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कानून के तहत कोहिनूर हीरे को वापस नहीं ला सकता है भारत

ब्रिटेन से कोहिनूर हीरा वापस लाने के मामले में केंद्र सरकार ने कानून का हवाला देते हुए कहा है कि भारत कोहिनूर हीरे को वापस प्राप्त नहीं कर सकता है।

By Kamal VermaEdited By: Published: Sun, 10 Apr 2016 04:36 PM (IST)Updated: Sun, 10 Apr 2016 08:42 PM (IST)
कानून के तहत कोहिनूर हीरे को वापस नहीं ला सकता है भारत

नई दिल्ली। ब्रिटेन से भारत का कोहिनूर हीरा वापस लाने के मामले में केंद्र सरकार ने 43 साल पुराने कानून का हवाला देते हुए कहा है कि भारत कोहिनूर हीरे को वापस प्राप्त नहीं कर सकता है। इस नियम के तहत उन प्राचीन वस्तुओं को वापस लाने की अनुमति नहीं है, जो आजादी से पहले देश से बाहर ले जाई जा चुकी हैं। केंद्र ने कहा कि पुरावशेष एवं बहुमूल्य कलाकृति अधिनियम, 1972 के प्रावधानों के तहत, भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण सिर्फ उन्हीं प्राचीन वस्तुओं की वापस प्राप्ति का मुद्दा उठाता है, जिन्हें देश से बाहर अवैध रूप से निर्यात किया गया था।

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संस्कृति मंत्रालय ने एक आरटीआई के जवाब में कहा, चूंकि आपके द्वारा कोहिनूर आजादी से पूर्व देश से बाहर ले जाया गया था, इसलिए भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण इस मुद्दे को उठाने की स्थिति में नहीं है। विदेश मंत्रालय में दायर आरटीआई में कोहिनूर वापसी को लेकर सरकार द्वारा उठाए जा रहे कदमों की जानकारी मांगी गई थी। इसके अलावा आरटीआई में इस बाबत ब्रिटेन को लिखे गए पत्र और वापस प्राप्त किए गए जवाब की प्रति की मांग की गई थी।

इस आरटीआई में उन वस्तुओं की भी जानकारी मांगी गई, जो ब्रिटेन के संरक्षण में हैं और भारत उन्हें वापस लाने का दावा करना चाहता है। इसके जवाब में संस्कृति मंत्रालय ने कहा, भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण के पास ब्रिटेन के संरक्षण में मौजूद वस्तुओं की कोई सूची नहीं है। आरटीआई के इस आवेदन का महत्व इस लिहाज से बढ़ जाता है कि उच्चतम न्यायालय ने शुक्रवार को सरकार से कहा था कि वह कोहिनूर को देश में वापस लाने से जुड़ी जनहित याचिका पर अपना रूख स्पष्ट करे।

दिलचस्प है कोहिनूर की कहानी

कोहिनूर का अर्थ होता है रोशनी का पहाड़। लेकिन इस हीरे की चमक से कई राजाओं का सूर्य अस्त हो चुका है। कोहिनूर 105 कैरेट (21.6 ग्राम) का हीरा है। किसी समय इसे दुनिया का सबसे बड़ा हीरा माना जाता था। कहा जाता है कि यह हीरा भारत की गोलकुंडा की खान से निकाला गया था। सबसे पहले यह किसके पास पहुंचा इसका उल्लेख नहीं मिलता है। बाबरनामा में इसका पहली बार जिक्र आया है कि यह 1294 के आस-पास ग्वालियर के किसी राजा के पास था। काकतीय वंश के अंत के बाद यह हीरा तुगलक वंश के पास फिर मुगलों के पास आया। शाहजहां ने कोहिनूर हीरे को अपने मयूर सिंहासन में जड़वाया।

1739 में नादिर शाह मुगलों को पराजित करके कोहिनूर अपने साथ ईरान ले गया। नादिर शाह ने ही इस हीरे को कोहिनूर नाम दिया। इससे पहले इसे अन्य नाम से जाना जाता था। नादिर शाह की मौत के बाद कोहिनूर अफगानिस्तान के बादशाह अहमद शाह दुर्रानी फिर उनके वंशज शाह शुजा दुर्रानी के पास आया। कुछ सालों के बाद मो. शाह ने शाह शुजा को अपदस्थ कर दिया। वह भागकर पंजाब पहुंचा और कोहिनूर रंजीत सिंह को सौंप दिया। कुछ समय बाद रणजीत सिंह की मौत हो गई और अंग्रेजों ने सिख साम्राज्य पर अधिकार करके इस हीरे को अपने कब्जे में ले लिया। कोहिनूर की वर्तमान कीमत लगभग 150 हजार करोड़ रुपये है। यह हीरा इस समय महारानी एलिजाबेथ द्वितीय के ताज का हिस्सा है।

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