तस्लीमा नसरीन ने की देश में यूनिफॉर्म सिविल कोड लागू करने की वकालत
तस्लीमा ने उनके खिलाफ फतवा जारी करने वाले को पश्चिम बंगाल के पूर्व और मौजूदा मुख्यमंत्री का दोस्त बताया।
जयपुर, नई दुनिया। बांग्लादेश की विवादास्पद लेखिका तस्लीमा नसरीन ने देश में यूनिफॉर्म सिविल कोड की वकालत की है। उन्होंने कहा कि महिला अधिकारों के लिए ऐसा करना बेहद जरूरी है।
जब मैं हिंदू और इसाई धर्म के खिलाफ लिखती हूं तो मेरे खिलाफ कुछ नहीं होता, लेकिन जैसे ही मुस्लिम कट्टरपंथ के खिलाफ लिखती हूं तो मेरे खिलाफ फतवा जारी कर दिया जाता है। जयपुर लिटरेचर फेस्टिवल के अंतिम दिन सोमवार को पहुंची तस्लीमा नसरीन ने धर्म, कट्टरपंथियों, सरकारों, महिलाओं और खुद के निर्वासन को लेकर खुलकर बातचीत की।
बांग्लादेशी लेखिका ने कहा कि उनके खिलाफ फतवे जारी करने वालों को तथाकथित धर्मनिरपेक्ष दलों का संरक्षण रहा है। बांग्लादेश और भारत में मेरे अधिकारों का हनन किया गया, लेकिन किसी को सजा नहीं मिली।
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अचानक रखा गया सत्र : तस्लीमा नसरीन का सत्र अचानक रखा गया। पहले यह सत्र 3.30 बजे होने की बात कही जा रही थी, लेकिन विवाद की आशंका के चलते यह सत्र तय समय से जल्दी हुआ। विवाद की आशंका के चलते उनके सत्र को अंत तक छिपाए रखा गया। अचानक उन्हें मंच पर बुला लिया गया। किसी भी अप्रिय घटना से निपटने के लिए आयोजन स्थल पर भारी पुलिस बल का इंतजाम किया गया था।
ममता बनर्जी पर साधा निशाना : उन्होंने कहा कि कोलकत्ता में सरेआम मेरे खिलाफ फतवा जारी करने वाले और सिर पर इनाम रखने वालों को मुख्यमंत्री ममता बनर्जी का संरक्षण है। वे ममता बनर्जी के दोस्त है। ऐसे लोगों को प. बंगाल के पूर्व मुख्यमंत्री बुद्धदेव भट्टाचार्य का भी संरक्षण हासिल रहा है। फतवे जारी करने वालों को बढ़ावा देना क्या धर्म निरपेक्षता है।
उन्होंने कहा कि हिन्दु समाज की महिलाओं के अधिकारों की बात करें तो कोई विरोध में नहीं उतरता और मुस्लिम महिलाओं के हक की बात करें तो जानलेवा हमला हो जाता है। तस्लीमा ने नसीहत दी कि इस्लाम को मानने वाले और इस्लामिक देश जब तक खुद के लिए आलोचना नहीं सुनेंगे, तब तक वे धर्मनिरपेक्ष नहीं हो सकते।
दिल्ली ने दिल तोड़ा : तस्लीमा ने कहा कि वर्ष 2003 में मेरी पुस्तक के विरोध में पश्चिम बंगाल के तत्कालीन मुख्यमंत्री के मित्र लेखकों ने मेरा बहिष्कार कर दिया था। मेरा निर्वासन कर दिया गया। जबकि लोगों को मेरी पुस्तक और मेरे विचार पसंद आए थे। फिर भी, मुझे दिल्ली में कोई मकान किराए पर देने को तैयार नहीं था, जबकि मेरी दिली ख्वाहिश थी कि मैं दिल्ली में रहूं।
तस्लीमा के विरोध में नारेबाजी, प्रदर्शन
जब तस्लीमा का सत्र हो रहा था, उसी दौरान डिग्गी पैलेस के बाहर जमायते इस्लामी सहित कुछ अन्य संगठनों के लोग विरोध दर्ज कराने पहुंचे, इनमें महिलाएं भी शामिल थी। कुछ देर हंगामे के बाद पुलिस ने फेस्टिवल आयोजकों के साथ प्रदर्शनकारियों की वार्ता कराई, इसमें आयोजक संजोय रॉय ने यह आश्वासन दिया कि भविष्य में तस्लीमा नसरीन और सलमान रूश्दी जैसे लेखकों को नहीं बुलाया जाएगा।
मैं मानवता, समानता, लिखने-बोलने की आजादी पर विश्वास रखती हैं, न कि धर्म एवं राष्ट्रवाद पर। मैं ऐसे देशों की सीमाओं के भी खिलाफ हैं, जो धर्म के आधार पर बनी हों। - तस्लीमा नसरीन
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