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जल्‍द ही इतिहास के पन्‍नों तक सिमट कर रह जाएगा आईएनएस विक्रांत

देश का पहला विमानवाहक युद्धपोत आइएनएस विक्रांत जल्द ही इतिहास के पन्नों में सिमट जाएगा। लंबी कानूनी प्रक्रिया के बाद आखिरकार इसे तोड़ने की कवायद शुरू हो गई है। पाकिस्तान के साथ 1971 के युद्ध में महत्वपूर्ण भूमिका निभाने वाले इस युद्धपोत को तोड़ने में सात-आठ महीने लगने की संभावना

By Abhishake PandeyEdited By: Published: Sat, 22 Nov 2014 11:30 AM (IST)Updated: Sat, 22 Nov 2014 11:47 AM (IST)
जल्‍द ही इतिहास के पन्‍नों तक सिमट कर रह जाएगा आईएनएस विक्रांत

मुंबई। देश का पहला विमानवाहक युद्धपोत आइएनएस विक्रांत जल्द ही इतिहास के पन्नों में सिमट जाएगा। लंबी कानूनी प्रक्रिया के बाद आखिरकार इसे तोड़ने की कवायद शुरू हो गई है। पाकिस्तान के साथ 1971 के युद्ध में महत्वपूर्ण भूमिका निभाने वाले इस युद्धपोत को तोड़ने में सात-आठ महीने लगने की संभावना जताई गई है।

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नौसेना में अपना सेवाकाल पूरा कर चुके आइएनएस विक्रांत को मुंबई की कंपनी आइबी कमर्शियल लिमिटेड ने ऑनलाइन नीलामी के जरिये करीब 60 करोड़ रुपये में खरीदा है। कंपनी के मालिक अब्दुल करीम जाका ने शुक्रवार को कहा कि युद्धपोत को तोड़ने का काम दक्षिण मुंबई के दारुकाना यार्ड में शुरू किया जा चुका है। तमाम कानूनी व तकनीकी औपचारिकताएं पूरी करने और संबंधित एजेंसियों से मंजूरी मिलने के बाद करीब 200 लोगों की टीम युद्धपोत को तोड़ने के काम में लगाई गई है।

सुप्रीम कोर्ट तक गया मामला

वर्ष 1997 में नौसेना से रिटायर हुए आइएनएस विक्रांत का मामला सुप्रीम कोर्ट तक गया था। शीर्ष अदालत के निर्देश पर ही इसे नौसेना के बंदरगाह से हटाया गया। सुप्रीम कोर्ट से ऐतिहासिक पोत को संग्रहालय में तब्दील करने की मांग की गई थी। सरकार ने इसे खर्चीला काम बता हाथ खड़े कर दिए थे।

1961 में नौसेना में हुआ था शामिल

विक्रांत का नाम पहले एचएम हरक्युलिस था। वर्ष 1943 में बनकर तैयार हुए इस युद्धपोत को 1945 में ब्रिटिश रायल नेवी में शामिल किया गया था। भारत ने 1957 में ब्रिटेन से इसे खरीदा। 1961 में इसे नौसेना में शामिल किया गया।

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