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अत्याधुनिक रक्षा उपकरणों का हब बन सकता है भारत, जानिए क्या है प्लान

रक्षा मंत्रालय के सूत्रों के मुताबिक, दुनिया की हर बड़ी सैन्य उपकरण निर्माता कंपनी की नजर भारत पर है।

By Tilak RajEdited By: Published: Wed, 21 Jun 2017 09:35 AM (IST)Updated: Wed, 21 Jun 2017 09:49 AM (IST)
अत्याधुनिक रक्षा उपकरणों का हब बन सकता है भारत, जानिए क्या है प्लान
अत्याधुनिक रक्षा उपकरणों का हब बन सकता है भारत, जानिए क्या है प्लान

नई दिल्ली, [जयप्रकाश रंजन]। डिफेंस सेक्टर में मेक इन इंडिया कार्यक्रम ने धीरे-धीरे रफ्तार पकड़नी शुरू कर दी है। युद्धक विमान निर्माता कंपनी लॉकहीड ने भारत में प्लांट लगाने के लिए टाटा समूह के साथ जो समझौता किया है वह दुनिया की अग्रणी कंपनियों का भारत के प्रति बढ़ते भरोसे का नतीजा है। सरकार को भरोसा है कि कम से कम एक और दिग्गज युद्धक विमान निर्माता कंपनी भारत में मैन्यूफैक्चरिंग प्लांट लगाने की घोषणा करेगी। यही नहीं हल्के व भारी मशीन गन और पनडुब्बी निर्माण के मामले में भी भारत विदेशी कंपनियों की पसंदीदा जगह बन सकता है।

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भारत सरकार ने तकरीबन एक महीने पहले ही मेक इन इंडिया कार्यक्रम के तहत भारत में हर तरह के सैन्य उपकरण बनाने को बढ़ावा देने के लिए एक नई नीति का ऐलान किया है। इसके तहत भारतीय कंपनियों को विदेशी साझेदारों के साथ मिल कर देश में फाइटर जेट, हेलीकॉप्टर, सबमैरिन (पनडुब्बियां) और टैंक बगैरह के निर्माण के प्रस्ताव को मंजूरी दी जाएगी।

जानकारों के मुताबिक, भारत सरकार अगले एक दशक के भीतर 250 अरब डॉलर की राशि अपने सेना को अत्याधुनिक बनाने पर खर्च करेगी। यह संभवत: किसी भी देश की तरफ से दस वर्षों में सैन्य खरीद पर की जाने वाली सबसे बड़ी रकम होगी। इसके साथ ही मोदी सरकार ने डिफेंस डिप्लोमेसी को भी खूब धार देनी शुरू कर दी है जो पूर्व यूपीए सरकार के कार्यकाल में पूरी तरह से 'बैक सीट' पर थी। हाल ही में जब पीएम नरेंद्र मोदी ने जर्मनी, स्पेन, रूस और फ्रांस की यात्रा की तो उनके एजेंडे में हथियार खरीद सबसे अहम था। इस हफ्ते पीएम अमेरिका जाने वाले हैं और उसमें भी रक्षा सहयोग द्विपक्षीय बातचीत में काफी उपर रहेगा।

रक्षा मंत्रालय के सूत्रों के मुताबिक, दुनिया की हर बड़ी सैन्य उपकरण निर्माता कंपनी की नजर भारत पर है। न सिर्फ भारत का बाजार बहुत बड़ा है, बल्कि बेहद प्रशिक्षित कार्य बल (प्रोफेशनल्स) और सस्ते श्रम की वजह से यहां मैन्यूफैक्चरिंग प्लांट लगाने का अपना आकर्षण है। रूस की कंपनी पहले ही भारत में कामोव-226 हेलीकॉप्टर बनाने और यहां से दूसरे देशों को निर्यात करने की मंशा दिखा चुकी है। हाल ही में मोदी की यात्रा के दौरान इस समझौते की राह को समयबद्ध सीमा के तहत दूर करने की सहमति बनी है। रक्षा उद्योग के सूत्रों के मुताबिक रक्षा खरीद पर सरकार ने जिस तेजी से काम करना शुरू किया है उसे देखते हुए भी विदेशी कंपनियों का भरोसा बढ़ा है। रक्षा मंत्री बुधवार से रूस की यात्रा पर जा रहे हैं जहां उनकी रक्षा सहयोग व हथियारों की आपूर्ति पर अहम बात होगी।

कंपनियां भारतीय बाजार को लेकर जितनी उत्साह में है इसके पीछे एक वजह यह भी है कि यहां से वे पूरे खाड़ी क्षेत्र, अफ्रीकी देशों और दक्षिण पूर्व एशियाई देशों को अपेक्षाकृत सस्ती कीमत पर हथियारों, हेलीकॉप्टरों या सेना में इस्तेमाल होने वाले वाहनों की आपूर्ति कर सकती हैं। लॉकहीट-टाटा समूह के समझौते से पहले फ्रेंच कंपनी दासो एविएशन कह चुकी है कि अगर भारत की तरफ से कुछ और फाइटर जेट राफेल का आर्डर मिलता है तो वह यहां निश्चित तौर पर मैन्यूफैक्चरिंग प्लांट लगाएगी। सितंबर, 2016 में भारत व फ्रांस के बीच 36 राफेल जेट खरीदने का अंतिम समझौता हुआ है। कंपनी का कहना है कि अगर इतने विमान के आर्डर और मिलते हैं तो वह यहां प्लांट लगाएगी।

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