बाबूसिंह कुशवाहा की याचिका पर सीबीआइ को नोटिस
शुक्रवार को न्यायमूर्ति जे. चेलमेश्वर की अध्यक्षता वाली तीन सदस्यीय पीठ ने कुशवाहा के वकील अभिषेक मनु सिंघवी की दलीलें सुनने के बाद याचिका पर जवाब दाखिल करने के लिए सीबीआइ को नोटिस जारी किया।
जागरण ब्यूरो, नई दिल्ली।एनआरएचएम घोटाले में आरोपी यूपी के पूर्व मंत्री बाबूसिंह कुशवाहा की याचिका पर सुप्रीमकोर्ट ने सीबीआइ को नोटिस जारी कर जवाब मांगा है। हालांकि कोर्ट ने शुक्रवार को कोई अंतरिम आदेश नहीं दिया इसलिए कुशवाहा की मुश्किलें फिलहाल बरकरार हैं। बाबू सिंह कुशवाहा ने गाजियाबाद की सीबीआइ अदालत से एनबीडब्लू जारी होने और चार्जशीट पर संज्ञान लेने के आदेश को चुनौती दी है। हाईकोर्ट से 11 नवंबर को याचिका खारिज होने के बाद कुशवाहा सुप्रीमकोर्ट पहुंचे हैं। एनआरएचएम घोटाले के समय बाबूसिंह कुशवाहा यूपी में परिवार कल्याण मंत्री थे।
शुक्रवार को न्यायमूर्ति जे. चेलमेश्वर की अध्यक्षता वाली तीन सदस्यीय पीठ ने कुशवाहा के वकील अभिषेक मनु सिंघवी की दलीलें सुनने के बाद याचिका पर जवाब दाखिल करने के लिए सीबीआइ को नोटिस जारी किया। हालांकि जब सिंघवी ने अंतरिम आदेश की मांग की ओर इशारा करते हुए गाजियाबाद की अदालत से जारी एनबीडब्लू की बात कही तो पीठ ने कहा कि पहले नोटिस का जवाब आने दो फिर इस पर विचार करेंगे।
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इसके साथ ही कोर्ट में मामले को अगले शुक्रवार सुनवाई के लिए लगाने का आदेश। दिया इससे पहले बहस में सिंघवी ने बाबूसिंह कुशवाहा को एनआरएचएम घोटाले के मामले में नियमित जमानत देने की अपील करते हुए कहा कि भ्रष्टाचार के इस मामले में कुल सात साल की सजा का प्रावधान है और आरोपी चार साल पहले ही जेल में रह चुका है अब उसे जेल में रखने का कोई फायदा नहीं है।
यह मामला एनआरएचएम घोटाले से जुड़ा हुआ है। सीबीआइ ने भ्रष्टाचार के इस मामले में बाबूसिंह कुशवाहा व अन्य लोगों के खिलाफ आईपीसी की धारा 120बी, 420 व भ्रष्टाचार निरोधक अधिनियम 1988 की धारा 13(2) और 13(1)(डी) के तहत आरोपपत्र दाखिल किया है। गाजियाबाद की विशेष अदालत ने दाखिल आरोपपत्र पर संज्ञान लेते हुए बाबूसिंह कुशवाहा व अन्य के खिलाफ सम्मन जारी किया था। बाद में बाबूसिंह के अदालत में न पेश होने पर उसके खिलाफ एनबीडब्लू जारी हुआ। बाबू सिंह ने इस मामले में आरोपपत्र पर संज्ञान लेने को यह कहते हुए चुनौती दी है कि उनके खिलाफ मुकदमा चलाने के लिए राज्य सरकार से पूर्व मंजूरी (सैंक्शन) नहीं ली गई।
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आरोपित अपराध के समय वे लोकसेवक थे और उन्होंने आफीशियल ड्यूटी में काम किया था इसलिए कानूनन उनके खिलाफ मुकदमा चलाने के लिए राज्य सरकार से पूर्व मंजूरी ली जानी चाहिये थी। हालांकि अब वे लोकसेवक नहीं है। जबकि हाईकोर्ट में सीबीआइ ने उनकी दलील का विरोध करते हुए कहा था कि रिश्वत लेना आफीशियल ड्यूटी का हिस्सा नहीं होता इसलिए सैंक्शन की जरूरत नहीं है। इसके अलावा अब वे लोकसेवक नहीं हैं इसलिए भी मुकदमें के लिए पूर्व मंजूरी जरूरी नहीं है।
हाईकोर्ट ने याचिका खारिज करते हुए कहा था कि उन्हें याचिका और मामले के रिकार्ड देखने के बाद विशेष अदालत के संज्ञान लेने या सम्मन जारी करने के गत 14 अक्टूबर के आदेश में दखल देने का कोई उचित कारण नजर नहीं आता। हाईकोर्ट ने कहा था कि याचिकाकर्ता के पास आरोप तय होते समय ट्रायल कोर्ट के समक्ष ये सारी कानूनी दलीलें रखने का विकल्प होगा और ट्रायल कोर्ट कानून के मुताबिक उन पर विचार करेगा। इस बीच गाजियाबाद की विशेष अदालत ने कुछ मामलों में कुशवाहा के खिलाफ धारा 82 में कुर्की की कार्यवाही का भी आदेश दे चुकी है। कुशवाहा के खिलाफ एनआरएचएम के कई मामले हैं।