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चीन से मुकाबले की तैयारी, लेह तक रेल लाइन पर शुरू हुआ काम

बिलासपुर-लेह रेलवे लाइन का पहला सर्वे 2008-09 में कागजों एलाइनमेंट का निर्धारण कर किया गया।

By Manish NegiEdited By: Published: Wed, 28 Jun 2017 07:38 PM (IST)Updated: Wed, 28 Jun 2017 07:38 PM (IST)
चीन से मुकाबले की तैयारी, लेह तक रेल लाइन पर शुरू हुआ काम
चीन से मुकाबले की तैयारी, लेह तक रेल लाइन पर शुरू हुआ काम

नई दिल्ली, जागरण ब्यूरो। चीन की बढ़ती दादागिरी के मद्देनजर सरकार ने सीमावर्ती क्षेत्रों में बुनियादी ढांचे को मजबूत करने का काम तेज कर दिया है। इस कड़ी में पूर्वोत्तर के साथ-साथ जम्मू एवं कश्मीर में लद्दाख को रेल मानचित्र में लाने की योजना पर काम तेज कर दिया गया है। इसके लिए हिमाचल प्रदेश के बिलासपुर से मनाली होते हुए जम्मू-कश्मीर के लेह तक नई ब्रॉड गेज रेलवे लाइन बिछाने के लिए फाइनल लोकेशन सर्वे को हरी झंडी दे दी गई है। रेलमंत्री सुरेश प्रभु ने मंगलवार को इस सर्वे का शुभारंभ किया। कुल 498 किलोमीटर लंबी इस परियोजना पर 22,832 करोड़ रुपये की लागत आने का अनुमान है।

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बिलासपुर-लेह रेलवे लाइन का पहला सर्वे 2008-09 में कागजों एलाइनमेंट का निर्धारण कर किया गया। यह हिमाचल प्रदेश में बिलासपुर, मंडी, कुल्लू, लाहौलस्पीति होते हुए जम्मू-कश्मीर में लेह तक जाता है। इसमें 25 रोड ओवरब्रिज, 22 रोड अंडरब्रिज/सबवे के अलावा 23 लेवल क्रासिंगों के प्रावधान के साथ सौ किलोमीटर की अधिकतम रफ्तार से ट्रेने चलाने का प्रस्ताव किया गया था। इस लाइन के लिए हिमाचल प्रदेश में 2700 हेक्टेयर जमीन तथा जम्मू व कश्मीर में 1249 हेक्टेयर जमीन की आवश्यकता आंकी गई थी।

पूरी परियोजना में 240 किलोमीटर का हिस्सा सुरंगों से होकर जाएगा, जिसमें सबसे बड़ी सुरंग 17 किलोमीटर लंबी होगी। इसके अलावा इस पर 75 किलोमीटर कुल लंबाई वाले बड़े पुलों तथा तीन किलोमीटर कुल लंबाई वाले छोटी पुलियों की जरूरत पड़ेगी। यह पूरा ट्रैक इलेक्टि्रक ट्रैक होगा।

अपनी खूबियों के कारण यह परियोजना विश्व में अनोखी परियोजना होगी। मसलन, यह विश्व के सबसे ऊंचे रेलवे ट्रैक में से एक होगा, जिसकी समुद्र तल से ऊंचाई 600 मीटर से लेकर 5300 मीटर तक होगी। यह शिवालिक, हिमालय तथा झंकार की विकराल पर्वत श्रृंखलाओं से होकर गुजरेगा। पूरी परियोजना सीस्मिक जोन 4 और 5 के बीच पड़ेगी, जिसमें कहीं ऊंचे पहाड़ होंगे तो कहीं टेढ़े-मेढ़े नदी-नाले और गहरी घाटियों का विस्तार होगा। भूभौगोलिक क्षेत्र के लिहाज से यह परियोजना ऊधमपुर-श्रीनगर-बारामूला रेल परियोजना से भी ज्यादा दुर्गम इलाकों से होकर गुजरेगी। इसीलिए इसके कार्यान्यवन के लिए आधुनिकतम प्रौद्योगिकी के इस्तेमाल का निर्णय लिया गया है। ताकि इसे सर्वाधिक कुशल, सुरक्षित और किफायती तरीके से पूरा किया जा सके।

पहले चरण की जिम्मेदारी राइट्स को 2016 में सौंपी जा चुकी है और इसका कार्य प्रगति पर है। फाइनल लोकेशन सर्वे के तीनो चरणों का कार्य मार्च, 2019 तक पूरा होने की उम्मीद है।

यह भी पढ़ें: सुरेश प्रभु ने लेह रेल लाइन का अंतिम सर्वे किया लांच


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