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जानें भारतीय सेना के लिए कैसे और कितनी कारगर हैं 'होवित्‍जर' तोप

होवित्‍जर तोप के सेना में शामिल होने से इसकी ताकत काफी बढ़ जाएगी। सीमा पर एक तोप की सूरत में यह दुश्‍मन के लिए उसका काल साबित होगी।

By Kamal VermaEdited By: Published: Fri, 19 May 2017 03:56 PM (IST)Updated: Sat, 20 May 2017 01:16 PM (IST)
जानें भारतीय सेना के लिए कैसे और कितनी कारगर हैं 'होवित्‍जर' तोप
जानें भारतीय सेना के लिए कैसे और कितनी कारगर हैं 'होवित्‍जर' तोप

नई दिल्‍ली (स्‍पेशल डेस्‍क)। भारतीय सेना को आखिर तीन दशक के बाद एम-777 होवित्‍जर के रूप में नई तोप मिलनी शुरू हो गई हैं। भारतीय सेना काफी समय से इसकी मांग कर रही थी। इससे पहले बोफोर्स तोपों की खरीद हुई थी जिसके बाद लगे घोटालों के आरोपों के चलते राजीव गांधी को हार का सामना करना पड़ा था। इन तोपों ने कारगिल युद्ध में अहम भूमिका निभाई थी। फिलहाल होवित्‍जर तोपों का परीक्षण पोखरण में किया जा रहा है। परीक्षण के बाद इन तोपों को जल्द ही सेना में शामिल कर लिया जाएगा। इन तोपों को मुख्यत: चीन से लगती सीमा पर तैनात करने की बात की जा रही है।

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भारत का मकसद

इसके पीछे भारत का मकसद चीन से लगती सीमा पर अपनी सुरक्षा को चाक चौबंद करना है। इसके अलावा भारत चीन की सीमा पर कई माध्‍यमों के जरिए सुरक्षा को पुख्‍ता रूप देने में लगा है। इसके तहत ही भारत ने कुछ समय पहले अरुणाचल प्रदेश की खाली पड़ी एयरफील्‍ड पर अपना लड़ाकू विमान उतारा था। वहीं भारत अरुणाचल प्रदेश में ब्रहमोस मिसाइल को तैनात करने की बात कह चुका है, जिससे चीन खासा डरा हुआ है। ऐसे में होवित्‍जर की तैनाती भी उसके लिए कुछ परेशानी जरूरी बढ़ाने में मददगार साबित होगी। 

चीन की दबाव बनाने की कोशिश 

हालांकि चीन  की तैयारियों की यदि बात की जाए तो वह पहले से ही काफी कुछ पुख्‍ता कदम इस दिशा में उठा चुका है। चीन ने अरुणाचल प्रदेश से लगती सीमा रेखा से कुछ दूरी पर अपना एयरबेस बनाया हुआ है। इसके अलावा कुछ समय पहले ही अरुणाचल प्रदेश के छह इलाकों के नामों में बदलाव किया है। नए नामों में उसने रोमन अक्षरों का इस्तेमाल किया है। यह छह इलाकों के नए नाम वो ग्याइनलिंग, मिला री, कोइडेनगारबोरी, मैनकुका, बुमो ला और नामकापुबरी हैं। नामों को बदलने के पीछे चीन तिब्बत में चीन की क्षेत्रीय सार्वभौमिकता की पुष्टि करना बताया था। 

