सुरक्षा परिषद में भारत की उम्मीदों को झटका, स्थायी सदस्यता पर फैसला टला
संयुक्त राष्ट्र की सुरक्षा परिषद में स्थायी सदस्यता के मामले में भारत की कोशिशों को झटका लगा है। आम सभा ने बदलाव के प्रस्तावों को अगले सत्र तक के लिए टाल दिया है।
नई दिल्ली। संयुक्त राष्ट्र की सुरक्षा परिषद में स्थायी सदस्यता के मुद्दे पर भारत को करारा झटका लगा है। संयुक्त राष्ट्र की आम सभा ने बदलाव के प्रस्तावों को अगले सत्र के लिए टाल दिया है। इस साल इन बदलावों को लेकर काफी चर्चा थी लेकिन अभी तक कोई खास प्रगति नहीं हुई है। सभा ने बुधवार को एकमत होकर बदलाव के लिए आए तमाम प्रस्तावों को आगे के लिए टाल दिया है। संयुक्त राष्ट्र की आम सभा में 193 सदस्य देश है। इसी सभा की बैठक में यह निर्णय लिया गया है।
आम सभा ने बदलाव के प्रस्तावों को अगले सत्र के लिए टाल दिया।
एक संयुक्त बयान में भारत के साथ ब्राजील, जापान और जर्मनी ने विरोध किया ।
स्थायी सदस्यों की संख्या बढ़ाने के लिए हमेशा से जोर दिया जाता रहा है ।
सितंबर में शुरू होगा अगला सत्र
आम सहमति से कदम उठाते हुए महासभा ने यह फैसला किया कि सदस्य देश सुरक्षा में सुधार पर चर्चा 71वें सत्र में जारी रखेंगे जो सितंबर में शुरू होगा. जी-4 के पक्ष की जोरदार पैरवी करते हुए पैट्रिओटा ने कहा कि सुरक्षा परिषद में सुधार महासभा के एजेंडे में लंबित एक बहुत ही महत्वपूर्ण मुद्दा है. उन्होंने कहा कि यह महत्वपूर्ण है कि अगर इस प्रक्रिया का कोई मतलब है तो सदस्य देश विषय आधारित, और वास्तविक बातचीत करें।
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बढ़ रही है स्थायी सदस्यता की मांग करने वाले देशों की संख्याब्राजील के राजदूत पैट्रिओटा ने कहा कि यह सच्चाई है कि सुरक्षा परिषद की दोनों कैटेगरी (स्थायी और अस्थायी) में सदस्यता के विस्तार का समर्थन करने वाले सदस्य देशों की संख्या बढ़ रही है। लेकिन लिखित में इसे दर्ज नहीं किया गया है। उन्होंने कहा कि हम जितने लंबे समय के लिए सुरक्षा परिषद में सुधार पर फैसले को टालेंगे उसके मुख्य कामकाज के संदर्भ में इतना ही अधिक अपयश मिलेगा। हम यूएन सुरक्षा परिषद में सुधार को लेकर अब टालमटोल नहीं कर सकते हैं।
पैट्रिओटा ने इस बात पर जोर दिया कि दुनिया भर में अप्रत्याशित संकटों और सुरक्षा के लिए पैदा हुए खतरों को देखते हुए लोगों को संयुक्त राष्ट्र से साहसिक नेतृत्व और बदलाव की प्रतिबद्धता की उम्मीद की थी। उन्होंने कहा कि ज्यादातर लोग समझ चुके हैं कि यथास्थिति बरकरार रखना कोई विकल्प नहीं हो सकता है। पिछले साल संयुक्त राष्ट्र में भारत के राजदूत अशोक मुखर्जी ने कहा था कि भारत संयुक्त राष्ट्र की 70वीं सालगिरह के दौरान सुरक्षा परिषद में सुधार को पूरा होते देखना चाहता है।
आखिर क्या है G-4
एक संयुक्त बयान में भारत के साथ ब्राजील, जापान और जर्मनी ने कहा कि यह बहुत ही दुर्भाग्यपूर्ण है कि 70 सालों में संयुक्त राष्ट्र आम सभा में इतने महत्वपूर्ण मुद्दे पर किसी सहमति पर नहीं पहुंच पाया।चारों देशों की ओर से बोलते हुए ब्राजील का प्रतिनिधित्व करने वाले स्थायी सदस्य एनटोनियो पैत्रिओटा ने सभा से कहा, संयुक्त राष्ट्र में बदलाव के प्रस्तावों को हम जितना आगे खीचेंगे उतना ही संयुक्त राष्ट्र का महत्व कम होता जाएगा। यह सब दुनिया में शांति और सुरक्षा के लिए उसकी विश्वसनीयता पर भी सवाल उठाएगा। उल्लेखनीय है कि यह चार देश संयुक्त राष्ट्र के स्थायी सदस्यों की संख्या बढ़ाने के लिए हमेशा से जोर देते रहे हैं और एक दूसरे का समर्थन भी करते हैं। इन देशों के समूह को जी-4 भी कहा जाता है।
