जांच एजेंसियों की आपसी कलह का लाभ उठा रहे कॉरपोरेट घराने
भारत सरकार की विभिन्न जांच एजेंसियों के बीच आपसी कलह और प्रतिस्पर्धा का सबसे ज्यादा फायदा कॉरपोरेट घराने उठा रहे है। सीबीआइ, आयकर विभाग और प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) के साथ-साथ नियंत्रक और महालेखा परीक्षक (कैग) का कार्यालय भी जांच एजेंसियों की आपसी प्रतिस्पर्धा से अछूता नहीं है।
नई दिल्ली [अवनीश कुमार मिश्र]। भारत सरकार की विभिन्न जांच एजेंसियों के बीच आपसी कलह और प्रतिस्पर्धा का सबसे ज्यादा फायदा कॉरपोरेट घराने उठा रहे है। सीबीआइ, आयकर विभाग और प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) के साथ-साथ नियंत्रक और महालेखा परीक्षक (कैग) का कार्यालय भी जांच एजेंसियों की आपसी प्रतिस्पर्धा से अछूता नहीं है।
मांस निर्यातक व एएमक्यू एग्रो के मालिक मोईन कुरेशी से संबंधित आयकर विभाग की फाइल को पाने के लिए सीबीआइ का हर संभव प्रयास इसी का नतीजा है। आयकर विभाग द्वारा सीबीआइ के साथ जानकारी साझा नहीं करने का नीतिगत फैसला इसी स्पर्धा का परिणाम है। खास बात यह है कि कुरेशी को सीबीआइ निदेशक रंजीत सिन्हा ने अपना पारिवारिक मित्र करार दिया है। कुरेशी की फाइल आयकर अन्वेषण महानिदेशालय, दिल्ली में रखी गई है। जांच की जिम्मेदारी संभाल रहीं आयकर आयुक्त के लिए जांच के साथ-साथ फाइल को सुरक्षित रखने की भी चुनौती है। इससे पूर्व सीबीआइ देश के कई आयकर दफ्तरों पर छापा मारकर कॉरपोरेट सेक्टर से जुड़ी फाइलें जब्त कर चुकी है। इसमें नोएडा स्थित एक गुटका कारखाना और कानपुर स्थित एक बड़े सराफा व्यापारी से संबंधित फाइल खास तौर पर उल्लेखनीय है। नियमत: आयकर विभाग के दफ्तर पर छापा मारने से पूर्व सीबीआइ को राजस्व सचिव से अनुमति लेनी चाहिए। सीबीआइ को आयकर विभाग की फाइलें जब्त करने का अधिकार भी नहीं है, मगर इस नियम का पालन शायद ही कभी किया जाता है।
एजेंसियों के बीच प्रतिस्पर्धा का आलम यह है कि आयकर विभाग ने भी मुंबई सहित देश के कई प्रमुख शहरों में सीबीआइ अधिकारियों के यहां छापा मारकर फाइलें जब्त की हैं। कॉरपोरेट की आड़ में खेले जा रहे इस गंदे खेल का ही परिणाम था कि मुंबई के आयकर आयुक्त आरपी मीणा को महज ढाई लाख रुपये के रिश्वत के आरोप में एंटी करप्शन ब्यूरो ने गिरफ्तार कर लिया था। मीणा एक नामी फिल्म प्रोडक्शन कंपनी द्वारा आयकर चोरी का मामला देख रहे थे।
प्रवर्तन निदेशालय और सीबीआइ के बीच कलह का आलम यह है कि जिन मामलों में ईडी को आर्थिक अपराध के पुख्ता सबूत मिलते हैं, उन्हीं मामलों में सीबीआइ को कुछ भी गलत नहीं दिखता। जिन मामलों में सीबीआइ ने छापा मारकर कार्रवाई शुरू की है और मामला ईडी को रेफर किया गया, वैसे मामलों में प्रवर्तन निदेशालय सीबीआइ से स्वतंत्र होकर कोई कार्रवाई नहीं कर सकता।
उत्तर प्रदेश राज्य औद्योगिक विकास निगम (यूपीएसआइडीसी) के मुख्य अभियंता अरुण कुमार मिश्रा के मामले की जांच कर रहे संयुक्त निदेशक अनिल रामटेक की की टीम लंबे समय तक मिश्रा के खिलाफ सीबीआइ से सहयोग नहीं मिलने के कारण कोई कार्रवाई नहीं कर पा रही थी।
सीबीआइ कैग के कार्यालय में छापा मारकर फाइल जब्त करने की कोशिश करती रही है। इसके लिए आमतौर से किसी भ्रष्ट अधिकारी को पकड़ने का बहाना बनाया जाता है। इस संबंध में कैग के तिरुअनंतपुरम स्थित दफ्तर में सीबीआइ की घुसपैठ का मामला खास है। तत्कालीन कैग विनोद राय ने इस मामले को काफी गंभीरता से लेते हुए सीबीआइ की खिंचाई की थी।