सेना की पुरानी मांग 

इन तोपों का निर्माण अमेरिकी कंपनी बीएई सिस्टम्स ने किया है। भारत इस कंपनी से 145 तोपें खरीद रहा है। इनमें 25 तोपें बनी-बनाई खरीदी जाएंगी जबकि अन्‍य तोपों का इसकी सहयोगी कंपनी महिंद्रा डिफेंस द्वारा भारत में असेंबल किया जाएगा। अमेरिका से हुआ यह सौदा करीब पांच हजार करोड़ रुपये का है जो पिछले वर्ष सितंबर में तत्‍कालीन ओबामा सरकार के साथ किया गया था। सौदा हुआ था। तीन  होवित्‍जर तोपों को सितंबर में लाने का प्लान है। फिर 2019 के मार्च से लेकर 2021 के जून के बीच हर महीने 5-5 तोपें आएंगी। जून 2006 में हॉवित्जर तोपों को खरीदने के लिए अमेरिका के साथ बातचीत शुरू हुई। अगस्त 2013 में अमेरिका ने हॉवित्जर का नया वर्जन देने की पेशकश की जिसकी कीमत 885 मिलियन डॉलर थी। भारत ने करीब दस वर्ष पहले इन तोपों के लिए अमेरिका से मांग की थी।

2005 से यूएस आर्मी में सेवारत है होवित्‍जर 

यूएस आर्मी और यूएस मरीन कॉर्प्‍स ने एम777 को वर्ष 2005 में शामिल किया था। आज ऑस्‍ट्रेलिया, कनाडा और सऊदी अरब की सेनाएं इनका प्रयोग कर रही हैं। इन तोपों को ने अफगानिस्‍तान की लड़ाई में पहली बार अपनी ताकत परखी थी और दुश्‍मन को धूल चटाई थी। होवित्‍जर की खासियत 4155 एमएम की होवित्‍जर तोप 30 किलोमीटर तक सटीक मार कर सकती हैं। इसके अलावा इन्हें ऑपरेट करना बेहद आसान है। हॉवित्जर तोपें अन्य तोपों के मुकाबले हलकी हैं। इनको कहीं पर साधारण तरीके से पहुंचाया जा सकता है। इन्हें हेलीकॉप्टर से भी ढोया जा सकता है। बोफोर्स के मुकाबले होवित्‍जर तोपों का वजन काफी कम है। इसकी वजह है कि इनके 

निर्माण में टाइटेनियम का प्रयोग होता है। बोफोर्स का वजन जहां 13,100 किग्रा है वहीं इसका महज 4,200 किलोग्राम है। मारक क्षमता के लिहाज से हॉवित्जर को दुनिया की सबसे कारगर तोपों में इनका नाम आता है। डिजिटल फायर कंट्रोल वाली यह तोप एक मिनट में 5 राउंड फायर करती है। 

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क्‍या कहते हैं रक्षा विशेषज्ञ 

रिटायर्ड मेजर जनरल अफसर करीम का कहना है कि होवित्‍जर तोप वजन में हल्‍की होने की वजह कम समय में कहीं भी ले जाई जा सकती है। इसकी मारक क्षमता भी काफी है। बड़ी बात यह है कि तीन दशक के बाद पहली बार भारत सरकार ने सेना की जरूरत को ध्‍यान में रखते हुए होवित्‍जर तोपों की खरीद की है। हालांकि वह मानते हैं कि चीन की सीमा पर होवित्‍जर तोप उतनी कारगर साबित नहीं होंगी जितनी पाकिस्‍तान की सीमा पर। पाकिस्‍तान की तरफ यदि जम्‍मू कश्‍मीर को छोड़ दिया जाए तो सीमा का क्षेत्र प्‍लेन एरिया आता है। वहीं चीन की बात करें तो चीन ने अपनी ओर से बॉर्डर पर काफी कुछ चीजों की तैनाती कर रखी है। बॉर्डर के पास चीन का एयरबेस भी है और अत्‍याधुनिक तकनीक से लैस हथियारों की तैनाती चीन ने सीमा पर कर रखी है। ऐसे में इस सीमा पर भारत सरकार को उसकी ही तरह ऐयरबेस और मिसाइल की तैनाती करनी जरूरी है। इन सभी के बीच यह सच है कि होवित्‍जर तोप लड़ाई की सूरत में अहम भूमिका निभा सकती है। 


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