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महागठबंधन में भारी दरार, क्या राष्ट्रपति चुनाव के बाद गिर जाएगी बिहार सरकार

राजनीतिक जानकारों की राय मानें तो बिहार में महागठबंधन का टूटना तय है। ऐसे में सवाल उठता है कि आखिर कितने दिनों का मेहमान है ये गठबंधन?

By Rajesh KumarEdited By: Published: Wed, 28 Jun 2017 01:36 PM (IST)Updated: Thu, 29 Jun 2017 02:46 PM (IST)
महागठबंधन में भारी दरार, क्या राष्ट्रपति चुनाव के बाद गिर जाएगी बिहार सरकार
महागठबंधन में भारी दरार, क्या राष्ट्रपति चुनाव के बाद गिर जाएगी बिहार सरकार

नई दिल्ली, [स्पेशल डेस्क]। बिहार की महागठबंधन सरकार में पड़ी दरार की खाई दिनोंदिन और चौड़ी होती जा रही है। भले ही महागठबंधन में शामिल दलों के शीर्ष नेतृत्व की तरफ से लगातार एक-दूसरे के खिलाफ बयानबाजी न करने की नसीहत दिए जा रहे हों, लेकिन हकीकत ये है सरकार में शामिल दलों के प्रमुख नेता आज इस गठबंधन के भविष्य को लेकर खुद ही सशंकित दिख रहे हैं। तो वहीं दूसरी तरफ, राजनीतिक जानकारों की राय मानें तो इस गठबंधन का टूटना लगभग तय है। ऐसे में सवाल उठता है कि आखिर कितने दिनों का मेहमान है ये महागठबंधन?

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सोनिया-लालू-नीतीश के अलावा कोई बड़ा नेता नहीं

रामनाथ कोविंद को राष्ट्रपति उम्मीदवार के तौर पर नीतीश कुमार की तरफ से अपना समर्थन देने के बाद जिस तरह राष्ट्रीय जनता दल के नेताओं ने उन्हें आड़े हाथों लेते हुए बयानों की बौछार कर दी, उससे तिलमिलाए जेडीयू को भले ही लालू यादव की तरफ से अपने पार्टी नेताओं को नसीहत देने के बाद राहत मिली हो। लेकिन हकीकत ये है कि अगर अब इससे ज्यादा कुछ भी हुआ तो आर-पार हो जाएगा।

Jagran.com से ख़ास बातचीत में जेडीयू नेता अजय आलोक ने बताया कि फिलहाल पूरे मामले से पटाक्षेप हो गया है। महागठबंधन के शीर्ष नेतृत्व ने अपने पार्टी नेताओं को बयानबाजी न करने की सख्त हिदायत दी है। लेकिन, वह मानते हैं कि राज्य के मुख्यमंत्री और पार्टी के शीर्ष नेतृत्व के खिलाफ ऐसी बयानबाजी ठीक नहीं है। अजय आलोक ने उम्मीद जाहिर करते हुए कहा कि अब आगे कोई ऐसी बयानबाजी नहीं होगी। उन्होंने कहा कि आज बिहार में महागठबंधन में तीन ही बड़े नेता हैं, जिनके बयान का कुछ मतलब है और वो हैं- सोनिया गांधी, नीतीश कुमार और लालू यादव। बाकी किसी के बयान का कोई मतलब नहीं है।

चाहे जितनी भी आफत आए हम पीछे नहीं हटेंगे: नीतीश

जबकि, पिछले कई दिनों से महागठबंधन में जारी रस्साकशी के बाद राजद की तरफ से अपने एक नेता के खिलाफ कड़ी कार्रवाई के बाद खुद मुख्यमंत्री नीतीश कुमार और जेडीयू के अन्य नेताओं ने मीडिया के सामने आकर उन अटकलों पर विराम लगाने की कोशिश की है, जिसमें महागठबंधन के भविष्य को लेकर सवाल उठाए जा रहे थे।

राष्ट्रपति चुनाव में एनडीए उम्मीदवार रामनाथ कोविंद को जदयू के समर्थन देने पर महागठबंधन में मचे सियासी घमासान पर मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने दो टूक लहजे में कहा, हमने जनता की सेवा का कमिटमेंट किया है। चाहे जितनी आफत आए हम पीछे नहीं हटेंगे। बुधवार को 'जमायत ए हिंद' की ओर से अंजुमन इस्लामिया हॉल में आयोजित ईद मिलन समारोह में मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने ये बातें कहीं। उन्होंने कहा कि हम समाज को बदलने की कोशिश कर रहे हैं। यह काम अकेले संभव नहीं है। तो वहीं, केसी त्यागी ने बताया कि बिहार में हमारा गठबंधन काफी मजबूत है। राष्ट्रपति चुनाव पर अलग विचारों का वहां की सरकार पर कोई असर नहीं पड़ेगा। हालांकि, राजनीतिक विश्लेषक उनके इस बयान को संदेह भरी निगाहों से देख रहे हैं।

इस गठबंधन का टूटना तय है

दरअसल, बिहार में महागठबंधन के अंदर जो बवाल मचा है उस पर भले ही कुछ दिनों के लिए विराम लग जाए लेकिन राजनीतिक विश्लेषकों की मानें तो यह एक अवसरवादिता का गठबंधन है, जिसका टूटना करीब तय है। Jagran.com से ख़ास बातचीत में पूर्व सांसद और वरिष्ठ पत्रकार शाहिद सिद्दीकी इस गठबंधन को ज्यादा दिनों का मेहमान नहीं मान रहे हैं।

