जागरण प्राइम टीम। संयुक्त राष्ट्र के खाद्य एवं कृषि संगठन (एफएओ) के अनुसार सप्लाई चेन की कमी के कारण भारत में हर साल 11-15% अनाज नष्ट हो जाते हैं। दूसरी ओर, 2011 की जनगणना के अनुसार देश की 14.37% आबादी कुपोषण की शिकार है। ये आंकड़े बताते हैं कि भारत में खाद्य सुरक्षा के लिए भंडारण क्षमता विकसित करने की कितनी जरूरत है। विशेषज्ञों के अनुसार केंद्रीय कैबिनेट ने बुधवार को कोऑपरेटिव क्षेत्र में दुनिया की सबसे बड़ी अनाज भंडारण क्षमता तैयार करने का जो फैसला किया, उसे इसी संदर्भ में देखा जाना चाहिए।

खाद्य पदार्थों का नुकसान दो तरीके से होता है। एक तो उपभोक्ता तक पहुंचने से पहले, और दूसरा उपभोक्ता के स्तर पर। डब्लूआरआई इंडिया की फूड लॉस एंड वेस्ट प्रोग्राम मैनेजर डॉ. नित्या शर्मा बताती हैं, भारत में फूड ग्रेन स्टोरेज मैनेजमेंट में कई चुनौतियां हैं, जिनकी वजह से अनाज का काफी नुकसान होता है। यह हमारी खाद्य सुरक्षा को भी प्रभावित करती है। इससे किसानों और ट्रेडर्स को भी आर्थिक नुकसान होता है, जिससे खाद्य सुरक्षा और प्रभावित होती है। वे कहती हैं, “एफएओ के 2021 के आकलन के अनुसार अनाज का नुकसान कुल उत्पादन का 11 से 15 प्रतिशत है। मात्रा के लिहाज से यह 275 से 375 लाख टन होता है। स्थानीय स्तर पर स्टोरेज क्षमता विकसित करने से अनाज का नुकसान कम होगा और देश में खाद्य सुरक्षा मजबूत होगी। सुरक्षित स्टोरेज के साथ अगर इस नुकसान को कम किया जाए तो देश की 10% खाद्य जरूरत पूरी की जा सकती है।”

उत्तर प्रदेश के हापुड़ स्थित इंडियन ग्रेन स्टोरेज मैनेजमेंट एंड रिसर्च इंस्टीट्यूट (IGMRI) के अनुसार अवैज्ञानिक भंडारण, कीटों, चूहों और माइक्रो ऑर्गेनिज्म आदि के कारण कुल उत्पादन का 10% खाद्यान्न नष्ट हो जाता है। IGMRI उपभोक्ता मामले और खाद्य मंत्रालय के अधीन काम करता है। इसके मुताबिक "हर साल स्टोरेज नुकसान 1.4 करोड़ टन के आसपास है जिसकी वैल्यू लगभग 7,000 करोड़ रुपये होती है। वर्ल्ड बैंक के अनुसार यह मात्रा भारत के एक-तिहाई गरीबों को खिलाने के लिए काफी है। कीटों से होने वाला नुकसान 2% से 4.2% है, चूहे 2.5% अनाज नष्ट करते हैं, पक्षी 0.85% अनाज चुग जाते हैं। इसके अलावा 0.68% अनाज नमी के कारण बर्बाद हो जाता है।"

700 लाख टन की भंडारण क्षमता विकसित होगी

सरकार की योजना के तहत चुनिंदा प्राथमिक कृषि क्रेडिट सोसायटी (पैक्स) के माध्यम से 5 वर्षों के दौरान 700 लाख टन की अनाज भंडारण क्षमता विकसित की जाएगी। हर ब्लॉक में 2000 की क्षमता वाला गोदाम बनाया जाएगा। सबसे पहले 10 जिलों में इसका पायलट प्रोजेक्ट शुरू किया जाएगा। इस योजना पर एक लाख करोड़ रुपये का खर्च आने का अनुमान है। इस कदम से फसलों का नुकसान कम होगा, किसानों को ओने-पौने दाम पर उपज बेचने की जरूरत नहीं होगी। देश में इस समय करीब एक लाख पैक्स हैं, इनमें से 63000 काम कर रही हैं।

इस वर्ष 33 करोड़ टन अनाज उत्पादन का अनुमान

कृषि मंत्रालय ने 25 मई को तीसरे अग्रिम अनुमान में बताया था कि फसल वर्ष 2022-23 में 3305.34 लाख टन अनाज का उत्पादन होने की उम्मीद है। यह अब तक का रिकॉर्ड होगा। इसमें चावल का 1355.42 लाख टन और गेहूं का 1127.43 लाख टन का उत्पादन होगा। मक्क उत्पादन 359.13 लाख टन रहने का अनुमान है। गेहूं, चावल, मक्का तीनों का रिकॉर्ड उत्पादन होगा। सूचना एवं प्रसारण मंत्री अनुराग सिंह ठाकुर के अनुसार देश में कुल अनाज भंडारण क्षमता 1450 लाख टन है। नई क्षमता के निर्माण के बाद यह 2150 लाख टन हो जाएगी।

कृषि विशेषज्ञ देविंदर शर्मा जागरण प्राइम से कहते हैं, “1970 के दशक में देश में ग्रो-मोर फूड अभियान चलाया गया था। तब खाद्य मंत्रालय ने कहा था कि देश में अलग-अलग जगहों पर 40-50 साइलो और गोदाम बनाए जाएंगे। इसका उद्देश्य था कि ज्यादातर भंडारण पंजाब-हरियाणा तक सीमित न रह कर दूसरे राज्यों में भी जाए और वहीं से अनाज का वितरण हो। मुझे खुशी है कि सरकार ने भंडारण क्षमता बढ़ाने का फैसला किया है।”

