जागरण संस्कारशाला: पौष्टिक आहार से मिली जीत
बच्चों का भोजन तैयार करने में अपनी रचनात्मकता दिखाएं। खूबसूरत तरीके से परोसा गया अलग-अलग तरीके का पौष्टिक भोजन न केवल उनकी भूख बढ़ाएगा, बल्कि भोजन के प्रति उनकी रुचि भी जगाएगा।
नई दिल्ली, अंजू सिंह। आज फिर आपने सोयाबीन की सब्जी लंच में पैक की है। मैं टिफिन नहीं ले जाऊंगा। आपने पिछले सप्ताह ही तो इसे खिलाया था। आप मुझे कुछ पैसे दे दीजिए। मैं कैंटीन से बर्गर लेकर खा लूंगा।’ रौनक ने चिढ़ कर मम्मा से कहा। ‘नहीं। मैंने टिफिन में जो दिया है वह चुपचाप खा लेना।’ मम्मा ने कहा। ‘एक दिन बर्गर खा लूंगा, तो क्या हो जाएगा मम्मा?’ रौनक ने चिल्लाते हुए पूछा। ‘तुम्हारी आदत गंदी हो जाएगी। बर्गर, पिज्जा खाने से तुम बहुत मोटे हो जाओगे और ताकत न के बराबर रह जाएगी।’ मम्मा ने जोर देकर कहा। ‘ खाने में तो बर्गर और पिज्जा बहुत स्वादिष्ट होते हैं।’ रौनक बोल पड़ा। ‘तुम स्वास्थ्य के लिए फायदेमंद चीजें खाने और दूध पीने में नखरा करते हो। बेटा ध्यान रखो, हेल्दी फूड्स खाने के बहुत फायदे हैं।’ बिना कुछ बोले रौनक ने चुपचाप दूध पी लिया और टिफिन को बैग में रखकर स्कूल के लिए निकल गया।
रौनक को घर की बनी और पौष्टिक चीजें अच्छी नहीं लगती थीं। वह हमेशा जंक फूड खाना चाहता था, लेकिन उसकी मम्मा ने उसके लिए एक डाइट चार्ट बनाई थी, जिसका वे रौनक का टिफिन पैक करने में हर दिन अनुसरण करती थीं। सोमवार को इडली, मंगलवार को ऑमलेट व रोटी, बुधवार को सोयाबीन-चावल, गुरुवार को पोहा और कटलेट, शुक्रवार को बींस और अंकुरित अनाज। शनिवार को सूजी का हलवा दिया करतीं। कभी-कभी हलवा के स्थान पर उपमा देतीं। स्कूल से वापस आने के बाद भी वे रौनक को संतुलित भोजन देती थीं, जिसमें दाल, हरी सब्जी, सलाद शामिल होते थे। रात को खाने के बाद एक ग्लास दूध भी पीने को जरूर देती थीं।
स्कूल में रौनक के दोस्त अक्सर कैंटीन में जंक फूड खाते। वे लंच में भी तरह-तरह के जंक फूड ही लाते थे, जिसे देखकर रौनक की भी उन्हें खाने की इच्छा होने लगती थी। इसलिए उसे रोज-रोज पौष्टिक भोजन खाने का जरा भी मन नहीं करता था। आज उसने तय कर लिया था कि वह अपना टिफिन डस्टबिन में फेंक देगा और किसी से पैसे उधार लेकर बर्गर खरीदकर खा लेगा। दूसरी पीरियड के बाद अचानक पीटी टीचर अपने साथ एक डॉक्टर और एक जिम टे्रनर को भी साथ लेकर आ गए। आते ही उन्होंने कहा कि पूरी क्लास को खेल के मैदान में आना होगा। वहां सबकी शारीरिक जांच की जाएगी। छात्रों का वजन और लंबाई मापी जाएगी। इसके बाद सभी को मैदान में दौड़ाकर उनकी सहनशक्ति देखी जाएगी। मैदान में पहले से ही बहुत सारे बच्चे अपना अलग-अलग टेस्ट दे रहे थे।
