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पार्टियों के चंदे व खर्च की सीमा भी तय हो : नसीम जैदी

हर योग्य मतदाता को वोटिंग का हक दिलवाने के इरादे के साथ नसीम जैदी ने देश के मुख्य चुनाव आयुक्त (सीईसी) का पद संभाला है।

By Sumit KumarEdited By: Published: Fri, 01 May 2015 11:54 AM (IST)Updated: Fri, 01 May 2015 11:59 AM (IST)
पार्टियों के चंदे व खर्च की सीमा भी तय हो : नसीम जैदी

नई दिल्ली। हर योग्य मतदाता को वोटिंग का हक दिलवाने के इरादे के साथ नसीम जैदी ने देश के मुख्य चुनाव आयुक्त (सीईसी) का पद संभाला है। बिहार में मतदान के प्रतिशत सुधारने के साथ ही बाहुबल और धनबल के असर को कम करना उनके सामने पहली चुनौती होगी। उन्होंने कहा है कि चुनाव के दौरान भड़काऊ बयान देने वालों पर सख्ती करने से हिचकिचाएंगे नहीं। हमारे विशेष संवाददाता मुकेश केजरीवाल के साथ उनकी बातचीत के प्रमुख अंश-

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मुख्य चुनाव आयुक्त के तौर पर आपकी प्राथमिकताएं क्या रहेंगी और इस भूमिका में आप अपने लिए मुख्य चुनौतियां क्या देखते हैं?
हमें समाज के सभी वर्गो को शामिल करते हुए भारी तादाद में मतदाताओं की भागीदारी तय करनी है। आने वाले चुनावों को स्वतंत्र, निष्पक्ष, शांतिपूर्ण और पारदर्शी बनाने के लिए त्रुटि रहित और प्रामाणिक मतदाता सूची सबसे जरूरी होगी। इनमें अभी भी त्रुटियां हैं और दोहरे नाम हैं। सभी योग्य वोटरों का पंजीकरण कराना भी एक बड़ा काम है। मतदान कम होना या स्थिर रहना भी एक चुनौती है। एक तीसरी बड़ी चुनौती धन के दुरूपयोग की है।

मतदाता सूची को सौ फीसदी त्रुटिरहित करने के मौजूदा अभियान को ले कर आपकी क्या उम्मीदें हैं?
हमारी कोशिश है कि शत-प्रतिशत वोटरों को मतदाता पहचान पत्र उपलब्ध हो और वोटर की संख्या का जनगणना के आकड़ों से मिलान हो सके। इसके लिए बीते मार्च से हमारा अभियान शुरू हुआ है। इसमें आधार नंबर से लिंकिंग कर दोहरे नामों को हटाना और योग्य लोगों का नाम शामिल करना जैसे काम चालू हैं। हमें पूरी उम्मीद है कि अगले साल जनवरी तक मतदाता सूची में दोहरे नाम नहीं होंगे तथा गलतियां भी ठीक होंगी।

चुनावों के दौरान सभी छोटे-बड़े दलों के नेता बेहद विवादास्पद बयान देते हैं। बार-बार की चेतावनी के बावजूद आयोग इस पर प्रभावशाली रोक लगाने में सफल नहीं हो पाया है। ऐसा क्यों?
यह कहना सही नहीं होगा कि आयोग ऐसे लोगों के खिलाफ कार्रवाई में सफल नहीं हुआ। ऐसे मामलों में अन्य कानूनों के साथ ही मॉडल कोड के तहत भी कार्रवाई की जाती है। पिछले चुनावों में आयोग ने कुछ व्यक्तियों के चुनाव अभियान में भाग लेने पर पाबंदी भी लगाई थी। आयोग ने पाया कि इस नई कार्रवाई से पूरा चुनाव शांति पूर्वक हुआ। आने वाले चुनावों में किसी भी व्यक्ति के चुनाव प्रक्रिया दूषित करने वाले बयान को सहन नहीं किया जाएगा।

