लड़ाकू ड्रोन या निगरानी ड्रोन, क्या है भारत की जरूरत...?
भारत ने अमेरिका के साथ एमक्यू-9बी गार्जियन विमानों का सौदा किया है। भारतीय नौसेना ने खुफिया, निगरानी और टोही गतिविधियों के लिए इस्तेमाल होने वाले इस ड्रोन के लिए पिछले साल आग्रह किया था।
नई दिल्ली, जेएनएन। भारतीय महासागर क्षेत्र पर कड़ी नजर रखने के लिए भारत के उन्नत निगरानी ड्रोनों की तलाश अब अमेरिका ड्रोनों पर आकर खत्म हो गई है। लेकिन क्या भारत की जरूरत इस समय टोही गतिविधियों के लिए इस्तेमाल होने वाले ड्रोन की थी? क्या लड़ाकू ड्रोन या मानव रहित युद्ध हवाई वाहन (यूसीएवी) लंबे समय के लिए फायदे का सौदा साबित नहीं होता? ये सवाल इसलिए भी जहन में घूम रहा है, क्योंकि कई देश इस समय लड़ाकू ड्रोन का इस्तेमाल कर रहे हैं। अमेरिका भी इन्हीं में से एक है, जिससे भारत 22 गार्जियन ड्रोन खरीद रहा है।
टाइम्स ऑफ इंडिया की खबर के मुताबिक, मानव रहित लड़ाकू विमान एक फाइटर प्लेन के समान ही होते हैं। लेकिन अंतर सिर्फ इतना होता है कि इसे सेटेलाइट के जरिए हजारों मील दूर बैठकर भी नियंत्रित किया जा सकता है। ये ड्रोन अगले मिशन के लिए फिर से बेस पर लौटने से पहले दुश्मनों पर मिसाइलें दाग देता है। इसकी सटीकता भी कमाल की होती है।
यूसीएवी कैसे किसी युद्ध का पासा पलट सकते हैं, इसका अहसास पूरी दुनिया को तब हो गया था, जब पाकिस्तान और अफगानिस्तान के क्षेत्रों में छिपे तालिबानियों पर मानव रहित लड़ाकू विमान से हमले किए थे। यहां से तालिबानियों को खदेड़ने में इन हथियारों से लैस ड्रोन ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी। यूएस आर्मी को इस दौरान अपने किसी सैनिक की जान नहीं गंवानी पड़ी थी।
लेकिन भारत ने अमेरिका के साथ एमक्यू-9बी गार्जियन विमानों का सौदा किया है। भारतीय नौसेना ने खुफिया, निगरानी और टोही गतिविधियों के लिए इस्तेमाल होने वाले इस ड्रोन के लिए पिछले साल आग्रह किया था। यह सौदा दो से तीन अरब डॉलर यानी करीब 130 से 194 अरब रुपये का बैठेगा। इस ड्रोन का विनिर्माण जनरल अटॉमिक्स डिपार्टमेंट कर रहा है।