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Engineers Day 2019: भारतीयों ने कई अद्भुत प्रोजेक्ट से दुनिया में मनवाया प्रतिभा का लोहा

Engineers Day 2019 आज इंजीनियर्स डे है। भारत के इंजीनियरों ने तमाम तरह के काम करके अपनी प्रतिभा का लोहा मनवाया है।

By Vinay TiwariEdited By: Published: Sat, 14 Sep 2019 06:38 PM (IST)Updated: Sun, 15 Sep 2019 12:41 PM (IST)
Engineers Day 2019: भारतीयों ने कई अद्भुत प्रोजेक्ट से दुनिया में मनवाया प्रतिभा का लोहा
Engineers Day 2019: भारतीयों ने कई अद्भुत प्रोजेक्ट से दुनिया में मनवाया प्रतिभा का लोहा

नई दिल्ली [जागरण स्पेशल]। Engineers Day: भारत में प्रतिभाओं की कोई कमी नहीं है। हर क्षेत्र में प्रतिभाओं की भरमार है, यदि उनको सही मंच मिल जाता है तो वो अपनी प्रतिभा का लोहा मनवाने में पीछे नहीं रहते है। हर क्षेत्र का माहिर खिलाड़ी देश के अलग-अलग कोनों में मौजूद है। निर्माण की बात हो या फिर किसी अन्य क्षेत्र की, आज के समय में हर क्षेत्र में देश के युवा अपनी प्रतिभा दिखा रहे हैं। भारतीय इंजीनियरों ने भी समय-समय पर अपने अपने टैलेंट का लोहा मनवाया है।

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चाहे पानी के अंदर सुरंग बनाने का काम हो या फिर लंबी सुरंग बनाने का, ऐसा हर कारनामा इंजीनियर कर चुके हैं। भारत में प्रतिवर्ष 15 सितंबर को इंजीनियर डे मनाया जाता है। इस दिन को महान इंजीनियर एम. विश्वेश्वरैया को समर्पित किया गया है और उन्हीं की याद में इस दिन को इंजीनियर दिवस के तौर पर मनाया जाता है। वैसे इतिहास में भगवान विश्वकर्मा को सबसे पुराना इंजीनियर कहा जाता है। आज इंजीनियर दिवस के मौके पर हम आपको बताएंगे कि यहां के इंजीनियरों ने क्या क्या चीजें बनाकर इतिहास बनाया है। आइए ऐसे प्रोजेक्टों पर डालते हैं एक नजर... 

अंडर वाटर टनल
कोलकाता मेट्रो रेल कॉर्पोरेशन लिमिटेड के साथ काम करने वाली एक प्राइवेट कंपनी के इंजीनियरों ने 'अंडर वाटर टनल' बनाकर अपनी इंजीनियरिंग का लोहा मनवाया है। दरअसल ईस्ट-वेस्ट मेट्रो को जोड़ने के लिए भारत में पहली बार अपनी तरह की 'अंडर वाटर टनल' बनाई गई है। इसके तहत इंजीनियरों ने हुगली नदी के नीचे टनल बनाकर कोलकाता और हावड़ा के बीच मेट्रो लिंक जोड़ दिया है। नदी के नीचे 502 मीटर लंबी सुरंग खोदने के लिए एक बड़ी टनल बोरिंग मशीन का इस्तेमाल किया गया। 

कोलकाता मेट्रो प्रोजेक्ट
कोलकाता मेट्रो प्रोजेक्ट 16.6 किमी लंबा है और इसमें से 10.8 किमी का ट्रैक जमीन के अंदर है। इसी 10.8 किमी में आधे किमी से कुछ ज्यादा लंबी सुरंग पानी के नीचे है। यह टनल हावड़ा को वेस्ट और साल्ट लेक क्षेत्र को पूर्व से जोड़ रही है। पानी के नीचे सुरंग बनाने का काम पूरा करने के लिए जो समय तय किया गया था, इंजीनियरों ने इसे करीब 50 दिन पहले ही पूरा कर लिया।

हम नहीं किसी से कम
चीन ने तिब्बत के दुर्गम क्षेत्र में रेल सेवा का विस्तार किया और एवरेस्ट के नीचे से रेलवे लाइन गुजारकर नेपाल को करीब लाने के मंसूबे भी वह पालता रहा है। दुबई में बुर्ज खलीफा जैसी इमारत खड़ी होती है तो अमेरिका और यूरोप में भी इंजीनियरिंग के बड़े से बड़े कमाल देखने को मिलते हैं। ऐसे में पानी के नीचे सुरंग बनाने का कारनामा कर भारतीय इंजीनियरों ने भी अपनी इंजीनियरिंग समझ का लोहा मनवा लिया है। भारत ने कई ऐसे प्रोजेक्ट पूरे किए हैं और कई पर अभी काम चल रहा है, जिन्हें देखकर लोग दांतों तले अंगुली दबा लेंगे। 

भारत की सबसे लंबी सुरंग
जम्मू-कश्मीर के चनैनी और नाशरी के बीच बनी यह 9.28 किमी लंबी सुरंग देश की सबसे लंबी सुरंग है। इसे बनने में करीब साढे पांच साल का वक्त और 3,720 करोड़ रुपये की लागत आयी है। बड़ी बात यह है कि इस सुरंग के बनने से न सिर्फ जम्मू और श्रीनगर के बीच की दूरी कम हुई है बल्कि सरकार को प्रतिदिन करीब 27 लाख रुपये के पेट्रोल की भी बचत होगी। इसके अलावा टोल टैक्स से भी सरकार को कमाई होगी। आग और आपदा से बचने के लिए इसमें अत्याधुनिक बंदोबस्त किए गए हैं। यह सुरंग किसी भी मौसम में बंद नहीं होगी और इंजीनियरिंग के लिहाज से यह भारत के लिए एक उपलब्धि है। 

