संरक्षणवादी नीतियों के खिलाफ बनेगी समग्र नीति
ब्रिटेन, अस्ट्रेलिया और अमेरिका ने आइटी सेक्टर में दिए जाने वाले वीजा नियमों को सख्त कर दिया है। इसका सबसे ज्यादा खामियाजा भारत को ही भुगतना पड़ेगा।
नई दिल्ली (जयप्रकाश रंजन)। पहले ब्रिटेन फिर अस्ट्रेलिया और अब अमेरिका। आने वाले दिनों में शायद न्यूजीलैंड। ये वे देश हैं जो एक के बाद एक सूचना प्रौद्योगिकी उद्योग में काम करने वाले भारतीय नौजवानों की राह में अड़चन डाल रहे हैं। इन सभी देशों ने आइटी सेक्टर में दिए जाने वाले वीजा नियमों को सख्त कर दिया है। वैसे तो ये बदलाव इन देशों ने पूरी दुनिया के लिए किया है लेकिन इसका सबसे ज्यादा खामियाजा भारत को ही भुगतना पड़ने के आसार हैं।
अभी तक इन मुद्दों को नरम कूटनीति से सुलझाने की कोशिश में जुटे भारत ने अब सख्त रवैया अपनाने का फैसला किया है। प्रधानमंत्री कार्यालय ने विकसित देशों की इन संरक्षणवादी नीतियों के खिलाफ एक समग्र नीति बनाने का फैसला किया है। इसके लिए वित्त मंत्रालय, विदेश मंत्रालय, उद्योग व वाणिज्य मंत्रालय समेत अन्य सभी मंत्रालयों से रिपोर्ट मांगी गई है।
भारत की इस तैयारियों के बारे में हाल ही में विदेश मंत्रालय में एक उच्चस्तरीय बैठक हुई है जिसमें वित्त मंत्रालय व वाणिज्य मंत्रालय के आला अधिकारियों ने भी हिस्सा लिया है। इस बैठक की जानकारी रखने वाले एक अधिकारी के मुताबिक विकसित देशों की संरक्षणवादी नीतियों से आप 'सॉफ्ट डिप्लोमेसी' से नहीं निपट सकते। नब्बे के दशक के अंत में या इस सदी के शुरुआत में भारत ने विश्व व्यापार संगठन (डब्लूटीओ) में अपनी आक्रामक एजेंडे की वजह से ही कृषि व पेटेंट जैसे मुद्दों पर अपने हितों की रक्षा करने में सफल रहा था।
तब भारत ने अपने बाजार को बचाने के लिए कड़े तेवर अपनाये थे, इस बार बात नौकरी बचाने की है। भारत की चिंता इसलिए भी ज्यादा है कि अमेरिका, आस्ट्रेलिया, ब्रिटेन या अन्य विकसित देशों में सबसे ज्यादा उच्च शिक्षा प्राप्त पेशेवर भारत से ही जाते हैं।
इसलिए अगर इन देशों के कड़े वीजा प्रावधानों का सबसे ज्यादा असर भारत पर ही पड़ेगा। अमेरिका की तरफ से प्रशिक्षित पेशेवरों को दिए जाने वाले एच-1बी वीजा का 90 फीसद तक भारत को मिलता है। इस तरह से आस्ट्रेलिया ने भी विदेशी कामगारों के लिए सख्त वीजा नियम बनाये हैं। अभी तक भारत और चीन के पेशेवरों को इसका सबसे ज्यादा फायदा मिलता रहा है। भारत के कुल आइटी निर्यात का 77 फीसद अमेरिका व ब्रिटेन को होता है।
यह एक वजह है कि पिछले गुरुवार को उद्योग व वाणिज्य मंत्री निर्मला सीतारमण ने विकसित देशों को परोक्ष तौर पर धमकी दे डाली है। सीतारमण ने कहा है कि, 'संरक्षणवादी नीतियां लागू करने वाले विकसित देशों को यह नहीं भूलना चाहिए कि उनकी कंपनियां भी भारत में कारोबार करती हैं और मुनाफा कमाती हैं।' वित्त मंत्री अरुण जेटली ने पिछले तीन दिनों के अपने यूएस प्रवास के दौरान वहां के वरिष्ठ मंत्रियों से मुलाकात में इस मुद्दे को जोर शोर से उठाया है।
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