दरअसल, एक स्पोट्र्स कंपनी अलग-अलग स्कूलों में अलग-अलग उम्र के बच्चों की शारीरिक जांच कर रही थी, जिन्हें वे स्पोट्र्स की ट्रेनिंग देने वाले थे। इसमें हर बच्चे को उसकी रुचि के आधार पर ट्रेनिंग दी जाने वाली थी। बस बच्चे का शारीरिक रूप से तंदुरुस्त होना जरूरी था। रौनक को भी हॉकी खेलना बहुत अच्छा लगता था। उसने भी दूसरे बच्चों की तरह अपना टेस्ट दिया। उसके भी वजन और लंबाई की जांच की गई। उसे भी पूरे मैदान का चक्कर लगाने को कहा गया और टाइम रिकॉर्ड किया गया। इन सारी प्रक्रियाओं को पूरा करने के बाद रौनक को बहुत भूख लग गई। उसने लंच ब्रेक में बर्गर लेने का प्लान कैंसिल कर दिया। उसने फटाफट अपना टिफिन खोला और खाने लगा। आज उसे सोयाबीन और चावल बहुत स्वादिष्ट लग रहे थ् पांच मिनट में ही उसका टिफि न खत्म हो गया। छठे पीरियड में पीटी सर, डॉक्टर और ट्रेनर लिस्ट लेकर उनकी कक्षा में आए। इस बार प्रिंसिपल सर भी साथ थे। प्रिंसिपल सर ने एक लिस्ट को देखते हुए कहा, ‘बच्चों हमें आप पर गर्व है। आशा है कि आगे आप जंक फूड की बजाय पौष्टिक भोजन को प्राथमिकता देंगे। अभी-अभी जो बच्चों की शारीरिक जांच परीक्षा पूरी हुई है, उसमें से सिर्फ दो बच्चे ही उत्तीर्ण हुए हैं।
इनमें से दसवीं कक्षा के प्रवीण कालरा और चौथी कक्षा के रौनक ढींगरा हैं। ये दोनों संतुलित और पौष्टिक भोजन लेने के कारण शारीरिक रूप से मजबूत हैं। इन दोनों को एक ख्यातिप्राप्त स्पोट्र्स कंपनी उनकी रुचि के खेलों में प्रशिक्षण देगी। पूरी क्लास में तालियों की गूंज सुनाई देने लगी। इससे रौनक को बेहद खुशी हो रही थी। आज उसे मम्मा पर गर्व हो रहा था, जो रोज उससे संतुलित और पौष्टिक आहार के चार्ट का कड़ाई से पालन कराती थी।
मनोचिकित्सक की राय
मनोचिकित्सक सोनिया पुआर बताया कि जब सब लोग घर हों, तो पूरा परिवार एक साथ बैठकर खाना खाए। बच्चों को कभी-भी टीवी देखते हुए खाने न दें। खाते समय ध्यान बंटने से वे जान ही नहीं पाएंगे कि वे क्या खा रहे हैं और क्या नहीं? अगर आप स्वयं नाश्ते या भोजन के स्थान पर जंक फूड खाते हैं या समय पर नहीं खाते हैं, तो बच्चे भी ऐसा ही करेंगे। डांटने या समझाने पर उनका सीधा जवाब होगा-आप भी तो ऐसा ही करते हैं। इसलिए स्वयं में भी समय पर और पौष्टिक भोजन लेने की आदत विकसित करें। यदि आप पोषण के नाम पर उन्हें जबर्दस्ती पूरा प्लेट खाने को कहते हैं, तो यह भी सही नहीं है। बच्चों से हमेशा कहें कि जितना वे भोजन लेना चाहते हैं, खुद परोसें। बच्चों का भोजन तैयार करने में अपनी रचनात्मकता दिखाएं। खूबसूरत तरीके से परोसा गया अलग-अलग तरीके का पौष्टिक भोजन न केवल उनकी भूख बढ़ाएगा, बल्कि भोजन के प्रति उनकी रुचि भी जगाएगा।
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