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इस दिवाली हम सभी को होने वाला है बिल्‍कुल नया अनुभव, क्या आप हैं तैयार

दिवाली ने दस्‍तक दे दी है। लोग इसको लेकर हर बार की तरह ही तैयारियों में लगे हैं लेकिन इस बार यदि कुछ नया है तो वह ये कि सड़कों पर आतिशबाजी बेचने वालों की दुकानें नहीं हैं।

By Digpal SinghEdited By: Published: Wed, 18 Oct 2017 01:38 PM (IST)Updated: Wed, 18 Oct 2017 03:17 PM (IST)
इस दिवाली हम सभी को होने वाला है बिल्‍कुल नया अनुभव, क्या आप हैं तैयार
इस दिवाली हम सभी को होने वाला है बिल्‍कुल नया अनुभव, क्या आप हैं तैयार

नई दिल्‍ली [स्‍पेशल डेस्‍क]। दिवाली ने घरों में दस्‍तक दे दी है। लोग इसको लेकर हर बार की तरह ही तैयारियों में लगे हैं लेकिन इस बार यदि कुछ नया है तो वह ये कि इस बार सड़कों पर आतिशबाजी बेचने वालों की दुकानें नहीं हैं। लेकिन लोगों के लिए यह बिल्‍कुल नया अनुभव है। कई लोग ऐसे हैं जो गुरुवार का इंतजार कर रहे हैं। वह देखना चाहते हैं कि आखिर क्‍या उस दिन भी ऐसी ही शांति कायम रहेगी जो अब तक रही है।

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कोई धूम-धड़ाका सुनाई नहीं दे रहा है, कोई रॉकेट आसमान में जाता नहीं दिखाई दे रहा और न ही किसी बम का शोर ही सुनाई दे रहा है। लेकिन इस बीच एक और नई चीज भी दिखाई दे रही है। आतिशबाजी की दुकानें न होने की वजह से इस बार उन दुकानदारों की मौज आ रही है जो इससे इतर अपनी दुकान पहले से ही सजाए हुए बैठे हैं।

शालीमार गार्डन में यूसुफ की फर्नीचर की दुकान है। इस दिवाली को वह पहले से अलग मान रहे हैं। उनका कहना है कि पहले उनकी फर्नीचर की दुकानों पर दिवाली वाले दिन इतनी भीड़ नहीं हुआ करती थी, जितनी इस बार है। आतिशबाजी पर बैन लगने के बाद लोगों में कुछ नया खरीदने को लेकर अलग ही उत्‍साह है। यही वजह है कि वह छोटा या बड़ा सामान अपने घर में ले जाने के लिए उतावले दिखाई दे रहे हैं। हालांकि आतिशबाजी पर बैन लगने से वह भी कुछ मायूस जरूर हैं। उनका कहना है कि उनके यहां पर बच्‍चे इस बात को लेकर मायूस हैं कि वह इस बार हमेशा की तरह चखरी, फूलझड़ी और रॉकेट नहीं जला पाएंगे। लेकिन वह देखना चाहते हैं कि आखिर बिन आतिशबाजी दिवाली कैसी लगेगी।

गाजियाबाद में कपड़ों के शोरूम वाले दीवान सिंह की भी कुछ ऐसी ही राय है। हालांकि वह अपने यहां इस बार होने वाली बिक्री से खुश भी दिखाई दे रहे हैं। उनका कहना है कि आतिशबाजी और दिवाली एक-दूसरे की पहचान बन गई हैं। लेकिन यह भी सच है कि इससे होने वाला धुंआ नुकसान भी पहुंचाता है। वह बताते हैं कि कपड़ों को लेकर हर दिवाली पर हर बार बिक्री ठीक होती है, लेकिन इसबार इसमें इजाफा हुआ है। इसकी वजह कहीं न कहीं आतिशबाजी पर प्रतिबंध है, क्‍योंकि लोगों को कुछ खर्च करना है और नया लेना है, इसके विकल्‍प के तौर पर वह दूसरी जगहों पर पैसा खर्च कर रहे हैं। इन सभी के बीच उनके अपने घर में आतिशबाजी का न होना बच्‍चों में थोड़ी मायूसी जरूर ला रहा है।

