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कम से कम आज तो कार को कहें ‘ना’, क्यों बर्बाद कर रहे हो जिंदगी

जब तेल संकट शुरू हुआ तो इससे निपटने के कई उपाय निकाले गए। इसमें से एक था एक दिन के लिए सड़कों पर कार न चलाई जाए।

By Kamal VermaEdited By: Published: Fri, 22 Sep 2017 10:37 AM (IST)Updated: Fri, 22 Sep 2017 10:44 AM (IST)
कम से कम आज तो कार को कहें ‘ना’, क्यों  बर्बाद कर रहे हो जिंदगी
कम से कम आज तो कार को कहें ‘ना’, क्यों बर्बाद कर रहे हो जिंदगी

अमलेश प्रसाद

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जब मानवीय गतिविधियों के कारण प्रकृति में समस्या पैदा होती है तो मनुष्य उसका समाधान खोज ही लेता है। जब सब 1970 के दशक में तेल संकट उत्पन्न हुआ था, तब उसका हल कार मुक्त दिवस के रूप में निकाल लिया गया था। कार फ्री दिवस केवल वायु प्रदूषण और ट्रैफिक जाम से जुड़ा हुआ मसला नहीं है, बल्कि यह तेल संकट का भी समाधान है। तेल संकट से ही उबरने के लिए कार फ्री दिवस की शुरुआत हुई थी। 1956 में तेल संकट के समाधान के लिए नीदरलैंड और बेल्जियम ने 25 नवंबर 1956 से 20 जनवरी 1957 तक प्रत्येक रविवार को कार फ्री दिवस मनाया था। 1973 में अरब देशों-इजरायल के बीच युद्ध के समय अरब के तेल निर्यातक देशों ने जापान, कनाडा, ब्रिटेन, अमेरिका और नीदरलैंड के लिए तेल आपूर्ति पर प्रतिबंध लगा दिया था। इस तेल संकट के दौरान जनवरी-फरवरी 1974 में स्विट्जरलैंड ने भी चार रविवार तक कार फ्री दिवस मनाया था। 1958 में न्यूयार्क, 1973 में फ्रांस, 1981 में पूर्वी जर्मनी, अक्टूबर 1988 में पेरिस में कार फ्री दिवस मनाया गया था।

इस तरह धीरे-धीरे इस मुहिम का विस्तार होता गया। स्पेन के टोलेडो शहर में अक्टूबर 1994 में ‘अंतरराष्ट्रीय एक्सेसीबल सिटिज’ विषय पर एक सम्मेलन का आयोजन किया गया था। इसमें अमेरिकी राजनीति विज्ञानी फ्रांसीस इरीक नाइट ब्रीटॉन ने भाषण दिया था। इनके भाषण से ही इस मुहिम का एक आधारभूत ढांचा तैयार हुआ। इसके अगले साल यानी 1995 में वैश्विक स्तर पर इस मुहिम को चलाने के लिए आयरलैंड, ब्रिटेन और फ्रांस में कार मुक्त दिवस मनाया गया। सबसे पहले ब्रिटेन ने 1997 में पर्यावरण परिवहन संघ के तत्वाधान में इस मुहिम का राष्ट्रीय स्तर पर प्रचार-प्रसार शुरू किया। फ्रांस में 1998 में ‘इन टाउन, विदआउट माई कार’ स्लोगन के साथ शुरुआत की गई। वर्ष 2000 में यूरोप आयोग द्वारा इसे पूरे यूरोप में शुरू किया गया। 2000 में ही विश्व कार फ्री नेटवर्क के द्वारा ‘विश्व कार फ्री दिवस’ की घोषणा की गई। लगातार बहसों, अंतरविरोधों और बाधाओं को पार करते हुए 2005 में विश्व के एक हजार से ज्यादा शहरों में कार फ्री दिवस मनाया गया।

इंडोनेशिया की राजधानी जकार्ता में सितंबर 2007 में पहला कार फ्री दिवस मनाया गया था और मई 2012 से प्रत्येक रविवार को यहां कार फ्री दिवस मनाया जाता है। 2012 से ही दुनियाभर में हर साल 22 सितंबर को विश्व कार फ्री दिवस मनाने की शुरुआत हुई। हालांकि अब कार फ्री दिवस का संबंध वायु प्रदूषण, ट्रैफिक जाम, जलवायु परिवर्तन और स्वास्थ्य से भी जोड़ दिया गया है। दुनिया भर में कार फ्री दिवस आयोजित करने वाला संगठन ‘वल्र्ड कार फ्री नेटवर्क’ यूरोपीय संघ से जुड़ा हुआ है। इस संगठन की वेबसाइट पर इस मुहिम का उद्देश्य बताया गया है कि अपने शहरों को पुनर्जीवित और अपने भविष्य को सुरक्षित करना है। यह संगठन अपने मुहिम से जुड़े वास्तु शिल्पकारों, योजनाकारों, स्वास्थ्य कर्मचारियों, शिक्षकों, छात्रों, नीति-निर्माताओं और नागरिकों को संसाधन उपलब्ध कराता है। अभी इस अभियान को प्रदूषित शहरों में ही जोर-शोर से चलाया जा रहा है।

