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निर्यात बढ़ाने को चीन की नीति पर चलने की तैयारी

ड्राफ्ट एक्शन एजेंडे के अनुसार, भारत को दो तटीय रोजगार क्षेत्रों को बनाकर चीन की रणनीति को दोहराना चाहिए।

By Mohit TanwarEdited By: Published: Sun, 30 Apr 2017 09:33 PM (IST)Updated: Sun, 30 Apr 2017 09:33 PM (IST)
निर्यात बढ़ाने को चीन की नीति पर चलने की तैयारी
निर्यात बढ़ाने को चीन की नीति पर चलने की तैयारी

नई दिल्ली, प्रेट्र।  नीति आयोग ने निर्यात को बढ़ावा देने और नौकरियों का सृजन करने के लिए चीन की रणनीति की तर्ज पर दो तटीय रोजगार क्षेत्रों के निर्माण की वकालत की है।

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आयोग ने अपने तीन साल के ड्राफ्ट एक्शन एजेंडे में पूर्वी तट और पश्चिमी तट पर एक-एक तटीय रोजगार जोन (सीईजेड) का सुझाव दिया है। उसका मानना है कि इससे अधिक उदार और व्यापार-अनुकूल आर्थिक वातावरण को तैयार करने में मदद मिलेगी।

ड्राफ्ट एक्शन एजेंडे के अनुसार, भारत को दो तटीय रोजगार क्षेत्रों को बनाकर चीन की रणनीति को दोहराना चाहिए। सीईजेड की शुरुआती संख्या को दो पर सीमित रखने से सुनिश्चित होगा कि सीमित संसाधन बहुत अधिक जोन में थोड़े-थोड़े नहीं फैल पाएंगे। इसके अलावा केंद्रित दृष्टिकोण को अपनाने के कारण कई अर्थव्यवस्थाओं को आकर्षित करने और अपेक्षाकृत कम समय में नतीजे देने की ज्यादा संभावनाएं रहेंगी।

ये जोन कारोबार में सुगमता सहित व्यापार अनुकूल पारिस्थितिकी तंत्र प्रदान करेंगे। यह तंत्र विशेष रूप से निर्यात और आयात करने में आसानी के साथ पर्यावरण आवेदनों और पानी व बिजली कनेक्शन के लिए मंजूरी के फैसलों में तेजी लाएगा।

एक्शन एजेंडा पांच साल की योजना प्रणाली की जगह लेगा। एजेंडे में इस बात पर जोर दिया गया है कि सामाजिक सब्सिडी में इस तरह का बदलाव किया जाना चाहिए ताकि लाभार्थी उन पर निर्भर बने रहने की बजाय आर्थिक रूप से स्वतंत्र हो सके।

ड्राफ्ट एक्शन एजेंडे में इस बात को रेखांकित किया गया है कि वस्तु एवं सेवाकर (जीएसटी) व संबंधित सुधारों काक्रियान्वयन यात्रा और पर्यटन में सुविधा प्रदान करेगा। लिहाजा पर्यटन को जीएसटी के निचले टैक्स ब्रैकेट में रखने पर विचार किया जाना चाहिए ताकि प्रतिस्पर्धात्मकता सुनिश्चित हो सके।

भारतीय निर्यात के लिए संरक्षणवाद बड़ी चिंता

नई दिल्ली : विकसित अर्थव्यवस्थाओं के संरक्षणवादी दृष्टिकोण का भारत के निर्यात प्रदर्शन पर प्रतिकूल असर पड़ सकता है। भारतीय निर्यात पहले से ही मांग में कमी की समस्या से जूझ रहा है। इसकी वजह यह है कि ज्यादातर कंपनियों को कम दरों पर ऋण प्रवाह का लाभ नहीं मिल रहा है। उद्योग संगठन फिक्की की एक रिपोर्ट में यह बात कही गई है।

फिक्की के ताजा बिजनेस कॉन्फिडेंस सर्वे में हालांकि इस बात का भी जिक्र है कि नोटबंदी का असर जितना सोचा जा रहा था उससे कहीं ज्यादा तेजी से घटा। यह सर्वे मार्च-अप्रैल के दौरान किया गया। इसमें करीब 185 कंपनियां शामिल हुई।

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