जरा याद करो कुर्बानी : कारगिल युद्ध में बिहार ने भी गंवाए थे अपने जांबाज बेटे
सत्रह साल बीत चुके हैं कारगिल युद्ध को हुए। आज विजय दिवस के अवसर पर उसके शहीदों को पूरा हिंदुस्तान याद कर रहा है। उस युद्ध में बिहार ने भी अपने बेटों को खोया था।
पटना [काजल]। कारगिल युद्ध को 17 साल बीत गए हैं। जब यह युद्ध छिड़ा तब सैकड़ों वीर जवानों ने देश की सीमाओं की रक्षा के लिए अपने प्राण न्योछावर कर दिए थे। इन जांबाज जवानों में बिहार के सपूत भी शामिल थे। उन्होंने जान की बाजी लगाकर दुश्मनों को मार गिराया था। इन वीर जवानों की स्मृति में 26 जुलाई को विजय दिवस मनाया जाता है।
बिहार आज अपने इन सपूतों को याद कर उन्हें भावभीनी श्रद्धांजलि दे रहा है। पूरा बिहार अाज गर्व महसूस कर रहा है कि इस युद्ध में उसके जवानों ने भी देश के लिए अपनी जिम्मेदारी निभाई और हंसते-हंसते खुद की जान को न्यौछावर कर दिया।
ये हैं वे शहीद, जिनपर आज बिहार गर्व महसूस कर रहा है...
- मेजर चन्द्र भूषण द्विवेदी (शिवहर)
- नायक गणोश प्रसाद यादव (पटना)
- नायक विशुनी राय (सारण)
- नायक नीरज कुमार (लखीसराय)
- नायक सुनील कुमार (मुजफ्फरपुर)
- लांस नायक विद्यानंद सिंह (आरा)
- लांस नायक राम वचन राय (वैशाली)
- हवलदार रतन कुमार सिंह (भागलपुर)
- अरविंद कुमार पाण्डेय (पूर्वी चम्पारण)
- प्रमोद कुमार (मुजफ्फरपुर)
- शिव शंकर गुप्ता (औरंगाबाद)
- हरदेव प्रसाद सिंह (नालंदा)
- एम्बू सिंह (सीवान)
- रमन कुमार झा (सहरसा)
- हरिकृष्ण राम (सीवान)
- प्रभाकर कुमार सिंह (भागलपुर)
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बेटे की शहादत पर आज भी है गर्व आज बिहार रेजीमेंट के बहादुर जवान व कुढ़नी के माधोपुर सुस्ता निवासी शहीद प्रमोद कुमार की मां दौलती देवी की आखें नम हैं। चेहरे पर उदासी है। आवाज भी लड़खड़ा रही है। लेकिन, हिम्मत, धैर्य, दिलासा के साथ बताती हैं कि बेटा खोने का दर्द आज भी उनके सीने में है। पर खुशी है कि बेटा देश के लिए शहीद हो गया।
पति के शहीद होने के बाद उनके खत मिले
सियाचिन में दुश्मनों से लोहा लेते शहीद हुए मुजफ्फरपुर के करजा थाना के फंदा निवासी नायक सुनील सिंह की विधवा मीना कुमारी बताती हैं कि पति के शहीद होने के बाद भी उनके द्वारा लिखे दो पत्र मिले। पति ने लिखा था सकुशल रहूंगा तो घर लौटकर आउंगा। बच्चों का ध्यान रखना। 23 जुलाई को मीना के पति नायक सुनील कुमार सिंह सियाचीन ग्लेसियर पर दुश्मनों की ईंट से ईंट बजा रहे थे। इसी बीच एक दुश्मन से लड़ते हुए पहाड़ से नीचे गिर गए और वीरगति को प्राप्त हो गए। तीन दिन बाद उनका पार्थिव शरीर करजा के फंदा गांव पहुंचा।
पटना में कारगिल युद्ध के शहीदों को दी गई श्रद्धांजलि, देखें तस्वीरें...
