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एनएसजी पर भारत का दांव, कुडनकुलम के बदले में चीन को मनाए रूस

48 देशों के एनएसजी में रूस भारत का समर्थक है, किंतु चीन का घनिष्ठ सहयोगी होने के नाते रूस चीन पर पर्याप्त दबाव नहीं बना पा रहा है।

By Kamal VermaEdited By: Published: Tue, 23 May 2017 01:01 PM (IST)Updated: Tue, 23 May 2017 04:36 PM (IST)
एनएसजी पर भारत का दांव, कुडनकुलम के बदले में चीन को मनाए रूस
एनएसजी पर भारत का दांव, कुडनकुलम के बदले में चीन को मनाए रूस

प्रमोद भार्गव

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भारत के समक्ष परमाणु आपूर्तिकर्ता समूह (एनएसजी) की सदस्यता हासिल करने का एक और अवसर अगले माह आ रहा है। इसे लेकर भारत ने रूस से संकेतों में ही कहा है कि वह चीन पर पर्याप्त दबाव डालते हुए भारत को एनएसजी की सदस्यता हासिल कराने में मददगार बने। इसके बदले में कुडनकुलम परमाणु संयंत्र की दो नई इकाइयों का सौदा भारत से कर ले। अन्यथा भारत को विवश हो कर परमाणु ऊर्जा कार्यक्रम के लिए विदेशी सहयोग को दरकिनार करके स्वदेशी तकनीक विकसित करनी होगी।

हालांकि 48 देशों के इस समूह में रूस भारत का समर्थक है, किंतु चीन का घनिष्ठ सहयोगी होने के नाते रूस चीन पर पर्याप्त दबाव नहीं बना पा रहा है। चीन की वन बेल्ट-वन रोड (ओबीओआर) परियोजना में भी रूस महत्वपूर्ण भागीदार है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के तीन साल के कार्यकाल में यह पहला अवसर है, जब भारत ने अपना हित साधने के लिए रूस जैसे ताकतवर देश को इशारों में चेताया है।

पिछले साल जून में दक्षिण कोरिया की राजधानी सियोल में हुई बैठक में भारत को इस समूह में शामिल करने पर गंभीरता से विचार हुआ था, लेकिन चीन ने यह कहते हुए रोड़ा अटका दिया था कि भारत ने अब तक एनपीटी पर हस्ताक्षर नहीं किए हैं। दरअसल चीन की मंशा है कि भारत के साथ उसके मित्र देश पाकिस्तान और ईरान को भी यह सदस्यता मिले। इन दोनों देशों ने भी एनपीटी पर दस्तखत नहीं किए हैं। इसीलिए भारत को अपनी कूटनीतिक दिखानी पड़ी है। एक जून से नरेंद्र मोदी की रूस यात्र के दौरान वहां के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन के साथ होने वाली बातचीत में यह मुद्दा मजबूती से उठना तय है।

रूस के जरिये चीन को साधने के लिए विदेश मंत्रलय ने हाल ही में अपनी रणनीति को ठोस व व्यावहारिक रूप दिया है। मोदी की रूस यात्र का एजेंडा तय करने के लिए विदेश मंत्री सुषमा स्वराज और भारत यात्र पर आए रूस के उप प्रधानमंत्री दमित्री रोगोजिन के बीच मुलाकत में एनएसजी पर चीन के रुख और कुडनकुलम परमाणु बिजली परियोजना की इकाई पांच और छह पर समझौते के परिप्रेक्ष्य में बातचीत हुई, लेकिन रोगोजिन ने कोई ठोस आश्वासन नहीं दिया।

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रूस के सहयोग से तमिलनाडु में स्थापित इस परियोजना की दो इकाइयों से बिजली का उत्पादन शुरू हो गया है। दो निर्माणाधीन हैं और दो के लिए रूस से अनुबंध होना है। इसलिए भारत ने अवसर का लाभ उठाने की दृष्टि से रूस के साथ यह दांव खेला है। भारत को उम्मीद है कि यदि रूस पर्याप्त दबाव बनाता है तो चीन के रुख में परिवर्तन आ सकता है। हालांकि चीन ने स्पष्ट किया है कि एनएसजी की सदस्यता के लिए भारत की कोशिशों के प्रति उसके रुख में कोई बदलाव नहीं आया है।

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यदि भारत को एनएसजी की सदस्यता मिल जाती है तो भारत की ऊर्जा संबंधी जरूरतें तो पूरी होंगी ही, साथ ही वह परमाणु शक्ति संपन्न देश कहलाने लग जाएगा। चीन के अपने स्वार्थ हैं। चीन अपने परमाणु कारोबार को बड़े स्तर पर फैलाना चाहता है। पिछले दो दशक में वह अनेक परमाणु इकाइयां भी स्थापित कर चुका है। गोया भारत यदि परमाणु संपन्न शक्ति के रूप में उभर आता है तो चीन का परमाणु बाजार प्रभावित होगा। इसलिए चीन कह रहा है कि भारत के साथ-साथ पाकिस्तान और ईरान को भी एनएसजी की सदस्यता दी जाए।

दरअसल चीन की मंशा पाकिस्तान में अपने परमाणु केंद्र स्थापित करने की है। इस लिहाज से अमेरिका समेत आतंकवाद विरोधी देशों को डर है कि पाक जिस तरह से आतंकवाद की गिरफ्त में है, उसके मद्देनजर उसको एनसीजी का सदस्य बनाया जाना दुनिया के लिए बड़ा खतरा साबित हो सकता है। यह खतरा इसलिए भी है, क्योंकि बीते समय में पाकिस्तान परमाणु तस्करी का केंद्र रहा है।

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2004 में पाक वैज्ञानिक एक्यू खान के गिरोह द्वारा उत्तरी कोरिया और लीबिया को परमाणु सामग्री की तस्करी करने का खुलासा हुआ था, जबकि एनएसजी का मकसद परमाणु हथियारों का प्रसार नियंत्रित करना है। लिहाजा संदिग्ध चरित्र के पाकिस्तान को अंतरराष्ट्रीय महत्व की संस्था की सदस्यता कैसे दी जा सकती है? हालांकि इस परिप्रेक्ष्य में चीन का चरित्र भी पाक-साफ नहीं है। दुर्भाग्य से यही देश भारत की सदस्यता में बाधक बन रहा है।

(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं)


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