जैश सरगना मसूद अजहर तो सिर्फ बहाना, उभरते भारत से डरता है चीन
नियमों का हवाला देकर जैश सरगना मसूद अजहर पर प्रतिबंध लगाने के कदम से चीन बचने की कोशिश करता है।
नई दिल्ली [स्पेशल डेस्क] । भारत और चीन के संबंधों को ऐतिहासिक संदर्भ में देखने की जरूरत है। पंचशील सिद्धांत के जरिए दोनों मुल्कों ने एक-दूसरे के मामलों में दखल न देने की नीति पर चलने का फैसला किया। लेकिन 1962 में भारत पर युद्ध थोपे जाने के बाद दोनों देशों के संबंधों में कड़वाहट बढ़ गई। भारत को चीन के साथ-साथ पाकिस्तान की नापाक हरकतों का भी सामना करना पड़ रहा था।
साल 1965 और 1971 की लड़ाई में करारी हार के बाद पाकिस्तान बौखला उठा था। लेकिन इन सबके बीच भारत घरेलू मोर्चों पर सुधार के रास्ते पर था। 1974 में पहले परमाणु परीक्षण के बाद अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भारत की धाक बढ़ गई। भारत की निरंतर प्रगति से चीनी रणनीतिकार हैरान और परेशान थे। वैश्विक स्तर पर अमेरिकी दबाव को चीन झेल नहीं पा रहा था। इसके अलावा भारत की तरक्की भी चीन के लिए खतरे की आहट थी, लिहाजा भारत को शिकस्त देने के लिए पाकिस्तान के नापाक कार्यक्रमों में चीन बढ़चढ़ कर हिस्सा लेने लगा।
चीन-पाक बनाम भारत
भारत में आतंकी गतिविधियों में पाकिस्तान की भूमिका अब दुनिया के सामने स्पष्ट हो चुकी है। अंतरराष्ट्रीय मंचों पर अमेरिका और दूसरे यूरोपीय देश पाकिस्तान को आतंक की धरती बताते हैं। संयुक्त राष्ट्र संघ में करीब-करीब सभी देश ये मानते हैं कि पाकिस्तानी धरती से आतंकवाद का निर्यात हो रहा है। लेकिन चीन जानबूझकर नियमों का हवाला देकर पाकिस्तान को बचाने की कोशिश करता है। संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद की 1267 समिति ने ये माना है कि जैश सरगना मसूद अजहर पर प्रतिबंध लगाया जाना चाहिए। लेकिन चीन उस सच को स्वीकार नहीं करना चाहता है। चीन को लगता है कि अशांत भारत ही उसके विकास की कहानी लिखने में सहायक सिद्ध होगा।
मसूद पर चीन का नरम रुख
आतंकी संगठन जैश-ए-मोहम्मद के प्रमुख मौलाना मसूद अजहर पर संयुक्त राष्ट्र प्रतिबंध लगाए जाने को लेकर चीन ने एक बार फिर रोड़ा अटकाने के संकेत दिए हैं। चीन का कहना है कि आतंकवाद से जुड़ी संयुक्त राष्ट्र समिति में इस मामले पर अब भी असहमति बनी हुई है।अगले महीने संयुक्त राष्ट्र की 1267 समिति अजहर मामले पर पुनर्विचार करने वाली है। 1267 समिति में संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद के सदस्य शामिल होते हैं।
चीनी विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता जेंग शुआंग का कहना है कि जैश-ए-मोहम्मद के नेता पर शिकंजा कसने के लिए पुख्ता साक्ष्यों की जरूरत है और हम अपने रुख के बारे में कई बार बता चुके हैं। हालांकि भारत का कहना है कि अजहर पर प्रतिबंध लगाने के लिए वह पुख्ता सुबूत प्रस्तुत कर चुका है और इस पाकिस्तानी आतंकवादी की गतिविधियों का पूरा ब्योरा दस्तावेजों में दर्ज है।
पठानकोट पर आतंकी हमले में भूमिका के लिए अजहर को संयुक्त राष्ट्र में आतंकवादी घोषित करने की अमेरिका और अन्य देशों की पहल को बीजिंग ने तकनीकि आधार पर रोक दिया था। पिछले साल चीन ने इसी तरह की भारत की पहल में भी रोड़ा अटका दिया था।
भारत का ये है तर्क
भारत के विदेश सचिव एस. जयशंकर ने कहा कि अजहर मामले में जैश खुद ही 1267 के तहत प्रतिबंधित है। इसलिए साक्ष्य तो 1267 समिति में ही निहित हैं। इस मामले में जैश के सभी नापाक कारनामे अच्छी तरह से दस्तावेजों में दर्ज हैं। चीनी अधिकारियों के साथ इस मामले में रणनीतिक वार्ता करने वाले जयशंकर ने अजहर के खिलाफ कार्रवाई के लिए अमेरिका, ब्रिटेन और फ्रांस की ओर से बनाए जा रहे दबाव का हवाला दिया। एस जयशंकर ने कहा कि साक्ष्य देने की जिम्मेदारी भारत की नहीं है। अमेरिका और दूसरे देशों को अगर यकीन नहीं होता तो वे प्रस्ताव लाने की पहल नहीं करते।
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