बेटे की शादी का सपना अधूरा रहा
20 साल की उम्र में सिपाही रमण झा 1 जुलाई 1999 को करगिल युद्ध में वीरगति को प्राप्त हुए थे। पिता बताते हैं कि हमारा लाडला अविवाहित था। पुत्र की मौत का सदमा उसकी मां उमा देवी बर्दाशत नहीं कर सकी और 2002 में चल बसीं।
बेटियां हर साल करती हैं अपने पिता को सैल्यूट
शिवहर जिले का इतिहास गौरवशाली रहा है। करगिल की लड़ाई में शहीद हुए मेजर चंद्रभूषण द्विवेदी का नाम उल्लेखनीय है। पुरनहिया प्रखंड के बखार चंडिहा गांव में जन्मे मेजर चन्द्रभूषण द्विवेदी करगिल युद्ध में टाइगर हिल पर कब्जा करने के दौरान शहीद हो गए थे। शहीद द्विवेदी ने तिलैया सैनिक स्कूल से पढ़ाई की थी। 1982 में उन्होंने एनडीए की परीक्षा पास कर सैन्य सेवा में दाखिला पाया।
सेना में नौकरी पाने के बाद उनकी शादी 1989 में भावना के साथ हुई। उनकी दो बेटियां हुईं नेहा और दीक्षा। नेहा वर्तमान में डॉक्टर है। छोटी बेटी दीक्षा द्विवेदी विदेश से पत्रकारिता की पढ़ाई कर दिल्ली में नौकरी कर रही हैं।
शहीद शिवशंकर गुप्ता के बेटे ने कहा - मैं भी भारतीय सेना में ही जाऊंगा
कारगिल की लड़ाई में शहीद हुए औरंगाबाद के बनचर गांव के शिवशंकर गुप्ता के बच्चों को अपने पिता की शहादत पर गर्व है। बेटे का इरादा भारतीय सेना में जाने का है।
शिवशंकर बिहार रेजिमेंट की फर्स्ट बटालियन के सदस्य थे, जिन्हें करगिल युद्ध के दौरान अग्रिम मोर्चे पर दुश्मनों को खदेड़ने का जिम्मा सौंपा गया था। अपने साथियों के साथ शिवशंकर गुप्ता भी चार जून 1999 को करगिल की एक पहाड़ी पर कब्जे के लिए निर्णायक लड़ाई लड़ रहे थे तभी आमने सामने की लड़ाई में उनकी शहादत हो गई। हालांकि उन्होंने दुश्मनों को खदेड़ दिया।
शहीद गणेश यादव के बच्चों को गर्व है अपने पिता पर
करगिल के बटालिक सेक्टर के 4268 प्वाइंट पर चार्ली कंपनी की अगुआई कर रहे थे नायक गणेश यादव। तभी दुश्मनों की गोलियों से शहीद हो गए पटना के बिहटा के पाण्डेयचक गांव के लाल। वीरता के लिए उन्हें मरणोपरांत वीरचक्र से नवाजा गया। रामदेव यादव व बचिया देवी के बेटे गणोश की शहादत पर आज बिहार को नाज है। बेटे अभिषेक व बेटी प्रेम ज्योति को शहीद गणेश के बच्चे कहलाने पर गर्व है। अभिषेक का कहना है कि उसे भी सेना में शामिल होना है। इसके लिए तैयारी शुरू कर दी है। वहीं बेटी प्रेम ज्योति पिता के सपनों को डॉक्टर बनकर पूरा करना चाहती है।
शहीद रतन सिंह के पिता ने कहा - और बेटा होता तो देश को सौंप देता
नवगछिया के गोपालपुर थाना के तिरासी निवासी हवलदार रतन सिंह करगिल की लड़ाई में जुबेर पर्वत पर दुश्मनों से लोहा लेते हुए शहीद हुए थे। दो जुलाई 1999 को पाकिस्तानी घुसपैठियों के नापाक इरादे को रतन सिंह ने कामयाब नहीं होने दिया। जुबेर पर्वत पर एक चौकी की घेराबंदी कर आतंकवादियों से लड़ते रहे।
गोलीबारी में हवलदार रतन सिंह शहीद हुए, जबकि कई दुश्मन भी मारे गए शहीद के पिता केदार प्रसाद सिंह कहते हैं कि हमें अपने बेटे की शहादत पर गर्व है। अगर और बेटा होता तो उसे भी देश की रक्षा के लिए सीमा पर भेज देता। मेरे बेटे ने देश की रक्षा के लिए जान दी है। शहीद होकर उसने देश, समाज के साथ-साथ मेरे परिवार का मान बढ़ाया है।
शहीद रतन सिंह के पुत्र रुपेश कहते हैं कि मेरे पिता ने मातृभूमि की रक्षा के लिए प्राणों की आहूति दे दी। मुझे गर्व है कि में उनका बेटा हूं। पिता के शहीद होने के बाद सरकार ने मां की देखरेख के लिए मुङो नौकरी दी है। मैं अपने बच्चों को फौज में भेजूंगा ताकि वे भी देश सेवा कर सकें।
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गौना कराने नीरज तो आए नहीं, उनके मौत की खबर आई
गोद में सात माह की बच्ची थी, शादी को तीन साल हुए थे और रूबी अपने मायके खुटहा में थी। वर्ष 1999, जुलाई का महीना था। रूबी को यह तो मालूम था कि करगिल में पाकिस्तान से जंग चल रही है और पति नीरज उस जंग में शामिल हैं। दिल घबराया रहता था, रूबी बस यही दुआ करती थीं कि जंग में जीत की खबर लेकर जल्द नीरज लौटे और उनका द्विरागमन(गौना) करा के उन्हें व बेटी को अपने साथ ले जाएं।
पर 12 जुलाई 1999 उनके लिए काला दिन साबित हुआ। गौना कराने नीरज तो आए नहीं, उनके मौत की खबर आई और सूर्यगढ़ा प्रखंड के श्रृंगारपुर गांव स्थित उनके घर पर तिरंगे में लिपटा उनका पार्थिव शरीर पहुंचा। पिता योगेंद्र प्रसाद ने अपना बेटा खोया था, रूबी ने अपना सुहाग और एक अबोध नौनिहाल ने अपना पिता। लाल जोड़े में लौटने वाली दुल्हन सफेद साड़ी में लौटी।
नालंदा को गर्व है अपने बेटे हरदेव प्रसाद पर
कारगिल युद्ध में नालंदा की मिट्टी के लाल हरदेव प्रसाद ने अपने जोश, जज्बे व ताकत का परिचय दिया। 12 जून 1999 को वे शहीद हुए थे। हरदेव का जन्म एकंगरसराय के कुकुवर गांव में 31 मई 1970 को हुआ था। 1988 में बिहार रेजीमेंट दानापुर में प्रथम बटालियन में शामिल होने के बाद हरदेव ने 1994 में भूटान एवं सोमालिया युद्ध में दिलेरी का परिचय दिया था। इसके लिए उन्हें पुरस्कार भी मिला था। हरदेव को एक पुत्र सुधांशु, दो पुत्री मनीषा व निशा हैं। पिता को याद कर वे आज भी रो पड़ती हैं।