लिहाजा सिक्किम की सीमा पर घुसपैठ को अंजाम देने की हरकतें की हैं।
(लेखक स्वतंत्र टिप्पणीकार हैं )