एक तरफ चुनाव खर्च की सीमा बढ़ाने की मांग होती है, वहीं अधिकांश उम्मीदवार सीमा से बहुत कम खर्च दिखाते हैं। इसमें बदलाव को लेकर क्या राय है?
बीते लोक सभा चुनाव के दौरान 80 फीसदी विजेता उम्मीवदवारों ने सीमा के 50 से 80 फीसदी के बीच का व्यय ही दिखाया। हमारा मानना है कि खर्च सीमा बढ़ाने के बाद भी उम्मीदवार सही खर्च नहीं दिखाएंगे, क्योंकि वह ब्लैक मनी है जो शराब और उपहारों पर खर्च की जाती है। इसी तरह पार्टियों के चंदे और खर्चे की भी कोई सीमा निर्धारित नहीं है जबकि इसका लाभ उम्मीदवारों को ही मिलता है। इस पर भी सम्यक बहस की जरूरत है।

राजनीतिक दल चुनाव खर्च का ब्योरा जमा करने में काफी देरी करते हैं। आयोग इन पर सख्ती क्यों नहीं कर रहा?
आयोग की ओर से लगातार कोशिश के बाद स्थिति में काफी सुधार आया है। लोक सभा चुनाव के लिए पीपुल्स पार्टी ऑफ अरूणाचल प्रदेश तथा नेशनल पीपुल्स पार्टी को छोड़ कर सभी ने अपने विवरण प्रस्तुत कर दिए हैं। पारदर्शिता के लिए खर्च की स्टेटस रिपोर्ट और स्कैन की गई प्रतियों को वेबसाइट पर डाला जाने लगा है।

इंटरनेट के बढ़ते उपयोग को देख क्या निकट भविष्य में आनलाइन वोटिंग की इजाजत मिल सकती है?
इंटरनेट वोटिंग अधिकांश देशों में प्राथमिकता नहीं है और यहां तक कि उन देशों में भी नहीं जहां यह प्रणाली प्रारंभ की गई है। अधिकांश दलों ने भी इस बारे में गोपनीयता और सुरक्षा को ले कर चिंता व्यक्त की हैं। हालांकि भविष्यो में ऐसा समय आ सकता है जब यह पूरी तरह से त्रुटिमुक्त हो जाए और स्वतंत्र एवं निष्पक्ष निर्वाचन का उद्देश्य पूरा कर सके। ऐसे में इस विकल्प पर विचार किया जा सकता है।

खास कर शहरी इलाकों और संपन्न वर्ग में मतदान को ले कर उदासीनता को देखते हुए क्या अनिवार्य वोटिंग मुमकिन है?
अनिवार्य वोट भारत जैसे देश में लागू करना बहुत कठिन होगा। वैसे भी अनिवार्यता अपने आप में लोकतंत्र के भावना के विपरीत है। आयोग का मत है कि अनिवार्य वोटिंग के स्थान पर वोटर शिक्षा के माध्यम से वोटरों की सहभागिता बढ़ाना श्रेयकर होगा।

बिहार और प. बंगाल विधानसभा चुनाव में किस तरह की चुनौतियां होंगी?
इस वर्ष बिहार पहला राज्य होगा, जहां चुनाव होने हैं। बिहार में स्वतंत्र एवं निष्पक्ष चुनाव सुनिश्चित करने के लिए पर्याप्त सुरक्षा व्यवस्था करनी होगी। साथ ही अभी तक रहे कम मतदाता प्रतिशत को देखते हुए अधिक मतदाता सहभागिता तय करनी होगी। धनबल, बाहुबल और पेड न्यूज की बुराइयों को नियंत्रित करना होगा। कुछ राज्यों में हिंसा तथा आतंकवाद की समस्या का सामना करने के लिए केंद्रीय बलों की सदैव आवश्यकता होती है।


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