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खुफिया जानकारी के लिए भारतीय अधिकारियों को लड़कियों का लालच देता था ISI

पुलिस सूत्रों का दावा है कि सेना, बीएसएफ और पैरामिलिट्री के अधिकारियों एवं जवानों को हनी ट्रैप में फंसाकर आइएसआइ एजेंट उनसे गोपनीय जानकारी एवं दस्तावेज लेते थे।

By Manish NegiEdited By: Published: Thu, 27 Oct 2016 10:12 PM (IST)Updated: Fri, 28 Oct 2016 03:52 AM (IST)
खुफिया जानकारी के लिए भारतीय अधिकारियों को लड़कियों का लालच देता था ISI

नई दिल्ली, (जागरण संवाददाता)। सेना, बीएसएफ और पैरामिलिट्री के अधिकारियों एवं जवानों को हनी ट्रैप (लड़की के माध्यम से जाल में फंसाना) में फंसाकर आइएसआइ एजेंट उनसे गोपनीय जानकारी एवं दस्तावेज लेते थे। इसके लिए फेसबुक, ट्विटर और वाट्सएप का सहारा लेते थे।

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दिल्ली एवं राजस्थान में उनके ठहरने की व्यवस्था व अन्य माध्यमों से भी जाल में फंसाते थे। गिरोह में कुछ लड़कियां भी हैं, जो सोशल मीडिया के जरिए अफसरों से नजदीकी बढ़ाकर अहम जानकारी ले लेती हैं। कई बार अफसरों को हनी ट्रैप में फंसाकर उनका वीडियो भी बना लिया जाता था, बाद में ब्लैकमेल कर उनसे गोपनीय जानकारी ली जाती थी।

पुलिस सूत्रों की माने तो आइएसआइ एजेंट शोएब इसकी पूरी योजना तैयार करता था। उसके सैन्य, बीएसएफ, पैरामिलिट्री अधिकारियों-जवानों से संपर्क थे। शोएब को जब यह पता चलता था कोई अधिकारी दिल्ली सरकारी काम से जा रहा है तो वह उसे अपने प्रभाव में लेता था और कहता था कि वह उनके रुकने का इंतजाम करा देगा। होटल की व्यवस्था भी शोएब करता था और अधिकारियों को हनी ट्रैप में फंसाता था।

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पुलिस सूत्रों ने कई अधिकारियों की पहचान भी की है जो हनी ट्रैप का शिकार हुए थे। इसके अलावा फेसबुक, ट्विटर एवं वाट्सएप पर फर्जी प्रोफाइल बनाकर गिरोह के सदस्य अफसरों-जवानों से दोस्ती करते थे और हनी ट्रैप का शिकार बनाकर गोपनीय दस्तावेज ले लेते थे।

पाकिस्तानी वीजा बनवाने के लिए आने वाली महिलाओं का भी आइएसआइ जासूस हनी ट्रैप के लिए इस्तेमाल करते थे। पुलिस के अनुसार इस पूरे प्रकरण में महमूद अख्तर भी शामिल था। वीजा जल्दी दिलाने की बात करके पहले तो ये उसका शारीरिक शोषण करते थे और फिर उसका वीडियो बनाकर उसका हनी ट्रैप में भी इस्तेमाल करते थे। पुलिस को कई ऐसे मामले की जानकारी मिली है।

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वाट्सएप पर करते थे बात

महमूद अख्तर, मौलाना रमजान, सुभाष एवं शोएब एकदूसरे से संपर्क करने के लिए वाट्सएप का इस्तेमाल करते थे। पुलिस एवं सुरक्षा एजेंसियों के सर्विलांस से बचने के लिए वाट्सएप का सहारा लेते थे। कहां और कब मिलना है, यह जानकारी भी वाट्सएप पर ही देते थे।

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