दिवाली को दीपों का तयोहार कहा जाता है। लेकिन हर बार इन दीपों को बनाने वाले इतने खुश नहीं होते थे, जितना इस बार हैं। दिल्‍ली में जीटीबी अस्‍पताल के पास राजू दीए बनाने का काम काफी समय से करते आ रहे हैं। यहां पर उनकी तरह करीब दस और लोग भी हैं जो इस काम में लगे हैं। यह सभी इस बार काफी खुश हैं। राजू का कहना है कि इस बार उन्‍होंने पहले से लगभग दोगुना दीए बनाए हैं, जो अलग-अलग तरह के हैं। इस बार इनकी बिक्री भी अच्‍छी है। उनका कहना है कि इस बार दीये के लिए लोगों में काफी उत्‍साह दिखाई दे रहा है और शायद लोग इस बार दीयों से अपने घर को सजाना ज्‍यादा पसंद कर रहे हैं। उनकी निगाह में इसकी वजह आतिशबाजी पर लगा बैन हो सकता है। बहरहाल इनके लिए यह दिवाली इनके मनमाफिक होने वाली है।

इंद्रापुरम में तरह-तरह की मूर्तियां बेचने वाले सचिन भी इस बार काफी व्‍यस्‍त हैं। वह पिछले दो सालों से यहां पर मूर्तियां बेच रहे हैं। लेकिन इस बार उनके यहां आने वाले लोगों का तांता ज्‍यादा है। ऐसा ही कुछ हाल भजनपुरा में बर्तन बेचने वाले राघव और फतहपुरी में फूल बेचने वाले इरशाद का भी है। लोगों की भीड़ इतनी है कि इन्‍हें बात करने की भी फुर्सत नहीं मिल पा रही है। इन सभी का मानना है कि आतिशबाजी न होने से लोग कुछ मायूस जरूर हैं, लेकिन अपने घरों को सजाने में उनके उत्‍साह में कोई कमी नहीं आई है। आतिशबाजी न होने की वजह लोग दूसरी जगहों पर ज्‍यादा पैसा खर्च कर रहे है, लिहाजा इनकी मौज आ गई है। फतहपुरी में ही इस्‍लाम हर बार की तरह लक्ष्‍मी गणेश की मूर्तियां बेचते दिखाई दे रहे हैं। वह यहां पर पिछले तीन वर्षों से यह मूर्तियां बेच रहे हैं। वहीं उनके बड़े भाई रमजान उर्फ रज्‍जू फूलों का काम करते हैं। इन दोनों का ही कहना है कि इस पहले के मुकाबले लोगों में ज्‍यादा उत्‍साह है। वह यह भूल जाना चाहते हैं कि आतिशबाजी के बिना दिवाली नहीं हो सकती है।

यह सब तो वो हैं जिन्‍होंने अपनी दुकान सजा रखी है। अब जरा उन बच्‍चों की बात करते हैं जिनके लिए आतिशबाजी ही दिवाली है। आठवीं क्‍लास में पढ़ने वाली जूही इस बात से मायूस है कि इस बार वह फूलझड़ी नहीं छोड़ सकेगी। लिहाजा उसका प्‍लान इस बार अपनी बहन के साथ मिलकर पूरे घर को लाइट और फूलों से सजाने का है। उसका कहना है कि वह इस बार बड़ी सी रंगोली बनाएगी और पूरे घर को सजाएगी। उसकी बड़ी बहन पूर्णिमा का कहना है कि स्‍कूल में भी बिना आतिशबाजी के दिवाली मनाने को कहा गया है, लिहाजा यह देखना दिलचस्‍प होगा कि इस बार की दिवाली होती कैसी है।


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