चीनी मीडिया का दावा, ब्रिक्स को डुबो सकती है चीन-भारत की कलह
चीन के सरकारी अखबार 'ग्लोबल टाइम्स' में प्रकाशित एक लेख के मुताबिक, ब्रिक्स देशों को अपने सम्मिलित प्रयासों से पर्याप्त लाभ अर्जित करने के लिए अपने कुछ हितों को छोड़ना होगा।
बीजिंग, प्रेट्र। भारत और चीन के बीच मतभेद और पाकिस्तान को लेकर उनकी कलह ब्रिक्स देशों में ऐसे विवाद हैं जो पूरे समूह को डुबो सकती हैं।
चीन के सरकारी अखबार 'ग्लोबल टाइम्स' में प्रकाशित एक लेख के मुताबिक, ब्रिक्स (ब्राजील, रूस, भारत, चीन और दक्षिण अफ्रीका) देशों को अपने सम्मिलित प्रयासों से पर्याप्त लाभ अर्जित करने के लिए अपने कुछ हितों को छोड़ना होगा। इससे इस तरह की आशंकाओं को बल मिलता है कि यह समूह अपनी चमक खो रहा है। चीन और भारत के बीच क्षेत्रीय विवाद एक हठी बीमारी की तरह है।
इसके अलावा पाकिस्तान को चीन के समर्थन को कुछ भारतीय आतंकवाद को समर्थन के बराबर मानते हैं। माना जाता है कि ब्रिक्स देशों में तीन चीजों का अभाव है। पहला, साझा हितों का बुनियादी आधार; दूसरा, आपसी सहयोग का कमजोर तंत्र और तीसरा, बाहरी दबाव।
जहां तक साझा हितों का सवाल है तो ब्रिक्स देशों के बीच प्रतिस्पर्धा और मतभेद एक अवरोध की तरह हैं। उभरते हुए पांचों देश निर्यात और विदेशी निवेश को महत्व देते हैं। इसकी वजह से उनमें टकराव होता है क्योंकि वे संसाधनों, बाजारों और विदेशी निवेश के प्रवाह के लिए आपस में प्रतिस्पर्धा करते हैं। भारत, ब्राजील और दक्षिण अफ्रीका पर व्यापार संरक्षण के संकेत देने का आरोप लगाते हुए लेख में कहा गया है कि तीनों ही देश चीन के खिलाफ अक्सर डंपिंग रोधी जांचों की कोशिश में लगे रहते हैं।
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भारत और ब्राजील तो ऐसे देशों में शुमार हैं जिन्होंने चीन के खिलाफ सबसे ज्यादा संरक्षणवादी कदम उठाए हैं। ब्रिक्स देशों के बीच एक अन्य अवरोध अलग-अलग राजनीतिक और आर्थिक लक्ष्य हैं। ब्राजील और दक्षिण अफ्रीका को उम्मीद है कि ब्रिक्स देशों के बीच सहयोग से राजनीतिक और आर्थिक रूप से उनके क्षेत्रीय प्रभाव में वृद्धि होगी। जबकि, रूस सही मायने में ब्रिक्स के राजनीतिक और रणनीतिक महत्व की परवाह करता है।
ब्रिक्स देशों के सामने दूसरा बड़ा खतरा है अपर्याप्त सहयोग तंत्र। हालांकि, हाल ही में गोवा में हुई ब्रिक्स देशों की आठवीं वार्षिक बैठक के अलावा हर साल कई मंत्रिस्तरीय बैठकें होती रहती हैं। इसके बावजूद ब्रिक्स समूह में अभी भी स्थायित्व का अभाव है। ब्रिक्स सहयोग के लिए अभी तक कोई सचिवालय या दिशानिर्देश या प्रक्रिया नहीं है।
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यही नहीं, ब्रिक्स गठन के बाद भी पश्चिमी देशों ने सदस्य देशों को अलग-थलग करने या उन्हें वैश्विक प्रशासन से बाहर करने की कोशिश नहीं छोड़ी है। लेख के मुताबिक, ब्रिक्स के सदस्य देशों में भारत हमेशा से ही अमेरिका का निशाना रहा है। अमेरिका ने ट्रांस पेसिफिक पार्टनरशिप, ट्रांसएटलांटिक ट्रेड एंड इंवेस्टमेंट पार्टनरशिप और ट्रेड इन सर्विस एग्रीमेंट गठित करके ब्रिक्स देशों को अलग-थलग करने की कोशिश की है, ताकि विकासशील देशों पर और ज्यादा दबाव बनाया जा सके।
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