सरकार के नरम रुख के बावजूद मोटर बिल पर गतिरोध जारी
कांग्रेस का कहना है कि सरकार स्थायी समिति के कई अहम सुझावों की अनदेखी कर विधेयक को पास कराने पर तुली हुई है।
जागरण ब्यूरो, नई दिल्ली: मोटर बिल को लेकर सरकार और विपक्ष के बीच रस्साकसी जारी है। राज्यसभा के उपसभापति के समक्ष एक दौर की चर्चा के बाद भी सरकार विपक्ष को मनाने में नाकाम रही है। अब सोमवार को दूसरी बैठक में विपक्ष अपने सुझाव सरकार को देगा। यदि सरकार ने उन्हें मान लिया तो विधेयक इसी सत्र में पास हो जाएगा, अन्यथा उपसभापति इसे प्रवर समिति को भेजने का फैसला कर सकते हैं।
मोटर संशोधन विधेयक 2017 लोकसभा में पास होने के बाद राज्यसभा में जाकर अटक गया है। सरकार चाहती है कि विधेयक जल्द से जल्द पारित हो जाए ताकि सड़क दुर्घटनाओं पर अंकुश लगाया जा सके पर राज्यसभा में संख्याबल से उत्साहित विपक्ष विधेयक के प्रारूप में बदलाव पर अड़ा हुआ है। इसकी कमान खासकर कांग्रेस और द्रमुक के हाथों में है।
कांग्रेस का कहना है कि सरकार स्थायी समिति के कई अहम सुझावों की अनदेखी कर विधेयक को पास कराने पर तुली हुई है। दुर्घटना क्षतिपूर्ति की राशि को 10 लाख पर सीमित कर दिया गया है, जबकि ड्राइवरों की न्यूनतम शैक्षणिक योग्यता हाईस्कूल से घटाकर आठवीं पास कर दी गई है। यह कदम सड़क सुरक्षा बढ़ाने के बजाय उससे समझौता करने वाले हैं। विधेयक में यातायात नियामक एजेंसियों को सशक्त बनाने के बजाय वाहन चालकों को दंडित करने और अधिकाधिक जुर्माना वसूलने पर जोर है।
यही नहीं, कुछ मामलों में विधेयक राज्यों के अधिकार क्षेत्र का अतिक्रमण करता है, क्योंकि इसमें केंद्रीय एजेंसियों को ज्यादा अधिकार दिए गए हैं। विधेयक में ट्रांसपोर्टरों, वाहन निर्माताओं तथा बीमा कंपनियों के साथ मुरव्वत का प्रयास किया है, जबकि वाहन ग्राहकों, वाहन चालकों तथा सड़क उपयोगकर्ताओं के साथ सख्ती बरती गई है।
बृहस्पतिवार को राज्यसभा के उप सभापति पीजे कुरियन के साथ हुई सर्वदलीय बैठक में विपक्ष ने इन्हीं मुद्दों पर जोर दिया। जवाब में सरकार की ओर से कहा गया कि वह विपक्ष की वाजिब चिंताओं का समाधान करने के लिए विधेयक में संशोधन को तैयार है।
यह भी पढ़ें: आदिवासियों को 'आधार' की अनिवार्यता से छूट देने की मांग