शाहिद सिद्दीकी ने बताया कि नीतीश कुमार हमेशा से ही भारतीय जनता पार्टी के लिए खिड़की खोल रखी थी जो अब दरवाजे बन गए। उन्होंने कहा कि नीतीश कुमार आज दोनों तरफ से खेल खेल रहे हैं। उन्होंने बताया कि नीतीश कुमार ने 2019 के चुनाव को लेकर भाजपा को साफ संकेत दे दिया है, तो वहीं दूसरी तरफ लालू यादव पर वह डंडा भी चलवा रहे हैं, ताकि लालू उन पर किसी तरह का दबाव न डालें। उसकी वजह है पिछले दिनों लगातार लालू यादव की तरफ से नीतीश पर दबाव डालने की कोशिश। शाहिद सिद्दीकी ने आगे बताया कि आज जिस रास्ते पर यह महागठबंधन चल रहा है उसमें यह ज्यादा दिनों का मेहमान नहीं है। अगर कुछ दिन चलेगा भी तो ठीक उसी तरह जैसे महाराष्ट्र में शिवसेना और भाजपा का गठबंधन चल रहा है, जिसमें एक-दूसरे को खरी-खोटी सुनाएंगे और गठबंधन में भी बने रहेंगे। लेकिन, 2019 से पहले इस महागठबंधन टूट तय है।

गठबंधन न तोड़ने की क्या है नीतीश की मजबूरी
राजनीतिक जानकारों की मानें तो बिहार में महागठबंधन को तोड़ने के पक्ष में फिलहाल न ही लालू यादव हैं और न ही नीतीश कुमार। ये बात अलग है, जहां लालू यादव अपना दबाव नीतीश कुमार पर बनाकर रखना चाहते हैं तो वहीं दूसरी तरफ नीतीश कुमार ऐसे किसी दबाव में आए बिना लालू यादव पर केन्द्र का चाबुक चलवा रहे हैं।

वरिष्ठ राजनीतिक विश्लेषक शिवाजी सरकार ने Jagran.com से खास बातचीत में बताया कि फिलहाल ऐसा लगता नहीं है कि नीतीश कुमार गठबंधन से अलग होने के पक्ष में है। उसकी वजह है नीतीश कुमार के मन में भाजपा के प्रति आशंका। शिवाजी सरकार ने बताया कि अगर इस वक्त महागठबंधन टूटता है तो बिहार की सरकार में शायद ही भाजपा शामिल होने का फैसला करेगी। उसकी वजह है नीतीश कुमार का भाजपा के साथ पिछला सलूक। शिवाजी सरकार ने बताया कि ऐसे में नीतीश की सरकार तो बनेगी लेकिन भाजपा सरकार में शामिल होने की बजाय बाहर से ही अपना समर्थन देने का फैसला करेगी। ऐसी स्थिति में अभी नीतीश नहीं चाहेंगे कि कोई ऐसा बड़ा फैसला फिलहाल लेकर वे इतना बड़ा जोखिम लें।

राजद-जेडीयू में झगड़े की क्या है असली वजह?
दरअसल, पिछले कई दिनों से लगातार महागठबंधन के दो बड़े दल जेडीयू और आरजेडी के बीच जिस बात को लेकर ठनी हुई है उसकी वजह राष्ट्रपति उम्मीदवार पर समर्थन नहीं बल्कि कुछ और बताई जा रही है। राजद के एक बड़े नेता अप्रैल में केंद्रीय मंत्रिमंडल के एक कद्दावर मंत्री से मिले थे। उनकी मंशा यह थी कि सुप्रीम कोर्ट में चल रहे एक पुराने मामले में उनके आलाकमान की मदद की जाए। इस मदद के बदले वह और उनकी पार्टी बिहार में उनकी मदद करेगी। मदद ऐसी होगी कि जदयू के शीर्ष नेता परेशान हों। इसके दो दिन बाद स्वयं आलाकमान भी उसी केंद्रीय मंत्री से उनके घर पर मिले। अनुरोध किया कि उन्हें राहत मिल जाती है तो वे भाजपा के सबसे बड़े विरोधी जदयू नेता की परेशानी बढ़ाने से पीछे नहीं हटेंगे। इसके बाद आका और सिपहसलार दोनों वहां से लौट गए। दिल्ली की बात चलते हुए पटना पहुंच गई है।

राजद ने साधी मामले पर चुप्पी

अब बिहार के राजनीतिक गलियारे में मदद की गुहार लेकर दिल्ली में केंद्रीय मंत्री से राजद नेताओं की मुलाकात की कहानी चर्चा में आ गई है। केस में मदद के लिए केंद्रीय मंत्री से राजद नेताओं की मुलाकात की खबर दिल्ली से ही लीक हुई। इस बारे में जदयू के एक कद्दावर नेता जो राज्य में मंत्री भी हैं वह केंद्रीय मंत्री से जानकारी भी ले चुके हैं। जदयू के एक वरिष्ठ नेता ने माना कि उन्हें यह कहानी पहले से पता है और पीठ में छुरा मारने वाली इस प्रवृत्ति को लेकर वे लोग व्यथित हैं। इस बारे में राजद की ओर से कोई कुछ बोलने को तैयार नहीं है। राजद के प्रदेश अध्यक्ष रामचंद्र पूर्वे ने कहा कि मुझे इस संबंध में कुछ नहीं कहना।

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