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भीषण गर्मी में दिखा बिजली सुधारों का असर

बिजली कटौती जिन जगहों पर हो रही है वह स्थानीय समस्या या ट्रांसमिशन लाइन की दिक्कतों की वजह से है। कुछ राज्यों के बीच अंतर-ट्रांसमिशन की दिक्कतें हैं।

By Ravindra Pratap SingEdited By: Published: Sun, 30 Apr 2017 06:19 AM (IST)Updated: Sun, 30 Apr 2017 06:19 AM (IST)
भीषण गर्मी में दिखा बिजली सुधारों का असर
भीषण गर्मी में दिखा बिजली सुधारों का असर

जयप्रकाश रंजन, नई दिल्ली। भारत में अप्रैल से जून तक का महीना बिजली मंत्रालय से जुड़े लोगों के लिए काफी मुसीबत भरा होता था। बिजली प्लांटों में कोयले की कमी से ले कर पनबिजली परियोजनाओं में कम उत्पादन घटने और घरेलू मांग में काफी बढ़ोतरी होने से लंबी बिजली कटौती के बीच सामंजस्य बिठाना कोई आसान काम नहीं होता था। लेकिन यह वर्ष शायद आजादी के बाद पहला वर्ष होगा जब भीषण गर्मी की मांग करो पूरा करने के लिए देश के बिजली संयंत्र न मुस्तैद है बल्कि वे मांग से ज्यादा बिजली पैदा कर रहे हैं।

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जम्मू व कश्मीर और पूर्वोत्तर के कुछ राज्यों को छोड़ दें तो देश के अन्य सभी जिलों में बिजली उत्पादन मांग को पूरा करने के लिए पर्याप्त है। बिजली मंत्रालय के एक वरिष्ठ अधिकारी के मुताबिक अप्रैल के पहले पखवाड़े (01-14 अप्रैल) के मुकाबले दूसरे पखवाड़े में हर राज्य में बिजली की खपत में 5 फीसद से 20 फीसद तक की बढ़ोतरी हुई है। इसके बावजूद पिछले 20 दिनों के दौरान बिजली की उपलब्धता 99.2 फीसद से लेकर 100 फीसद बनी हुई है। जबकि वर्ष 2010 से लेकर 2014 के आंकड़ों को देखेंगे तो आप पाएंगे कि अप्रैल-मई के महीनों में बिजली की उपलब्धता मांग के मुकाबले अधिकतम 75-80 फीसद होने पर बहुत अच्छा रिकार्ड माना जाता था।

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नेशनल लोड डिस्पैच सेंटर (एनएलडीसी) के आंकड़ों के मुताबिक अगर जम्मू व कश्मीर और असम को छोड़ दिया जाए तो देश के अन्य किसी भी राज्य में पीक आवर मांग और आपूर्ति में कोई कमी नहीं है। एक उदाहरण उत्तर प्रदेश का ही ले तो 10 अप्रैल, 2017 को राज्य की मांग 14,764 मेगावाट की मांग थी जो 16 अप्रैल, 2017 को बढ़ कर 15,971 मेगावाट हो गई लेकिन इस दौरान राज्य में एक बार भी बिजली की कमी होने की वजह से कटौती नहीं की गई है। बिजली की कटौती किसी दूसरी वजहों से हो रही है। यही स्थिति बिहार की है। महीने के शुरुआत में राज्य में आपूर्ति के मुकाबले मांग 200 मेगावाट ज्यादा थी लेकिन ताजे आंकड़ों के मुताबिक पीक आवर डिमांड पूरी करने लायक पर्याप्त बिजली है।

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बिजली मंत्रालय के अधिकारियों के मुताबिक मौजूदा मांग को देखते हुए हमारा अनुमान है कि देश के उत्तरी हिस्से में अप्रैल से सितंबर, 2017 के बीच 56,000 मेगावाट बिजली की जरुरत होगी और इसे इन राज्यों की बिजली इकाइयों से पूरा किया जा सकता है। पूरे देश की बात करें तो इन छह महीनों के दौरान 1,53,000 मेगावाट बिजली की जरुरत होगी और इन्हें आसानी से देश के बिजली संयंत्रों से उपलब्ध कराया जा सकेगा।

ऐसे में सवाल उठता है कि क्या देश के हर हिस्से को बिजली मिल रही है? बिजली मंत्रालय ने देश में बिजली की स्थिति को दिखाने के लिए एक एप ऊर्जा मित्र लांच किया है। शनिवार को इसके रिकार्ड बताते हैं कि हरियाणा, पंजाब, दिल्ली, उत्तराखंड, हिमाचल प्रदेश में कोई अधिसूचित (पहले से घोषित) बिजली की कटौती नहीं है। पूरे गुजरात में सिर्फ एक जगह और मध्य प्रदेश में दो जगह, महाराष्ट्र में एक जगह बिजली कटौती की गई है। चार वर्ष पहले तक तमिलनाडु में चार से छह घंटे की बिजली कटौती सामान्य बात थी लेकिन अब यह राज्य पूरी तरह से बिजली कटौती से मुक्त है।

बिजली कटौती जिन जगहों पर हो रही है वह स्थानीय समस्या या ट्रांसमिशन लाइन की दिक्कतों की वजह से है। साथ ही कुछ राज्यों के बीच अंतर-ट्रांसमिशन लाइनों की दिक्कतें हैं। देश के पूर्वी इलाकों में इस समय आंधी तूफान व बारिश होने की वजह से भी ट्रांसमिशन लाइनें सबसे ज्यादा क्षतिग्रस्त हो जाती हैं जिससे बिजली कटौती होती है। अगर राज्य सरकारों ने केंद्र से मदद ले कर अपनी ट्रांसमिशन लाइनों को पूरी तरह से दुरुस्त कर लेते हैं तो यह दिक्कत भी अगले दो वर्षो के भीतर दूर की जा सकती है।


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