एनएसजी की सदस्यता के लिए अब नवंबर का इंतजार
एनएसजी की बैठक स्विटजरलैंड की राजधानी बर्न में 22-23 जून, 2017 को हुई बैठक से भारत इस बात पर संतोष कर सकता है कि उसकी दावेदारी की उम्मीदें पूरी तरह से जिंदा है।
नई दिल्ली, जागरण ब्यूरो। परमाणु तकनीकी हासिल प्राप्त देशों के प्रतिष्ठित समूह एनएसजी में भारत की दावेदारी पर विचार तो किया गया लेकिन चीन की अड़ंगे की वजह से बात अभी भी नहीं बन पाई है। वैसे भारत के लिए उम्मीद पूरी तरह से खत्म नहीं हुई है क्योंकि एनएसजी की सदस्यता के लिए अभी सिर्फ भारत की दावेदारी पर ही विचार किया गया है और सदस्य देशों की बैठक फिर से नवंबर, 2017 में होनी है। देखना होगा कि तब तक चीन के रुख में कोई बदलाव आता है या भारतीय कूटनीति कोई रंग दिखाती है।
एनएसजी की बैठक स्विटजरलैंड की राजधानी बर्न में 22-23 जून, 2017 को हुई बैठक से भारत इस बात पर संतोष कर सकता है कि उसकी दावेदारी की उम्मीदें पूरी तरह से जिंदा है। बैठक के बाद एनएसजी की तरफ से जारी बयान में कहा गया है कि भारत और एनएसजी के संबंधों और भारत के साथ वर्ष 2008 में किये गये असैन्य परमाणु समझौते के लागू करने को लेकर भी विमर्श हुआ है। यह पहला मौका है जब एनएसजी की तरफ से जारी बयान में इस बात के साफ संकेत दिए गए हैं कि भारत की दावेदारी पर चर्चा हुई है। भारत इस बात पर भी संतोष कर सकता है कि चीन के भारी दबाव के बावजूद एनएसजी में पाकिस्तान के प्रवेश को लेकर अभी कोई चर्चा नहीं हुई है। हां, समग्र तौर पर परमाणु अप्रसार संधि (एनपीटी) पर हस्ताक्षर नहीं करने वाले देशों को सदस्य बनाने को लेकर जरुर चर्चा हुई है। भारत व पाकिस्तान गिने चुने देशों में हैं जिन्होंने एनपीटी पर हस्ताक्षर नहीं किया है। एनएसजी का सदस्य बनने के लिए यह एक बड़ी शर्त है। हालांकि इसके बावजूद एनएसजी ने भारत के साथ एक करार के तहत परमाणु ऊर्जा के कारोबार को लेकर काफी छूट दी हुई है।
सनद रहे कि चीन भारत के एनएसजी में प्रवेश के मुद्दे पर एकदम झुकने को तैयार नहीं है। एक दिन पहले तक चीन की तरफ से यह आधिकारिक बयान आया कि उसके रुख में कोई बदलाव नहीं आया है। जुलाई, 2016 में भी चीन के अड़ंगे की वजह से भारत इसका सदस्य नहीं बन पाया। बाद में भारत की तरफ से यह कहा गया कि सिर्फ एक देश की वजह से एनएसजी की सदस्यता नहीं मिली है। इस समूह में 48 देश हैं और तकरीबन सभी इसमें भारत के प्रवेश के प्रस्ताव का समर्थन करते हैं। चीन चाहता है कि भारत के साथ पाकिस्तान को भी एनएसजी की सदस्यता मिलनी चाहिए। इसे भारत व चीन के मौजूदा तल्ख भरे रिश्ते को एक बड़ी वजह माना जाता है।
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