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अथक प्रयास के 20 साल
करीब 20 साल के लगातार प्रयास के बाद संयुक्त राष्ट्र में बदलाव के प्रस्तावों को पिछले साल गति मिली थी जब इससे संबंधित के वक्तव्य को आम सभा ने स्वीकार कर लिया था। इस वक्तव्य को कुछ देश जैसे पाकिस्तान और इटली काफी विरोध करते रहे थे, बावजूद इसके संयुक्त राष्ट्र ने इसे स्वीकार किया था।
इस वक्तव्य के स्वीकारना के अहम प्रगति थी जिसके बाद किसी सार्थक चर्चा की उम्मीद की जा सकती थी। संयुक्त राष्ट्र में किसी प्रस्ताव पर चर्चा के लिए इस प्रकार का प्रस्ताव स्वीकार किया जाना जरूरी होता है। यह उम्मीद की जा रही थी कि अपने स्थापना के 70वें वर्ष संयुक्त राष्ट्र बदलावों के लिए तैयार होगा।बदलाव के लिए तैयार वक्तव्य को एक सर्वे के आधार पर बनाया गया था। इसे जमैका के कोर्टनी रैटरी ने तैयार किया था। वे इंटर गवर्नमेंटल नेगोशिएशन (आईजीएन) के चेयरपर्सन थे। इसका काम काउंसिल में बदलाव के प्रस्ताव को तैयार करना था। इस प्रस्ताव को पिछली आम सभा के अध्यक्ष सैम कुटेसा के विशेष जोर देने पर स्वीकार किया गया था।
स्थाई सदस्यों की संख्या बढ़ाने पर है विवाद
सुरक्षा परिषद के स्थाई सदस्यों की संख्या को बढाने के बारें में काफ़ी विवाद है। ब्राज़ील, भारत, जर्मनी और जापान को G 4 कहा जाता है। ये देश सुरक्षा परिषद के विस्तार पर जोर दे रहे हैं। जापान और जर्मनी संयुक्त राष्ट्र की काफ़ी आर्थिक सहायता करते हैं, ब्राज़ील तथा भारत जनसंख्या में बड़े होने के कारण संयुक्त राष्ट्र के विश्वशांति के लक्ष्य के लिए सैन्य-दल के सबसे बड़े योगदान करनेवालों में से हैं। 21 सितंबर 2004 को, G4 राष्ट्रों ने स्थाई सदस्य बनने के बारे में आपसी सहयोग करने पर सहमति जताई। संयुक्त राजशाही और फ़्रांस ने भी जी-4 सदस्यों की सदस्यता दिये जाने पर सहमत हैं। स्थायी सदस्यता हासिल करने के लिए 128 मतों की जरूरत है।
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सुरक्षा परिषद में हर वक्त एक सदस्य का रहना जरूरी
फिलहाल सुरक्षा परिषद में 15 सदस्य हैं जो अंतरराष्ट्रीय स्तर पर शांति और सुरक्षा बनाए रखना का जिम्मा संभालते हैं। इन 15 देशों में पांच स्थायी सीटों पर ब्रिटेन, फ्रांस, अमेरिका, चीन और रूस काबिज हैं। बाकी 10 सीटों पर अलग-अलग देश समय समय पर सदस्य रहते हैं। सुरक्षा परिषद में हर वक्त एक सदस्य की मौजूदगी जरूरी होती है, ताकि असामान्य हालात पर जल्दी फैसला किया जा सके।
सुरक्षा परिषद का कब हुआ था गठन ?
संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद संयुक्त राष्ट्र के 6 प्रमुख अंगों में से एक अंग है। अंतर्राष्ट्रीय शांति और सुरक्षा बनाए रखना ही परिषद का मुख्य दायित्व है। 1945 में द्वितीय विश्वयुद्ध की समाप्ति के बाद संयुक्त राष्ट्र संघ का वाशिंगटन में गठन किया गया। इसके ठीक एक साल बाद वर्ष 1946 में सुरक्षा परिषद का गठन किया गया, जिसका मकसद दुनिया में किसी भी तरह के आपसी टकराव को रोकना था।
सुरक्षा परिषद में 15 सदस्य हैं, पांच स्थाई और दस अल्पकालिक। चीन, फ़्रांस, रूस, ब्रिटेन और संयुक्त राज्य अमेरिका इसके स्थाई सदस्य हैं। इन पांच देशों को कार्यविधि मामलों में तो नहीं पर विधिवत मामलों में प्रतिनिषेध शक्ति है। बाकी के दस अस्थायी सदस्य क्षेत्रीय आधार के अनुसार दो साल की अवधि के लिए समान्य सभा द्वारा चुने जाते है। सुरक्षा परिषद का अध्यक्ष हर महीने वर्णमालानुसार बदलता है।