विश्व में सबसे ज्यादा प्रदूषित शहर भारत में हैं। विश्व के सबसे ज्यादा प्रदूषित दस शहरों में तीन भारत के हैं। 2017 के मध्य तक गाजियाबाद, फरीदाबाद और कानपुर सबसे प्रदूषित शहर हैं, लेकिन बेफिक्री का आलम यह है कि वायु प्रदूषण को लेकर भारत में अभी कोई बहुत बड़ी मुहिम नहीं चलाई गई है। कार फ्री दिवस को लेकर भी महज औपचारिकता भर ही निभाया जा रहा है। पहली बार 22 सितंबर 2015 को गुड़गांव में कार फ्री दिवस का आयोजन किया गया था। इसी समय दिल्ली में भी कार फ्री दिवस मनाया गया था। उसके बाद ही ऑड ईवन फॉमरूला लागू किया गया। मगर बेजा वजहों से हासिल कुछ नहीं हुआ। अब दिल्ली के दिल कनॉट प्लेस को कार फ्री करने की बात हो रही है, जबकि दुनिया के सभी प्रमुख शहरों में कार फ्री दिवस त्योहार की तरह मनाया जा रहा है। यूरोपीय संघ ने तो ‘इन टाउन, विदआउट माई कार’ स्लोगन के साथ पूरे यूरोप में इसे मना रहा है।

यह मुहिम भारत के लिए काफी उपयोगी साबित हो सकती है क्योंकि यहां शहरीकरण बिना किसी सुनियोजित योजना के ही हुआ है और जरूरत के मुताबिक सड़कों की लंबाई-चौड़ाई भी घटा-बढ़ा ली जाती है। इसिलिए यहां छोटे शहरों से लेकर महानगरों तक यातायात की समस्या आम बनी रहती है। देश के विकास में परिवहन-तंत्र की बड़ी भूमिका रहती है। जैसे-जैसे परिवहन-तंत्र गतिमान हुआ है, वैसे-वैसे विकास की रफ्तार भी बढ़ी है।  भारत में पहली कार 1897 में आई थी और अब वाहन उत्पादन में यह 2016 में चीन, अमेरिका, जापान और जर्मनी के बाद पांचवें स्थान पर रहा था। विश्व में 2016 में कुल 94,976,569 वाहनों का उत्पादन हुआ था। वहीं भारत में 2016 में कुल 4,488,965 वाहनों का उत्पादन हुआ था। इतने वाहनों को नियंत्रित करने के लिए भारत के पास कोई रोडमैप नहीं है। वाहनों की संख्या के साथ ही सड़क हादसों की संख्या भी बढ़ गई है। भारत में होने वाली मौतों का चौथा सबसे बड़ा कारण सड़क दुर्घटना ही है।

विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार विश्व में प्रति दिन 3,400 लोग सड़क दुर्घटना में मारे जाते हैं। वहीं भारत सरकार के सड़क परिवहन और राज मार्ग मंत्रलय की रिपोर्ट-2016 के अनुसार प्रतिदिन 1,317 सड़क हादसों में 413 लोगों की मृत्यु हो जाती है जबकि अभी (2015 तक) यहां एक हजार की आबादी पर मात्र 167 गाड़ियां ही हैं। एक अन्य रिपोर्ट में यह भी कहा गया है कि सबसे ज्यादा शारीरिक रूप से निशक्त लोग सड़क दुर्घटनाओं में ही होते हैं। कार फ्री दिवस मुहिम से इन हादसों में भी कमी आएगी। वहीं इससे वायु प्रदूषण को भी नियंत्रित किया जा सकता है। बहरहाल बताते चलें कि कार फ्री दिवस को लेकर यूरोप में शोध भी किया गया है, जिसमें कहा गया है कि जब कारों का कम इस्तेमाल होता है, तब ट्रैफिक जाम नहीं होता है। अधिक से अधिक लोग साइकिल से और पैदल आते-जाते हैं। इससे वे अधिक स्वतंत्र गतिविधियों में शामिल हो पाते हैं। इससे पार्किग की समस्या कम होती है। भारत के प्रदूषित शहरों के लिए कार फ्री दिवस मददगार साबित हो सकता है।

(लेखक ई-मैगजीन उत्तरवार्ता के संपादक हैं)


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