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क्या महागठबंधन में आने वाले तूफान से ठीक पहले की है ये खामोशी?

बिहार में महागठबंधन में शांति के एक दिन बाद फिर उस वक्त भूचाल आ गया जब सरकार में शामिल दोनों ही सहयोगी दलों ने एक दूसरे के ऊपर हमले किए।

By Rajesh KumarEdited By: Published: Fri, 21 Jul 2017 02:00 PM (IST)Updated: Sat, 22 Jul 2017 08:35 AM (IST)
क्या महागठबंधन में आने वाले तूफान से ठीक पहले की है ये खामोशी?
क्या महागठबंधन में आने वाले तूफान से ठीक पहले की है ये खामोशी?

नई दिल्ली, [स्पेशल डेस्क]। ऐसा लगता है कि पिछले दो दिनों की शांति के बाद महागठबंधन के सहयोगी दलों में जिस तरह से आरोप-प्रत्यारोप का दौर फिर से चल पड़ा है, उसके बाद भले ही सुलह समझौते की लाख तस्वीरें पेश की जा रही हो, लेकिन उसमें सब कुछ ठीक नहीं चल रहा है। ऐसा माना जा रहा था कि बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार और उप-मुख्यमंत्री तेजस्वी यादव के बीच बंद कमरे में हुई बातचीत के बाद विवाद पर विराम लग गया।

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लेकिन, राज्यसभा से मायावती के इस्तीफे के बाद लालू यादव का मायावती को समर्थन का ऐलान करना और नीतीश-तेजस्वी की बीच बंद कमरे में बैठक के कुछ ही घंटों बाद जनता दल यूनाइटेड और राष्ट्रीय जनता दल के बीच गुरुवार को चरम पर बयानबाजी। ऐसे में सवाल उठता है कि क्या महागठबंधन की जमीन भुरभुरि हो चुकी है। क्या महागठबंधन में शामिल दल अपनी सियासी जमीन को बचाने की कोशिश कर रहे हैं? ऐसे तमाम सवाल उठ रहे हैं, जिसके राजनीतिक जानकार अलग-अलग मायने निकाल रहे हैं।

राजद-जेडीयू में फिर ठनी

रेलवे टेंडर घोटाले में सीबीआई की ओर से लालू यादव के बारह ठिकानों पर छापे और केस में तेजस्वी का नाम आने के बाद जिस तरह जेडीयू की तरफ से रुख स्पष्ट करने की मांग की गई, उसके बाद ऐसा लग रहा था कि तेजस्वी पर आरपार हो जाएगा। हालांकि, नीतीश कुमार और तेजस्वी यादव के बीच बंद कमरे में मंगलवार को हुई मुलाकात के बाद कुछ घंटों की शांति दिखी। सोनिया गांधी ने खुद इस मामले में हस्तक्षेप किया तो लगा कि शायद जेडीयू के तेवर पूरे मामले पर ठंडे पड़ गए हैं। लेकिन ठीक इसके विपरीत दोनों ही दलों की तरफ से चले शब्द बाणों ने महागठबंधन की गांठ को और ढीला करके रख दिया है।

तेजस्वी से पूछे गए सवाल का जवाब देने के लिए लालू ने शिवानंद तिवारी को आगे कर दिया। शिवानंद तिवारी ने मुख्यमंत्री पर गंभीर आरोप लगाते हुए कहा कि नीतीश कुर्सी के लिए मुन्ना शुक्ला और सूरजभान जैसे नेताओं के सामने हाथ जोड़ते रहे हैं। उन्हें अपनी साफ-सुथरी छवि की बात नहीं करनी चाहिए। उन्होंने आगे कहा कि नीतीश को भाजपा मौका पड़ने पर समर्थन देने की बात कह चुकी है, जिसका उन्होंने प्रतिवाद नहीं किया है। उनके मौन का मतलब है कि उनका भाजपा से समझौता हो चुका है।

जेडीयू ने किया तेजस्वी पर पलटवार
शिवानंद तिवारी के ऐसे विषैले बयान के बाद दोनों दलों का माहौल फिर तल्ख हो गया। राजद के खिलाफ फिर हमलावर रुख अख्तियार करते हुए जेडीयू प्रवक्ता नीरज कुमार ने कहा कि शिवानंद की राजनीति में कोई औकात नहीं है। वे राजनीति के त्रिशंकु बन गए हैं। नीरज कुमार ने तेजस्वी पर अपने रुख को और कड़ा करते हुए कहा कि जिन पर आरोप लगे हैं उनका जवाब अबतक जेडीयू को नहीं मिला है। आखिर वे कब तक मौन रहेंगे?