पैक्स को फंडिंग में मदद की जरूरत

भारत कृषक समाज के चेयरमैन अजय वीर जाखड़ कहते हैं, “प्राइमरी कोऑपरेटिव सोसाइटी के पास पैसे की कमी रहती है, उनके पास कैश फ्लो भी ज्यादा नहीं होता। इसलिए फंडिंग में उनकी मदद करनी पड़ेगी। प्रायरिटी सेक्टर लेंडिंग के तहत उन्हें कम ब्याज पर कर्ज भी दिया जा सकता है। उसके बाद उनके साथ 10 साल का कॉन्ट्रैक्ट भी करना चाहिए, क्योंकि गोदाम बनने के बाद उसका इस्तेमाल हो या नहीं, सोसायटी को ब्याज के पैसे तो देने ही पड़ेंगे। इस काम में पैक्स को प्राथमिकता दी जानी चाहिए, एफपीओ अथवा मल्टी स्टेट कोऑपरेटिव सोसायटी को नहीं।” वे कहते हैं, “मेरे विचार से यह बहुत अच्छा कदम है, क्योंकि इससे पैक्स के लिए आय का एक साधन बन जाएगा। भंडारण की जरूरत पूरी होने के साथ पैक्स भी आत्मनिर्भर हो जाएंगे। इस लिहाज से यह अच्छा मॉडल बन सकता है।”

चीन में भंडारण क्षमता उत्पादन से अधिक

चीन समेत अनेक देशों में भंडारण क्षमता उत्पादन से अधिक है। चीन में इस वर्ष 65 करोड़ टन अनाज का उत्पादन हुआ। वहां अनाज के गोदामों की क्षमता 70 करोड़ टन की है। एफएओ के अनुसार चीन दुनिया का सबसे बड़ा कृषि उत्पादक है। वर्ष 2020 में वहां 1.5 लाख करोड़ डॉलर का खाद्य उत्पादन हुआ। दूसरे नंबर पर भारत है, 2020 में यहां के खाद्य उत्पादन की वैल्यू 382 अरब डॉलर थी। तीसरे नंबर पर अमेरिका के खाद्य उत्पादन की वैल्यू 2020 में 306 अरब डॉलर थी। ब्राजील चौथे नंबर पर है, उसके खाद्य उत्पादन की वैल्यू 125 अरब डॉलर आंकी गई है।

एफएओ का आकलन है कि दुनिया में हर साल कुल खाद्य उत्पादन का 30% से 40% बाजार तक पहुंचने से पहले ही नष्ट हो जाता है। फल-सब्जियों के मामले में तो कई देशों में 40% से 50% उत्पादन नष्ट हो जाता है। फसल तैयार होने से लेकर रिटेल स्टोर तक पहुंचने के बीच 14% खाद्य पदार्थ नष्ट हो जाते हैं। रिटेल और उपभोक्ता के स्तर पर भी काफी बर्बादी होती है। एफएओ के अनुसार दुनिया में 87 करोड़ लोग ऐसे हैं जिनके पास खाने के लिए पर्याप्त भोजन नहीं है। संगठन की एक स्टडी के अनुसार, अभी जितना खाद्य पदार्थ नष्ट होता है उसका एक चौथाई भी अगर हम बचाने में सफल रहे तो दुनिया में कोई भी भूखा नहीं रहेगा।

पर्यावरण को भी होगा फायदा

एफएओ के अनुसार, दुनिया में खाद्य और अखाद्य कृषि उत्पादन लगभग 600 करोड़ टन सालाना है। इसमें से लगभग 160 करोड़ टन खाद्य पदार्थ हर साल बर्बाद हो जाता है। नष्ट होने वाले खाद्य पदार्थों का कार्बन फुटप्रिंट 330 करोड़ टन कार्बन डाइऑक्साइड के बराबर है। इस लिहाज से देखा जाए तो अमेरिका और चीन के बाद कार्बन डाइऑक्साइड का सबसे अधिक उत्सर्जन फूड वेस्ट से होता है। बर्बाद होने वाले खाद्य पदार्थों की खेती 140 करोड़ हेक्टेयर में होती है। यह दुनिया के 30% कृषि योग्य जमीन के बराबर है। उत्पादन लागत के हिसाब से देखें तो फूड वेस्ट की आर्थिक लागत 750 अरब डॉलर के आसपास है।

देश में कोल्ड स्टोरेज की भी कमी

कृषि मंत्रालय के अनुसार देश में करीब 8,126 कोल्ड स्टोरेज हैं, जिनकी क्षमता 374.25 लाख टन की है। सबसे ज्यादा 2,406 कोल्ड स्टोरेज उत्तर प्रदेश में हैं। इसके अलावा गुजरात में 969, पंजाब में 697, महाराष्ट्र में 619, पश्चिम बंगाल में 514, हरियाणा में 359 और मध्य प्रदेश में 302 कोल्ड स्टोरेज हैं। इस लिहाज से देखा जाए तो 64% कोल्ड स्टोरेज पांच राज्यों में ही केंद्रित हैं। नाबार्ड कंसल्टेंसी सर्विसेज की स्टडी 'ऑल इंडिया कोल्ड चेन इन्फ्रास्ट्रक्चर कैपेसिटी' के अनुसार देश में कोल्ड स्टोरेज की क्षमता 3.2 करोड़ टन और जरूरत 3.5 करोड़ टन की है। सरकार प्रधानमंत्री किसान संपदा योजना और मिशन फॉर इंटीग्रेटेड डेवलपमेंट ऑफ हॉर्टिकल्चर के तहत स्टोरेज बनाने के लिए आर्थिक मदद देती है।