ऋषिकेश-कर्णप्रयाग रेल मार्ग
देश के आजाद होने के बाद से उत्तराखंड में रेलवे का विस्तार नहीं हुआ है। अब ऋषिकेश से कर्णप्रयाग तक 125 किमी की रेल लाइन बिछाने पर सहमति बनी है। यह रेल लाइन भारतीय इंजीनियरिंग को एक नई ऊंचाई पर ले जाएगी। इस मार्ग पर देश की सबसे लंगी सुरंग (15.1) प्रस्तावित है। इसके अलावा सैंकड़ों पुल और छोटी-छोटी सुरंगें भी इस 125 किमी के ट्रेक पर बनेंगी। इस प्रोजेक्ट की लागत लगभग 16 हजार करोड़ रुपये है। भूकंप के लिहाज से संवेदनशील गढ़वाल के पहाड़ों को काटकर रेल लाइन बिछाना किसी चमत्कार से कम नहीं होगा। 

चेनाव सेतु
कुतुब मीनार से पांच गुना ऊंचा और एफिल टावर से भी करीब 35 फुट ऊंचा यह रेल पुल सबसे ऊंचा पुल होगा। उधमपुर-श्रीनगर-बारामुला रेल लिंक पर बना यह पुल रियासी जिले में बन रहा है। इसे चेनाव नदी के ऊपर 1178 फीट की ऊंचाई पर बनाया जा रहा है। इस पुल एक सिंगल आर्क पर बन रहा है। 8 रिक्टर स्केल तक के भूकंप को आसानी से झेल सकने वाला यह पुल जिस ऊंचाई पर बन रहा है, वहां पर हवा भी इतनी तेज है कि इस पुल का बनना इंजीनियरिंग का एक कमाल ही है। पुल को साल 2009 में बनकर तैयार होना था, लेकिन काम रुक जाने के कारण 2010 में इसका निर्माण शुरू हो पाया। 

चारधाम यात्रा ऑल वेदर रोड
उत्तराखंड सहित 5 राज्यों में विधानसभा चुनाव से ठीक पहले प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने देहरादून में ऑल वेदर रोड का शिलान्यास किया। बद्रीनाथ, केदारनाथ, यमुनोत्री और गंगोत्री उत्तराखंड के इन चारों धामों को जोड़ने के लिए इस ऑल वेदर रोड प्रोजेक्ट को तैयार किया गया है। गर्मियों और मानसून के दिनों में होने वाली चारधाम यात्रा में मौसम अक्सर विलेन की भूमिका में नजर आता है। इस प्रोजेक्ट के तहत बन रही सड़क किसी भी मौसम में यात्रा के लिए पूरी तरह से सुरक्षित होगी। इसके तहत सैंकड़ों पुलों और सुरंगों का निर्माण होना है, इसके साथ ही भूस्खलन वाली जगहों पर पहाड़ पर लोहे की जाली लगाकर उसे रोकने का भी प्रस्ताव है। यह प्रोजेक्ट करीब 12 हजार करोड़ में पूरा होना है। 

छत्रपति शिवाजी स्टैच्यू
अमेरिका के स्टैच्यू ऑफ लिबर्टी और ब्राजील के क्राइस्ट द रेडीमर के बारे में तो आपने सुना ही होगा। भारत में भी छत्रपति शिवाजी का एक ऐसा ही स्टैच्यू बनाया जा रहा है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने पिछले साल दिसंबर में इसकी नींव भी रख दी है। मुंबई में समुद्र तट से दूर अरब सागर में यह 192 मीटर ऊंचा स्टैच्यू तैयार किया जा रहा है। यही नहीं यहां पर शिवाजी का मेमोरियल भी बन रहा है। इस पूरे प्रोजेक्ट की लागत करीब 3600 करोड़ आने का अनुमान है। 

स्टैच्यू ऑफ यूनिटी
भारत के पहले गृहमंत्री और स्वतंत्रता सेनानी सरदार बल्लभ भाई पटेल के सम्मान में बना यह स्टैच्यू 182 मीटर ऊंचा है। 20 हजार स्क्वायर मीटर में फैले इस प्रोजेक्ट के चारों ओर 12 किमी लंबी कृत्रिम झील बनायी गई है। फिलहाल इस प्रोजेक्ट की लागत 2989 करोड़ आंकी गई है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का यह ड्रीम प्रोजेक्ट था, उनके प्रधानमंत्री बनने से पहले ही इसका खाका तैयार होने लगा था। 

बांद्रा-वर्ली सी लिंक
राजीव गांधी सी-लिंक नाम से यह प्रोजेक्ट साल 2009 में जनता के लिए खुला था। साल 2000 में बनना शुरू हुए इस 5.6 किमी लंबे मार्ग पर करीब 1600 करोड़ रुपये का खर्च आया है। इस सी-लिंक के बनने से बांद्रा और वर्ली के बीच का 60 से 90 मिनट का रास्ता सिर्फ 20-30 मिनट का रह गया है।


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