क्या गठबंधन ज्यादा दिनों का मेहमान नहीं

बिहार महागठबंधन में जारी रस्साकशी के बीच वरिष्ठ पत्रकार प्रदीप सिंह ने Jagran.com से खास बातचीत में बताया कि अब यह ज्यादा दिनों तक इस स्थिति में चलनेवाला नहीं है। उन्होंने कहा कि अब इस वक्त सबसे दिलचस्प ये है कि बिहार के उप-मुख्यमंत्री तेजस्वी यादव खुद इस्तीफा देते हैं या फिर नीतीश कुमार उन्हें बर्खास्त करते हैं। क्योंकि, राजद ने यह साफ कर दिया है कि वह तेजस्वी मामले पर झुकनेवाले नहीं हैं तो दूसरी तरफ नीतीश कुमार भी तेजस्वी के मामले पर अपना कड़ा तेवर बनाए हुए हैं। ऐसे में यह देखना है कि कौन पहले झुकता है।

प्रदीप सिंह ने बताया कि चूंकि लालू यादव इस वक्त खुद काफी समस्याओं से घिरे हैं और उनके पास विकल्प नहीं हैं, ऊपर मुकदमे अलग हैं। उनकी बेटी मीसा के सीए के खिलाफ ईडी ने चार्जशीट फाइल कर दी है। ऐसे में इस वक्त जो सबसे बड़ा सवाल है वो ये कि कौन पहले गिरफ्तार होता है- मीसा या तेजस्वी। उन्होंने बताया कि तेजस्वी का या तो इस्तीफा होगा या वह कैबिनेट से निकाले जाएंगे। लेकिन, नीतीश की खास बात ये है कि वह कभी भी जल्दबाजी नहीं करते हैं।

अब क्यों हो रही है बयानबाजी
दरअसल, इस बारे में राजनीतिक विश्लेषक शिवाजी सरकार ने Jagran.com से खास बातचीत में बताया कि नीतीश कुमार और लालू यादव दोनों ही महागठबंधन में साथ रहकर अपने आपको असहज महसूस कर रहे हैं। ऐसे में दोनों का तलाक तो तय है, लेकिन ये कब होगा ये परिस्थिति पर निर्भर करेगा। उसकी बड़ी वजह यह है कि कोई भी दल टूट का कारण खुद नहीं बनना चाहता, यही वजह है कि दोनों ही पार्टियां अपने पाले से गेंद दूसरे पाले में फेंक रही हैं।

शिवाजी सरकार का मानना है कि नीतीश का बहुत ज्यादा दिनों तक लालू यादव के साथ रहना मुश्किल है। उसकी वजह है लालू यादव की बेटी, दामाद, बेटा और पत्नी के ऊपर केस का होना। उन्होंने बताया कि नीतीश का पॉलिटिकल कैपिटल ही उनकी इमेज है, ऐसे में वह किसी भी कीमत पर उस पर दाग नहीं लगने देना चाहेंगे।

आगे क्या चाहते हैं नीतीश कुमार

प्रदीप सिंह की अगर मानें तो नीतीश कुमार यह चाहते हैं कि तेजस्वी के मामले पर राजद में असंतोष उभरे। अगर ऐसा होता है तो पार्टी में यह संदेश जाएगा कि लालू यादव अपने बेटे को बचाने के लिए सरकार को खतरे में डाल रहे हैं। और अगर नीतीश कुमार इस संदेश को राजद के अंदर देने में कामयाब हो जाते हैं तो यह उनकी सफल सियासी रणनीति होगी।

मायावती को समर्थन लालू की अस्तित्व बचाने की कोशिश
एक तरफ महागठबंधन में मचा बवाल और दूसरी तरफ मायावती के राज्यसभा से इस्तीफे के ऐलान के बाद लालू यादव का खुलकर उनके समर्थन में आना कई सवाल खड़े कर रहा है। राजनीतिक विश्लेषक लालू यादव की ओर से मायावती के समर्थन में आने के सियासी मायने निकाल रहे हैं। प्रदीप सिंह का यह मानना है कि लालू यादव राजनीति में अपने आपको महत्वपूर्ण बनाए रखने के लिए समय-समय पर ऐसी राजनीतिक चालें चलते रहते हैं।इससे पहले लालू ने रामविलास पासवान को भी राज्यसभा भेजने में मदद की थी।

जबकि, शिवाजी सरकार ने बताया, चूंकि बिहार में कुछ क्षेत्रों में दलित वोट बैंट पर मायावती का असर है, जबकि दूसरी ओर महादलित और अत्यंत पिछड़ा वर्ग नीतीश का वोट बैंक है। ऐसे में लालू यादव यहां पर माया कार्ड खेलकर उन्हें अपने पाले में लाने की कोशिश कर रहे हैं। हालांकि, लालू यादव की यह रणनीति कितनी कारगर होगी, यह कहना मुश्किल है। 

कब तक रहेगी महागठबंधन में शांति
इस वक्त एक बड़ा सवाल है कि आखिर महागठबंधन में जो सियासी भूचाल मचा हुआ था उसके बाद आयी शांति कब तक देखने को मिलेगी। राजनीतिक जानकारों की मानें तो दोनों दलों के बीच बवाल तय है, लेकिन फिलहाल ये शांति उपराष्ट्रपति चुनाव तक रह सकती है।

शिवाजी सरकार की मानें तो दोनों ही दल अभी से अपने सियासी गुणा भाग करने में जुटे हुए है। ऐसे में जहां आनेवाले दिनों में लोगों को महागठबंधन का बदला हुआ स्वरूप देखने को मिल सकता है तो वहीं दूसरी तरफ नीतीश अब इस बात का आकलन भी करने में लगे होंगे कि अगर वह महागठबंधन से हटते हैं तो उस सूरत में भाजपा की ओर से किन शर्तों पर समर्थन मिल सकता है।

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